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मानविकी को जंग लगने के खतरे!

सन 2002 में हॉलीवुड की एक फिल्म थी-सिमोन। इसमें ऍल पचिनो एक ऐसे फिल्म निर्देशक की भूमिका में थे जो एक अदाकारा का वर्चुअल संस्करण बनाता है। फिल्म में पचिनो का एक डॉयलॉग था- “यह एक सितारे का डिजिटाइजेशन” है। फिल्म फ्लॉप थी पर मुझे बेहद पसंद आयी।वह फिल्म आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस से लैस भविष्य की दुनिया की झलक दिखलाने वाली शायद पहली फिल्म थी।

इक्कीस साल बाद, सना नाम की देसी सिमोन, भारत में इंडिया टुडे के मंच पर नमूदार हुई। और जिस दिन बलिंसेग्या के स्टाइलिश जैकेट में पोप ट्रेंड कर रहे थे, उसी दिन सना भी ट्रेंड कर रही थी – एक प्यारी सी, नाज़ुक सी, सबको पसंद आने वाली न्यूज़ एंकर (कृत्रिम बुद्धी जनित)।

यदि आपको पता ही नहीं है कि दुनिया में क्या कुछ हो रहा है (कभी-कभी वीकेंड पर मैं भी इसी स्थिति को पसंद करती हूँ) तो आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि पिछले सप्ताहांत पोप फ्रांसिस की एक फोटो इन्स्टाग्राम और ट्विटर पर छाई हुई थी। इसमें वे सफ़ेद रंग की एक बहुत ही स्टाइलिश जैकेट पहने हुए थे। बलिंसेग्या (फ्रांस का एक मशहूर लक्ज़री ब्रांड जिसके उत्पाद काफी महंगे होते हैं) के उस पफर (फूले हुए) जैकेट में पोप जंच रहे थे। उसके बाद आया “हैरी पॉटर बाय बलिंसेग्या”। और उसके पहले आया था डोनाल्ड ट्रम्प की गिरफ़्तारी और फिर जेल से फरार होने के वीडियो। ट्रम्प का वीडियो तो पहली नज़र में नकली लगा था। परन्तु पोप के पफर जैकेट ने इन्टरनेट के परमज्ञानियों को भी चक्कर में डाल दिया। जहाँ तक हैरी पॉटर का सवाल है, वह तो विशुद्ध मनोरंजन था।

पोप की फोटो देखकर तो मैं भी अपने आप को विश्वास करने से रोक नहीं सकी थी। हालाँकि कहीं न कहीं मुझे लग रहा था कि फोटो असली नहीं हो सकता। जब मैंने टाइम मैगज़ीन में पढ़ा कि यह फोटो दरअसल एआई (कृत्रिम बुद्धी) की कृति है तब मैंने एक बार फिर उसे देखा। हाँ, फोटो नकली तो लग रही थी! पोप के हाथ कुछ अजीब से थे।

सन 2021 की जनवरी में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस की शोध प्रयोगशाला ओपनएआई ने डाल-ई नाम के एक सॉफ्टवेयर का सीमित संस्करण जारी किया था। आप अपने मन में किसी भी दृश्य की कल्पना कर उसका विवरण इस सॉफ्टवेयर को बता दे तो वह मिनटों में आपके दिमाग के उस चित्र को स्क्रीन पर उतार देगा। ऐसे ही यदि आप चैटजीपीटी को हैरी पॉटर की कहानी को संक्षेप में शेक्सपियर की स्टाइल में लिखने को कहेंगे तो यकीन मानिये वह मिनटों में काफी कुछ ठीक-ठाक सी चीज़ आपके सामने परोस देगा। चैटजीपीटी कंप्यूटर कोडिंग कर सकता है, गणित के सवाल हल कर सकता है, प्रसिद्ध रचनाकारों की शैली में कहानी और कविता लिख सकता है और पुस्तकों की समीक्षा कर सकता है। वह अकादमिक शोधप्रबंध, राजनैतिक भाषण और क़ानूनी भाषा में कॉन्ट्रैक्ट भी तैयार कर सकता है।

सो एआई और चैटजीपीटी मनुष्य भविष्य के निर्धारक बनते दिख रहे हैं। लोग एआई सॉफ्टवेयर की क्षमताओं पर फ़िदा हैं और उनका इस्तेमाल शब्दों और चित्रों की अनदेखी, अनजानी और अजीब दुनिया सृजित करने में कर रहे हैं।तभी सोशल मीडिया में विचित्र और बेतुकी से लेकर चमत्कारिक और उत्कृष्ट रचनाओं की बाढ़ है। फंतासी, रचनात्मकता और कला के घोल से एक कृत्रिम यथार्थ का सृजन किया जा रहा है।

क्या यह सब अच्छा है या बुरा? यह नई तकनीक हमारे जीवन में बेहतरी लाएगी या बर्बादी? यह कृत्रिम मीडिया, जिसे पहले ही फेक न्यूज़ की फैक्ट्री करार दे दिया गया है, यथार्थ की हमारी अनुभूति को पैना करेगा या भोंथरा? या फिर यथार्थ और फंतासी की विभाजक रेखा को इतनी धुंधली कर देगा कि हम दोनों में अंतर ही नहीं कर पाएंगे?

एआई के 1,000 से ज्यादा जानेमाने विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और प्रेमियों ने एक संयुक्त बयान जारी करके भीमकाय एआई प्रणालियों के विकास पर कम से कम छह महीने तक रोक लगाने की अपील की है ताकि जीपीटी-4 जैसी शक्तिशाली प्रणालियों की क्षमताओं और खतरों का आंकलन किया जा सके और मानवता को इसके खतरों से बचाने के उपाय किये जा सकें। इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में चैटजीपीटी और जीपीटी-4 की निर्माता ओपनएआई के सहसंस्थापक एलन मस्क, लन्दन स्थित स्टेबिलिटी एआई के संस्थापक इमाद मोस्ताक और एप्पल के सहसंस्थापक स्टीव वोज़नियाक, शामिल हैं। इन सब की चिंता है कि, “शक्तिशाली एआई प्रणालियों का विकास तभी किया जाना चाहिए जब हम विश्वासपूर्वक यह कह सकें कि उनके प्रभाव सकारात्मक होंगे और उनसे उत्पन्न जोखिमों से निपटने में हम सक्षम हैं।”

उनके सरोकार जायज़ हो सकते हैं परन्तु यह भी सही है कि एआई सचमुच कृत्रिम है, जिसका आधार है डाटा और उसे प्रोसेस करने की क्षमता। बिग टेक कंपनियों ने सालों-साल विभिन्न तरीकों और स्त्रोतों से दुनिया के हर क्षेत्र से सम्बंधित जानकारियां इकठ्ठा कीं, उन्हें अपने विशाल डाटा सेंटरों में जमा किया और फिर उसे बिजली से गति से पढने और विश्लेषण करने की क्षमता रखने वाले कंप्यूटर बनाए। ये कछुए की चाल से चलने वाले पुराने नेटवर्कों के सुपरफ़ास्ट संस्करण भर हैं। एआई और चैटजीपीटी जैसी मशीनी बुद्धि की बाढ़, दरअसल, उस पोस्ट-ट्रुथ (वह स्थिति जिसमें तथ्यों की जगह भावनाएं और व्यक्तिगत विश्वास, जनमत को गढ़ते हैं) दुनिया का नतीजा है जिसमें हम आज रह रहे हैं। अगर इनका उपयोग कुबेरपति कारपोरेशनों द्वारा अपना मुनाफा और बढ़ाने के लिए किया जाता है तो यह ठीक नहीं होगा। इस तरह की चीज़ें तभी तक अच्छी हैं जब तक कि उनका इस्तेमाल केवल मनोरंजन के लिए किया जाए। परन्तु अगर वे दुनिया को देखने-समझने का हमारा उपकरण बन जाती हैं तो यह बहुत डरावना होगा। इससे कला, कल्पना, सौन्दर्य और भावनाओं को अभिव्यक्त करने की हमारी क्षमता – जो हमें मनुष्य बनाती है – को जंग लग जाएगी। और तब मानवता उतनी कंगाल होगी जितनी वह कभी नहीं थी। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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