यह रिसर्च भारत और चीन में किया गया। शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इन दोनों ही देशों में ये समस्या गंभीर रूप ले रही है। कई जगहों के पानी में एंटीबायोटिक की मौजूदगी अधिकतम सीमा से ज्यादा है।
बेकार पानी को साफ करके पीने के पानी में बदलने वाले ट्रीटमेंट प्लांट एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) पैदा करने का बड़ा ठिकाना बन रहे हैं। इसकी वजह पानी में एंटीबायोटिक की मौजूदगी है। यह जानकारी मशहूर ब्रिटिश हेल्थ जर्नल द लैन्सेट में छपे एक शोध से सामने आई है। यह रिसर्च भारत और चीन में किया गया। शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इन दोनों ही देशों में ये समस्या गंभीर रूप ले रही है। रिसर्च के लिए दोनों देशों में जगहों से पानी के नमूने लिए गए। इनमें वेस्टवॉटर और ट्रीटमेंट प्लांट्स से लिए गए पानी के नमूने भी थे। जांच में पाया गया कि कई जगहों के पानी में एंटीबायोटिक की मौजूदगी अधिकतम सीमा से ज्यादा है। चीन में एएमआर की स्थिति पैदा करने का सबसे ज्यादा जोखिम नल के पानी में पाया गया। इसमें सिप्रोफ्लोएक्सिन की काफी मौजूदगी मिली। भारत में शहरी इलाकों में आम तौर पर नगर निगम और नगरपालिकाएं लोगों को नल के पानी की आपूर्ति करती हैं। इस पानी को पहले ट्रीटमेंट प्लांट में साफ किया जाता है। प्लांट तक पहुंचने वाले पानी में कोई स्रोतों का योगदान होता है।
इनमें अस्पताल, मवेशी पालन की जगहें और दवा उत्पादन के स्थल भी शामिल हैँ। डॉक्टरों के मुताबिक एएमआर पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा खतरा है। इसके कारण अकेले 2019 में ही दुनिया भर में करीब 50 लाख लोगों की मौत हुई। 2016 में हुए एक अनुसंधान के मुताबिक एएमआर के कारण भारत में हर साल करीब 60 हजार नवजात बच्चों की मौत हो रही है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में केवल 43 फीसदी न्यूमोनिया के मामलों को ही शुरुआती स्तर के एंटीबायोटिक्स से ठीक किया जा सका। जबि 2016 में यह आंकड़ा 65 फीसदी था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2015 में इस समस्या से निपटने के लिए एक वैश्विक रणनीति की घोषणा की थी। भारत में भी 2017 में इस पर एक राष्ट्रीय कार्ययोजना पेश की गई। लेकिन एक मीडिया एक रिपोर्ट के मुताबिक नवंबर 2022 तक केवल तीन ही राज्य इस अमल के लिए अपनी कार्ययोजना ला पाए।