अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को हर साल 90 बिलियन डॉलर का बजट मिलता है। उनके पास इलेक्ट्रॉनिक संवाद को दर्ज करनेवाला बेहद मजबूत तंत्र है। फिर भी इतनी बड़ी लीक हो गई, तो उनकी काबिलियत पर बट्टा लगा है।
अमेरिका के खुफिया सैन्य दस्तावेज लीक होने का विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। इस विवाद को मीडिया की सुर्खियों से हटाने की पूरी कोशिश जो बाइडेन प्रशासन ने की है। लेकिन दस्तावेज में शामिल सूचनाएं लगभग रोजमर्रा के स्तर पर सार्वजनिक हो रही हैं। अखबार द वॉशिंगटन पोस्ट ने कहा है कि इन सूचनाओं से भी अधिक असहज करने वाला प्रश्न यह है कि ऐसा टॉप सिक्रेट दस्तावेज लीक कैसे हो गया। इससे अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन कठघरे में खड़ा हुआ है। असहज स्थिति अमेरिका के सहयोगी देशों के लिए भी बनी है, क्योंकि बहुत-सी सूचनाएं उनसे जुड़ी हुई हैँ। अब अमेरिका की कोशिश सहयोगी देशों को यह भरोसा दिलाने की है कि ऐसा आगे नहीं होगा। लीक दस्तावेजों के मुताबिक रूस संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से रिश्ते लगातार मजबूत कर रहा है, जबकि यूएई में अमेरिकी सेना के अहम ठिकाने हैं। इन दस्तावेजों के मुताबिक मिस्र के राष्ट्रपति ने अपने अधिकारियों को गुपचुप तरीके से 40,000 रॉकेट, जहाज के जरिए रूस भेजने का आदेश दिया। इन रॉकेटों को यूक्रेन युद्ध के लिए भेजा जाना था।
लीक हुए एक और दस्तावेज के आधार पर दावा किया गया है कि कैसे अमेरिकी दबाव के बावजूद दक्षिण कोरिया के नेता यूक्रेन को तोप के गोले देने में हिचक रहे हैं। ये तमाम बातें यूक्रेन युद्ध में अमेरिकी रणनीति में लगी सेंध का संकेत देते हैं। निहितार्थ यह है कि यूक्रेन को लेकर अमेरिका ने जो नैरेटिव बुना है, उससे उसके सहयोगी देख तक सहमत नहीं हैं। उधर एक डॉक्यूमेंट में बताया गया है कि इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद का हाथ प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू के प्रस्तावित न्यायिक सुधारों के विरोध को भड़काने में रहा है। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को हर साल 90 बिलियन डॉलर का बजट मिलता है। उनके पास इलेक्ट्रॉनिक संवाद को दर्ज करने, जासूसों की मदद लेने और सैटेलाइटों से निगरानी करने वाला बेहद मजबूत तंत्र है। अमेरिका खुफिया एजेसियों की ताकत का अंदाजा सार्वजनिक रूप से नहीं के बराबर होता है। जाहिर है, इतनी बड़ी लीक ने खुफिया एजेंसियों की गोपनीयता कायम रखने की काबिलियत पर बट्टा लगा दिया है।