shanidev : शनिदेव, जिन्हें न्याय के देवता माना जाता है, भगवान सूर्य और देवी छाया के पुत्र हैं। हिंदू धर्म में शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि वे कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं।
भक्त शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें तिल और सरसों का तेल चढ़ाते हैं। शनिदेव की पूजा के लिए मंदिर का चयन किया जाता है, क्योंकि उनकी मूर्ति को घर में रखना अशुभ माना जाता है।
एक अनोखी बात यह है कि पूजा के दौरान भक्त शनिदेव से दृष्टि नहीं मिलाते। ऐसा माना जाता है कि उनकी दृष्टि का सीधा प्रभाव जीवन में कठिनाइयों और चुनौतियों को बढ़ा सकता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शनिदेव की दृष्टि अत्यधिक शक्तिशाली है और वह जिस पर पड़ती है, उसके जीवन में बड़े परिवर्तन ला सकती है। इसलिए उनकी पूजा विशेष नियमों और श्रद्धा के साथ की जाती है।
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शनिदेव महाराज है श्रापित….
दरअसल, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शनिदेव को एक श्राप प्राप्त है कि उनकी दृष्टि जिस पर भी पड़ेगी, उसका अनिष्ट होगा।
इसी कारण शनिदेव की पूजा में विशेष सावधानियां बरती जाती हैं। यह माना जाता है कि उनकी दृष्टि अत्यधिक प्रभावशाली और शक्तिशाली है, जो जीवन में कठिनाइयों और समस्याओं को बढ़ा सकती है।
इसी कारण घरों में शनिदेव की मूर्ति नहीं रखी जाती, ताकि उनकी दृष्टि का प्रभाव परिवार पर न पड़े। पूजा के समय भी भक्त शनिदेव से दृष्टि नहीं मिलाते और न ही उनके सामने खड़े होकर उनकी पूजा करते हैं।
इसके बजाय, भक्त शनिदेव की पूजा उनके पीछे खड़े होकर या एक निश्चित दूरी से करते हैं, ताकि उनकी कृपा प्राप्त हो, लेकिन उनकी दृष्टि का प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
पत्नि ने ही दिया था शनिदेव को श्राप
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शनिदेव को उनकी पत्नी से ही श्राप प्राप्त हुआ था। एक बार शनिदेव की पत्नी ने संतान प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की और इसके लिए शनिदेव के पास गईं।
लेकिन उस समय शनिदेव गहरी भक्ति में लीन थे और उन्होंने अपनी पत्नी की ओर देखा तक नहीं। इससे उनकी पत्नी को गुस्सा आ गया, और उन्होंने शनिदेव को श्राप दे दिया।
श्राप देते हुए उन्होंने कहा कि यदि तुम अपनी दृष्टि मुझ पर नहीं डाल सकते, तो यह वक्री हो जाए, और तुम जिसकी ओर देखोगे, उसका अनिष्ट होगा।
शनिदेव की दृष्टि की शक्ति के कारण एक और प्रसिद्ध घटना घटी, जो भगवान गणेश से संबंधित है। कथा के अनुसार, जब माता पार्वती ने अपनी उबटन से भगवान गणेश का निर्माण किया, तो शिवलोक में इस अवसर पर एक बड़ा उत्सव मनाया गया।
सभी देवता भगवान गणेश को आशीर्वाद देने आए। शनिदेव भी वहां पहुंचे, लेकिन उन्होंने अपनी दृष्टि गणेश जी पर नहीं डाली और बिना देखे वहां से जाने लगे।
इस पर माता पार्वती ने शनिदेव को रोकते हुए पूछा कि क्या वे उनके पुत्र को आशीर्वाद नहीं देंगे। शनिदेव ने अपनी दृष्टि की अशुभता के बारे में बताया, लेकिन पार्वती जी के आग्रह पर उन्होंने गणेश जी को देखा।
उनकी दृष्टि पड़ते ही गणेश जी का सिर कटकर अलग हो गया। बाद में भगवान शिव ने गणेश जी को हाथी का सिर लगाकर पुनः जीवित किया।
यह घटना शनिदेव की दृष्टि की शक्ति और प्रभाव का प्रतीक है। इसी कारण, उनकी पूजा में विशेष सावधानियां बरती जाती हैं।
शनिदेव के दृष्टि से कटा गणेश जी का सिर
मां पार्वती के इस तरह पूछने पर शनिदेव ने कहा कि अगर वो गणेश जी को देखेंगे तो ये उनके लिए मंगलकारी नहीं होगा, लेकिन मां पार्वती ने शनिदेव को आदेश दिया कि वो उनके पुत्र को देखें.
शनिदेव ने मां पार्वती के आदेश का पालन करते हुए गणेश जी पर अपनी दृष्टि डाली.
कहा जाता है कि शनिदेव के दृष्टि डालने के बाद ही गणेश जी का सिर कटने वाली घटना हुई, जिसके बाद उन्हें हाथी का मस्तक लगाया गया और उनका नाम गजानन पड़ गया.