Sakat Chauth 2025: सकट चौथ व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे गणेश चतुर्थी या तिलकुटा चौथ के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, महीने में दो बार चतुर्थी तिथि आती है, लेकिन माघ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को विशेष रूप से “संकष्टी चतुर्थी” कहा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से पश्चिमी और दक्षिणी भारत में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
पंचांग के अनुसार 17 जनवरी 2025 को सकट चौथ का पर्व मनाया जाएगा, जिसे तिलकुटा चौथ, वक्र-तुण्डि चतुर्थी और माघी चौथ के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि जो भी महिला सकट का व्रत रखती है उन्हें सकट व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए, इससे संतान के जीवन और परिवार दोनों में सुख-समृद्धि का वास होता है। ऐसे में आइए इस कथा के बारे में जानते हैं।
सकट चौथ पर बनते है खास पकवान
सकट चौथ पर खास पकवान बनाने का रिवाज है। इस दिन तिल और गुड़ के पकवान को बनाया जाता है, जिसे तिलकुट भी कहा जाता है। वैसे क्या आपको मालूम है कि तिल और गुड़ का सेवन करना हमारी सेहत के लिए फायदेमंद होता है? अगर आपको ज्यादा जानकारी नहीं है तो आज हम तिल और गुड़ को खाने के फायदों के बारे में भी बताएंगे।
सकट चौथ व्रत कथा
सकट का व्रत भगवान गणेश की पूजा को समर्पित होता है। कहा जाता है कि यदि सच्चे भाव से सकट का उपवास रखा जाए तो संतान सुख की प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है, लेकिन इस दिन सकट व्रत कथा का पाठ करना बेहद जरूरी होता है, इससे उपवास का संपूर्ण फल प्राप्त होता है, सकट के व्रत की कथा को लेकर कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव जी ने कार्तिकेय और गणेश जी से पूछा कि तुम दोनों में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है ? शिव जी की यह बात सुनकर दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम समझा।
गणेश जी और कार्तिकेय के जवाब सुनकर महादेव ने कहा कि तुम दोनों में से जो भी पहले इस पृथ्वी की परिक्रमा करके वापिस लोटेगा वहीं देवताओं की मदद करने जाएगा।
शिव जी के इस वचन को सुनकर कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, लेकिन इस दौरान भगवान गणेश विचारमग्न हो गए कि वे चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इसमें बहुत समय लग जाएगा।
इस समय गणेश जी को फिर एक उपाय सूझा, वह अपने स्थान से उठकर अपने माता-पिता की सात परिक्रमा करके वापस बैठ गए। वहीं पृथ्वी की पूरी परिक्रमा करके कार्तिकेय भी लौट आए और स्वयं को विजय बताने लगे, फिर जब भोलेनाथ ने गणेश जी से पृथ्वी की परिक्रमा न करने का कारण पूछा, तो गणेश जी ने अपने उत्तर मे कहा कि-‘माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।
गणेश जी के जवाब सुनकर शिव जी ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी, इतना ही नहीं शंकर जी ने कहा कि जो भी साधक चतुर्थी के दिन तुम्हारा श्रद्धा पूर्वक पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।
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