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आदर्श नारी की प्रतिमान देवी अनुसूईया

माता अनुसूईया भारत की महान पांच पतिव्रता स्त्रियों में शामिल हैं। अनुसुईया के साथ द्रौपदी, सुलक्षणा, सावित्री और मंदोदरी को पतिव्रता पत्नी माना जाता है। अनुसूईया ने तीनों लोकों के परमात्मा साक्षात ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों की कठिन तपस्या कर उनके दिए हुए वरदान से अपने तीन पुत्रों की प्राप्ति की थी। रामायण के अनुसार भगवान राम के वनवास गमन के समय श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण का स्वागत कर सती अनुसूईया ने अपने आश्रम में उन्हें आश्रय दिया था। इस समय भगवान श्रीराम की प्रिय पत्नी माता सीता को इन्होने अपने पतिव्रता धर्म की शिक्षा भी दी थी।

10 अप्रैल- माता अनुसूईया जयंती

भारतीय नारी इतिहास में सती- साध्वी पतिव्रता नारियों में सर्वोच्च स्थान रखने वाली देवी अनुसूईया (अनुसुया) प्रजापति कर्दम और देवहूति की प्रमुख चौबीस कन्याओं में से एक थी। ह्र्दय से अत्यंत सरल, सहज और निश्छल देवी अनुसूईया सती आदर्श नारी की प्रतिमान मानी गई हैं। उच्च कुल में जन्म लेने पर भी इनके मन में किसी प्रकार का लेशमात्र भी अहंकार नहीं था। अनुसूईया ब्रह्मा के मानस पुत्र संत महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी थी। महर्षि अत्रि सतयुग के ब्रह्मा के दस पुत्रों में से थे। उनका आखिरी अस्तित्व चित्रकूट में सीता-अनुसूईया संवाद के समय तक था। उन्हें सप्तऋषियों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि ऋषि अत्रि पर अश्विनी कुमारों की भी कृपा थी। अत्रि ऋषि की पत्नी और ब्रह्मवादिनी (संन्यासीन) सती अनुसूईया के पति भक्ति की प्रसिद्धि की कथाएं तो रामायण, महाभारत और कई पौराणिक ग्रन्थों में स्वर्णाक्षरों में अंकित हैं। माता अनुसूईया पतिव्रता धर्म निभाने वाली तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ नारी थी। उनके दरबार में आए हुए समस्त ऋषि, पशु-पक्षी व अन्य कोई भी प्राणी बिना भोजन किए नहीं जाते थे। उनकी पतिव्रता धर्म की तेज व शक्ति इतनी अधिक थी कि आकाश में जाते हुए देवताओं को भी इसका अनुभव होता था। उनके तेज व शक्ति के प्रभाव के कारण ही उन्हें सती अनुसूईया कहा जाता है।

माता अनुसूईया भारत की महान पांच पतिव्रता स्त्रियों में शामिल हैं। अनुसुईया के साथ द्रौपदी, सुलक्षणा, सावित्री और मंदोदरी को पतिव्रता पत्नी माना जाता है। अनुसूईया ने तीनों लोकों के परमात्मा साक्षात ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों की कठिन तपस्या कर उनके दिए हुए वरदान से अपने तीन पुत्रों की प्राप्ति की थी। रामायण के अनुसार भगवान राम के वनवास गमन के समय श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण का स्वागत कर सती अनुसूईया ने अपने आश्रम में उन्हें आश्रय दिया था। इस समय भगवान श्रीराम की प्रिय पत्नी माता सीता को इन्होने अपने पतिव्रता धर्म की शिक्षा भी दी थी। इन्होंने सीता को कुछ आभूषण भी दिए थे। सीता ने सिर्फ इनके द्वारा दी गई आभूषणों को ही वनवास काल में धारण किया था। देवी अनुसूईया ने अपनी सतत सेवा तथा प्रेम व स्नेह से महर्षि अत्रि के हृदय को जीत लिया था। जिससे प्रसन्न होकर महर्षि अत्रि मुनि ने अनुसूईया को पातिव्रत्य धर्म ऐसे ही युगों -युगों तक निभाने का आशीर्वाद प्रदान किया था। अपने पातिव्रत धर्म का पालन करते हुए अनुसुईया ने पूर्ण सेवा और समर्पण का भाव दिखाया। अपने पति के लिए इनके समर्पण भाव की प्रशंसा सर्वत्र होने लगी। इनके पतिव्रता की ख्याति तीनों लोकों में फ़ैल गई। उनके इस सती धर्म की प्रशंसा जब देवी पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती तक पहुंची, तो त्रिदेवियों के मन में द्वेष का भाव जागृत हो गया। दुर्भावना आ गई। इसके कारण देवी अनुसुईया को  परीक्षा की स्थिति का सामना करना पड़ा।

मार्कण्डेय पुराण, श्रीमद्भागवत व महाभारत के सभापर्व में अंकित कथाओं के अनुसार एक समय त्रिदेवियों अर्थात सरस्वती, लक्ष्मी व पार्वती को अपने पातिव्रत्य पर अत्यंत गर्व हो गया, तो परमेश्वर ने त्रिदेवियों का अहंकार नष्ट करने के लिए लीला रची। लीलानुसार एक दिन देवऋषि नारद ने त्रिदेवियों के समक्ष जाकर माता अनुसूईया के सतीत्व की महिमागान करते हुए कहा कि उन के सामने आपका सतीत्व कुछ भी नहीं है, अर्थात अत्यंत फीका है। अनुसूईया के सतीत्व की बखान सुन त्रिदेवियों ने त्रिदेवों को अनुसूईया के पातिव्रत्य की परीक्षा लेने के लिए कहा। त्रिदेवों ने त्रिदेवियों को समझाने का पूर्ण प्रयास किया, किन्तु जब त्रिदेवियां नहीं मानी तो विवश होकर त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु व महेश महर्षि अत्रि की अनुपस्थिति में उनके आश्रम गए। वहाँ जाकर त्रिदेव साधुओं का वेश धारण कर आश्रम के द्वार पर भोजन की मांग करने लगे।

अनुसूईया के कन्द- मूल, फल आदि भोजन दिए जाने पर उन्होंने देवी के सामने एक शर्त रखी कि वह तीनों यह भोजन तभी स्वीकार करेंगे, जब देवी निर्वस्त्र होकर उन्हें भोजन परोसेंगी। इस पर देवी अनुसूईया चिंता में डूब गई कि वह ऎसा कैसे कर सकती हैं? साधुओं का अपमान न हो इस डर से घबराई अनुसूईया ने अपनी आँख मूंद कर पति को स्मरण किया, तो उन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई और साधुओं के वेश में उपस्थित त्रिदेवों को उन्होंने पहचान लिया। इस पर देवी ने कहा कि साधुओं की इच्छा अवश्य पूर्ण होगी, किन्तु इसके लिए उन्हें शिशु रूप में जन्म लेकर उनका पुत्र बनना होगा। उन्होंने अपने पति को स्मरण कर कहा कि यदि मेरा पतिव्रत्य धर्म सत्य है, तो ये तीनों साधु छः मास के शिशु हो जाएं। इतना कहते ही त्रिदेव शिशु बनकर रोने लगे। तब अनुसूईया ने माता बनकर त्रिदेवों को स्तनपान कराया।

त्रिदेव अनुसूईया के पुत्र बन कर आश्रम में रहने लगे। अत्यधिक  समय बीत जाने के पश्चात भी त्रिदेव देवलोक नहीं पहुँचे, तो पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती चिंतित, दुखी एवं व्याकुल हो गई। तब नारद ने त्रिदेवियों को सारी बात बताई। त्रिदेवियां देवी अनुसईया के समक्ष पहुँच उनसे से क्षमा याचना करते हुए अपने त्रिदेव पतियों को बाल रूप से मूल रूप में लाने की प्रार्थना की। तब अनुसूईया ने त्रिदेव को अपने पूर्व मूल रूप प्रदान किया और तभी से वह माता सती अनसूईया के नाम से प्रसिद्ध हुई। प्रसन्नचित्त त्रिदेवों ने देवी अनुसूईया को उनके गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। तब ब्रह्मा अंश से चंद्र, शंकर अंश से दुर्वासा व विष्णु अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ।

कुछ पुराणों में साधु वेश में त्रिदेवों के आने और निर्वस्त्र हो भोजन देने की मांग पर अनुसुईया के पति को स्मरण करने के स्थान पर उनके सीधे बाहर तपस्या कर रहे पति अत्रि मुनि के पास पहुँचने की बात कही गई है। अनुसूईया के द्वारा साधुओं की मांग की शर्त को सुनकर बाहर तपस्या कर रहे अत्रि मुनि ने कहा कि तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए आए हुए वे तीनों साक्षात परमात्मा ही हैं। तुम तो उनकी पुत्री के समान हो। वे तीनों हमारे समस्त जगत के माता-पिता है। माता- पिता के सामने निर्वस्त्र होने में किस बात की लज्जा है? जाओं तुम उनके उद्देश्य का पालन करों। जाते-जाते देवी अनुसूईया बड़े संकट में पड़ने के कारण यह सोचने लगती हैं कि अगर मैंने पतिव्रता धर्म का सही पालन किया है, और अपने पूरे तन, मन, वचन व कर्म से कर रही हूँ तो ये आए हुए तीनों ऋषि, मेरे नवजात शिशु हो जाएँ। यह सोचते हुए देवी अनुसूईया ऋषियों के बताए हुए नियमों का पालन करते हुए निर्वस्त्र होकर भोजन परोसने लगी। यह देखकर तीनों ऋषि नवजात शिशु हो गए और वो देवी अनुसूईया की गोद में खेलने लगे।

देवी अनुसुईया का संपूर्ण जीवन आदरणीय व अनुकरणीय रहा है। उनकी पवित्रता और उनका साध्वी रुप सभी विवाहित महिलाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत रहा है। माता अनुसूईया की छायाचित्र आज भी लोग घरों में लगाते हैं। नित्य उनकी दर्शन पाकर उनकी पवित्रता सबके मन में समा जाती हैं। लोग उन्हें सादर प्रणाम कर धन्य हो जाते हैं। और कन्याओं व स्त्रियों को माता अनसूईया के चरित्र की शिक्षा देते हैं। स्त्रियां माता सती अनुसुईया से पतिव्रता होने का आशीर्वाद पाने की कामना करती हैं। ऐसी मान्यता है कि पतिव्रता धर्म के लिए प्रसिद्ध माता अनुसुईया का अवतरण इस धरा पर बैशाख महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को हुआ था। इसलिए बैशाख कृष्ण चतुर्थी के दिन माता अनुसुईया जयंती मनाया जाता है।

इस अवसर पर इनकी प्रतिमा अथवा चित्र सजाकर या मंदिरों में विशेष पूजा, आरती की जाती है। विवाहित महिलाएं इस दिन व्रत का पालन कर सती अनुसुईया के दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लेती है। देवी अनुसुईया प्रसन्न होकर अपने भक्तों के दुःख दूर करती हैं और उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का वर देती है। इस वर्ष 2023 में बैशाख कृष्ण चतुर्थी 10 अप्रैल 2023 दिन सोमवार को पड़ने के कारण इस दिन माता अनुसूईया जयंती मनाई जाएगी। भारत के उतराखंड राज्य में देवी अनुसूईया के एक प्रसिद्ध व प्राचीन मंदिर में अनुसूईया के जन्म दिवस की पूजा- अर्चना, जप – रात्रि जागरण व अन्य गतिविधियों की शोभा देखते ही बनती है। पौराणिक मान्यता है कि इसी स्थल पर  त्रिदेव माता अनुसूईया की परीक्षा लेने के लिए आए थे और देवी से भोजन कराने की प्रार्थना की थी। देवी ने अपने सतीत्व से त्रिदेवों को पहचान लिया, इससे त्रिदेव असली रुप में आ गए। मान्यता है कि माता अनुसुईया से भगवान शिव दुर्वासा के रुप में मिले थे।

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By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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