Janmashtami 56 bhog: सनातन धर्म में हर पर्व का विशेष महत्व होता है. और हर पर्व-त्योंहार को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आने वाली है और इस त्योंहार का सनातन धर्म में विशेष महत्व होने के कारण बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है. यह त्यौहार हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है.श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है, और उनका जन्म अत्याचार और अधर्म से मानवता की रक्षा के लिए हुआ था.
हिंदू धर्मशास्त्रों में चार रात्रियों का विशेष महत्त्व बताया गया है. शिवरात्रि जिसे महारात्रि कहते है, दीपावली जिसे कालरात्रि कहते है, होली अहोरात्रि है तो कृष्ण जन्माष्ठमी को मोहरात्रि कहा गया है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से संबंधित कई कथाएं प्रचलित हैं, जैसे- भगवान श्रीकृष्ण जन्म के संयोग मात्र से ही बंदीगृह के सभी दरवाजे स्वतः ही खुल गए, सभी पहरेदार घोर निद्रा में चले गए. मां यमुना भगवान के चरण स्पर्श करने के लिए उफान पर आ गई. ऐसे भगवान श्रीकृष्ण को मोह लेने वाला अवतार माना गया है.
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56 भोग लगाने का कारण…
हर साल की तरह इसबार भी श्री कृष्ण जन्माष्टमी 26 अगस्त 2024 को मनाई जाएगी. इस दिन लोग शालिग्राम, लड्डू गोपाल के रूप में उनकी पूजा करते हैं और कुछ व्रत उपवास रखकर श्रीकृष्ण से विशेष प्रार्थना करते हैं. वहीं जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण जी को छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाते हैं. अब कई लोगों के दिमाग में ये सवाल है कि आखिर छप्पन भोग ही क्यों चढ़ाते हैं? जिसका जवाब बहुत कम लोगों को पता होगा. दरअसल, इसके पीछे दो रोचक कथाएं जुड़ी है, इसी से जुड़ी दो कथाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं……
गोपियों ने लगाया अपने कान्हा को भोग
प्रचलित कथाओं के अनुसार, एक बार गोकुल की गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए एक माह तक लगातार यमुना नदी में स्नान किया और माता कात्यायनी की पूजा की ताकि श्री कृष्ण ही उन्हें पति रूप में मिले. जब ये बात श्रीकृष्ण को पता चली तो श्री कृष्ण ने सभी गोपियों को उनकी इच्छापूर्ति होने का आश्वासन दिया. इसी से खुश होकर गोपियों ने श्रीकृष्ण के लिए अलग-अलग छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाएं.
दूसरी कथा गोवर्धन पर्वत से संबंधित
सबसे प्रचलित कथा के अनुसार, मान्यता है कि माता यशोदा अपने बाल गोपाल को रोज आठों पहर अर्थात दिन में 8 बार भोजन कराती थीं लेकिन जब श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पूजा के कराए जाने पर देवराज इंद्र बृजवासियों से नाराज हो गए थे तो उन्होंने क्रोध में खूब वर्षा बरसाई थी ताकि बृजवासी माफी मांगने पर मजबूर हो जाए लेकिन बृज वासियों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया और सभी बृज वासियों को इसी पर्वत के नीचे आने को कहा.
कथा के मुताबिक श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक बिना खाए-पिए गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा. जब इंद्र को अपनी भूल का अहसास हुआ तो उन्होंने खुद क्षमा मांगी. 7वें दिन जब बारिश रूकी तो उनकी मां यशोदा ने बृजवासियों संग मिलकर उन्होंने 7 दिनों के 8 पहर के हिसाब से कृष्णा के लिए छप्पन भोग बनाए थे. तभी से श्रीकृष्ण की पूजा में उन्हें छप्पन व्यंजनों का महाभोग लगाने की परंपरा है.