CID के पात्रों और आपराधिक मामले सुलझाने के उनके तौर-तरीके चुटकुलों का रूप लेकर भले ही ट्विटर और व्हाट्सएप पर मनोरंजन बिखेर रहे हों, 17वें साल में चल रहे इस टीवी शो ने निरंतरता का ऐसा कीर्तिमान बना दिया है जिसे किसी भी शो या सीरियल के लिए तोड़ पाना संभव नहीं लगता. यह सही है कि CID की कहानियों में पहले जैसा पैनापन नहीं रहा है. केस सुलझाने के तौर तरीके अव्यावहारिक लगते हैं. पात्रों की शैली कभी कभी हास्यास्पद लगती है. फिर भी CID बड़ी दर्शकों की भीड़ के साथ बिना किसी विराम के लगातार चल भी रहा है. यह शो सिर्फ एक व्यक्ति ने अपना सपना पूरा करने के लिए शुरू किया था. उस सपने ने एक नया इतिहास रच दिया है
CID बिना बाधा दौड़ रहा
देहरादून में जन्मे और डाक्युमेंटरी कैमरामैन के रूप में शुरू के दिनों में सक्रिय रहे बीपी सिंह ने 17 साल पहले CID की परिकल्पना की थी. फिल्म हो या टीवी शो एक व्यक्ति के बल पर वह न तो बन सकता है और लोकप्रिय भी नहीं हो सकता. एक टीम की लगन और मेहनत से यह संभव हो पाता है. पुणे के राष्ट्रीय फिल्म और टीवी प्रशिक्षण संस्थान से प्रशिक्षित बीपी सिंह भी मानते हैं कि CID की सफलता मुख्य रूप से उन लेखकों की वजह से संभव हो पाई है जो हफ्ते हर हफ्ते रोमांचक कहानियां लिख रहे हैं. लेकिन पिछले तीन साल से उनके दोस्त रहे CID के एससीपी प्रद्युमन (शिवाजी साटम) कहते हैं- CID की सफलता की सबसे बड़ी वजह बीपी सिंह का विजन है. कैमरामैन, निर्देशक और निर्माता का दायित्व संभालते हुए उन्होंने अपने कौशल से शो पर अच्छी पकड़ बनाई. उन्हीं की बनाई राह पर CID बिना बाधा दौड़ रहा है.
कोई भी शो ऐसा मुकाम हासिल नहीं कर पाया
पिछले बीस साल में जब से निजी चैनलों का जाल पसरा है, सालों साल किसी टीवी सीरियल का चलन अब अजीब नही लगता. लेकिन पारिवारिक उधेड़ बन की कहानी को रबड़ की तरह खींचने वाले ये सीरियल एक सीमा तक जाकर दम तोड़ देते हैं. ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ या ‘कुमकुम’ इसकी मिसाल है. लेकिन ‘सीआईडी’ एक ऐसी कसौटी बन गया है जिसे पार कर पाना किसी भी शो या सीरियल के लिए आसान नहीं होगा. एक या तो एपिसोड में एक कहानी को निबटा देने वाले सोनी टीवी के इस अपराध केंद्रित शो ने करीब सवा सात सौ कहानियों के नौ सौ से ज्यादा एपीसोड के साथ सोलह साल पूरे कर सत्रहवें साल में कदम रख दिया है.