नई दिल्ली। बुधवार को एक अध्ययन ने खराब नींद और मेटाबोलिक डिसफंक्शन-संबंधित स्टीटोटिक लिवर बीमारी (एमएएसएलडी) के बीच संभावित संबंध को साबित किया। एमएएसएलडी को पहले नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर डिजीज के नाम से जाना जाता था। यह सबसे सामान्य लिवर बीमारी है। यह बीमारी 30 प्रतिशत वयस्कों और 7 से 14 प्रतिशत बच्चों और किशोरों को प्रभावित करती है। इस बीमारी के 2040 तक वयस्कों के 55 प्रतिशत से अधिक को प्रभावित करने का अनुमान है।
पहले के अध्ययन में सरकेडियन क्लॉक और नींद चक्र में गड़बड़ी को एमएएसएलडी के विकास से जोड़ा गया था, लेकिन स्विट्जरलैंड के बेसल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का नया अध्ययन पहली बार यह दिखाता है कि एमएएसएलडी वाले मरीजों में सोने-जागने का तरीका स्वस्थ लोगों से अलग होता है। फ्रंटियर्स इन नेटवर्क फिजियोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र में टीम ने दिखाया कि एमएएसएलडी से पीड़ित मरीज रात में 55 प्रतिशत ज्यादा बार जागते हैं और सो जाने के बाद 113 प्रतिशत ज्यादा समय तक जागते रहते हैं, जबकि स्वस्थ व्यक्ति ऐसा नहीं करते।
Also Read : पश्चिम बंगाल : ममता बनर्जी के मंत्रिमंडल में बड़ा फेरबदल जल्द
एमएएसएलडी से पीड़ित मरीज दिन में अधिक बार और अधिक समय तक सोते हैं। बेसल यूनिवर्सिटी की पोस्ट डॉक्टरल शोधकर्ता डॉ. सोफिया शेफर ने कहा एमएएसएलडी से पीड़ित मरीजों की रात की नींद बार-बार टूटती है, क्योंकि बार-बार जागते हैं और ज्यादा देर तक जागते रहते हैं। टीम ने 46 वयस्क महिलाओं और पुरुषों को शामिल किया, जिन्हें एमएएसएलडी या एमएएसएच के साथ सिरोसिस था।
फिर इनका मुकाबला 8 मरीजों से किया गया, जिन्हें एमएएसएच से संबंधित लिवर सिरोसिस नहीं था। इनकी तुलना 16 वर्षीय-समान उम्र वाले स्वस्थ वॉलंटियर से भी की गई। प्रत्येक अध्ययन में शामिल होने वाले व्यक्ति को एक एक्टीग्राफ कलाई पर पहनाया गया था, जो एक सेंसर के जरिए मोटर गतिविधि (ग्रोस मोटर एक्टिविटी), प्रकाश, शारीरिक गतिविधि और शरीर का तापमान ट्रैक करता था। इसे हमेशा पहना जाता था।
Also Read : बांग्लादेश ने 15 साल बाद वेस्टइंडीज में जीता टेस्ट मैच
परिणामों से पता चला कि एक्टीग्राफ द्वारा मापी गए नींद के पैटर्न और गुणवत्ता एमएएसएच, एमएएसएच के साथ सिरोसिस और गैर-एमएएसएच संबंधित सिरोसिस वाले मरीजों में समान रूप से प्रभावित थे। इसके अलावा, एमएएसएलडी से पीड़ित 32 प्रतिशत मरीजों ने मानसिक तनाव के कारण नींद में गड़बड़ी का अनुभव होने की बात कही, जबकि स्वस्थ प्रतिभागियों में यह आंकड़ा केवल 6 प्रतिशत था। डॉ. सोफिया शेफर ने कहा, “परिणामों से पता चला कि नींद का टूटना मानव एमएएसएलडी के विकास में एक भूमिका निभाता है।