Pitru Paksha 2024: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष यानि श्राद्ध का अत्यधिक महत्व होता है. पितृ पक्ष यानि श्राद्धों में दिवंगत पूर्वजों को स्मरण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर होता है. भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक श्राद्ध चलते है. इस 16 दिवसीय पर्व में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं. श्राद्ध के दौरान तर्पण, पिंडदान और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है. इस समय में कौवे को भोजन कराना एक अत्यंत महत्वपूर्ण और शुभ कार्य माना जाता है, क्योंकि इसे पितरों तक अन्न पहुंचाने का माध्यम माना गया है. ( Pitru Paksha 2024)
मान्यता के अनुसार, पितृपक्ष में किए गए श्राद्ध कर्म का भोजन कौवे को खिलाने से पितरों को मुक्ति और शांति मिलती है, जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. इससे पितृ प्रसन्न होकर साधक को आशीर्वाद देते हैं, और यदि साधक की कुंडली में पितृदोष हो, तो उसे पितृदोष से भी छुटकारा मिलता है. पितरों को प्रसन्न करने और पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए पितृ पक्ष में कौवे को भोजन खिलाना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. लेकिन सवाल यह उठता है कि पितृपक्ष में कौवे को ही भोजन क्यों कराया जाता है? ( Pitru Paksha 2024)
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श्राद्धों में कौवे को ही भोजन करना शुभ क्यों…( Pitru Paksha 2024)
1. माना जाता है यमदूत का प्रतीक
हिंदू धर्म में कौवे को यमदूत का वाहन और यम का प्रतीक माना जाता है. यमराज मृत्यु के देवता हैं. मान्यता है कि पितरों (पूर्वजों) की आत्माएं पितृपक्ष के दौरान पृथ्वी पर आती हैं और कौए के रूप में भोजन ग्रहण करती हैं. जब हम कौए को भोजन खिलाते हैं,तो यह माना जाता है कि हम अपने पितरों को संतुष्ट कर रहे हैं और उनकी आत्माओं की तृप्ति कर रहे हैं.
2. पितरों का संदेशवाहक
कुछ मान्यताओं के अनुसार, कौवे को पितरों का संदेशवाहक भी माना जाता है. इसलिए पितृपक्ष में कौवे को भोजन खिलाकर पितरों का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है.
भगवान राम ने दिया था आशीर्वाद
कौए का संबंध भगवान राम से भी माना जाता है. जिसका जिक्र एक पौराणिक कथा में है. कथा के अनुसार, एक बार एक कौए ने माता सीता के पैर में चोंच मार दी. इससे माता सीता के पैर में घाव हो गया. माता सीता को पीड़ा में देख कर भगवान राम क्रोधित हो गए और उन्होंने तीर चलाकर उस कौवे को घायल कर दिया. ( Pitru Paksha 2024)
इसके बाद कौवे को अपनी गलती का अहसास हुआ तो उसने माता सीता और प्रभु श्रीराम से माफी मांगी. प्रभु श्रीराम ने कौए को तुरंत माफ कर दिया और वरदान दिया कि अब तुम्हारे ही माध्यम से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होगी. तभी से पितृ पक्ष में कौए को भोजन कराने की ये परंपरा सदियों से चली आ रही है.