Janmashtami 2024: भगवान श्रीकृष्ण के वैसे तो कई नाम है लेकिन आमतौर पर उन्हें प्यार करने के लिए बाल गोपाल के नाम से पुकारते है। भगवान श्रीकृष्ण के शीष पर मोरपंख धारण करने की परंपरा उनके अद्वितीय और प्रिय स्वरूप का प्रतीक है। मोरपंख का श्रीकृष्ण से गहरा संबंध है। माना जाता है कि मोरपंख श्रीकृष्ण के दिव्य और चंचल व्यक्तित्व को दर्शाता है। भगवान श्रीकृष्ण के मोरपंख धारण करने के बाद से मोरपंख को और अधिक पवित्र माना जाता है। (Janmashtami 2024)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मोरपंख भगवान श्रीकृष्ण के प्रति मोरों के विशेष स्नेह और प्रेम का प्रतीक है। एक कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण अपनी बांसुरी बजाते थे, तो मोर उनके पास आकर नृत्य करने लगते थे. मोरपंख उनके नृत्य का प्रतीक बन गया, जिसे भगवान ने अपने सिर पर धारण कर लिया।
माता यशोदा करती थी मोरपंख का श्रंगार
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस वर्ष 26 अगस्त 2024 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जाएगी। इस दिन कई भक्त भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को अपने घर में स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।(Janmashtami 2024)
धार्मिक ग्रंथों में भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी अनेक लीलाएं और मान्यताएं हैं। आपने अक्सर देखा होगा कि भगवान श्रीकृष्ण अपने मुकुट में मोरपंख धारण करते थे, जिसके कारण उन्हें मोर मुकुटधारी भी कहा जाता है। माता यशोदा अक्सर कान्हा का बड़े प्रेम से श्रृंगार करती थीं और उनके मुकुट पर मोरपंख सजाती थीं। इस लेख में हम उन्हीं कथाओं के माध्यम से जानेंगे कि क्यों कान्हा के मुकुट पर हमेशा मोरपंख सजाया जाता है, और इसके पीछे छिपा है क्या धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व।
श्रीराम ने दिया वरदान
धार्मिक कथा के मुताबिक, जब भगवान विष्णु ने त्रेता युग में श्रीराम के रूप में अवतार लिया और जब श्रीराम अपनी पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण सहित 14 वर्ष के लिए वनवास गए थे। तभी वन में सीता को रावण हर कर ले गया था। तब राम और लक्ष्मण सीता को खोजते हुए वन वन भटक रहे थे और सभी से सीता का पता पूछ रहे थे कि क्या उन्होंने सीता को कहीं देखा है? तब एक मोर ने कहा कि प्रभु मैं आपको रास्ता बता सकता हूं कि रावण सीता माता को किस ओर ले गया है, पर मैं आकाश मार्ग से जाऊंगा और आप पैदल।
मगर आप रास्ता भटक सकते हैं इसलिए मैं अपना एक एक पंख गिराता हुआ जाऊंगा जिससे आप रास्ता ना भटके और इस तरह मोर ने श्री राम को रास्ता बताया परंतु अंत में वह मरणासन्न हो गया (Janmashtami 2024) क्योंकि मोर के पंख एक विशिष्ट मौसम में अपने आप ही गिरते हैं ,अगर इस तरह जानबूझ के पंख गिरे तो उसकी मृत्यु हो जाती है। श्रीराम ने उस मोर को कहा कि वे इस जन्म में उसके इस उपकार का मूल्य तो नहीं चुका सकते परंतु अपने अगले जन्म में उसके सम्मान में पंख को अपने मुकुट में धारण करेंगे और इस तरह श्रीकृष्ण के रूप में विष्णु ने जन्म लिया और अपने मुकुट में मोर पंख को धारण किया।
पवित्र पक्षी होने के कारण भगवान का प्रिय
श्रीकृष्ण के मोर पंख धारण करने के पीछे एक प्रचलित कहानी है कि मोर ही सिर्फ ऐसा पक्षी है, जो जीवन भर ब्रह्मचर्य रहता है। ऐसा कहा जाता है कि मादा मोर नर मोर के आंसू पीकर गर्भ धारण करती है। इस प्रकार श्री कृष्ण ऐसे पवित्र पक्षी के पंख को अपने माथे पर सजाते हैं। ज्योतिष मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की कुंडली में कालसर्प योग था। मोर और सांप की दुश्मनी है। यही वजह है कि कालसर्प योग में मोर पंख को साथ रखने की सलाह दी जाती है। कालसर्प दोष का प्रभाव करने के लिए भी भगवान कृष्ण मोरपंख को सदा साथ रखते थे।