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झारखंड में खामोश क्रांति से नदियों को मिल रहा नया जीवन

रांची। झारखंड (Jharkhand) की राजधानी रांची से बमुश्किल 30 किलोमीटर दूर खूंटी (Khunti) जिले में एक खामोश क्रांति चल रही है। यहां की छोटी-छोटी नदियों में तपती हुई गर्मी के बीच भी पानी है। सैकड़ों गांवों में जल स्रोतों में पर्याप्त पानी है। खेतों की सिंचाई, मवेशियों के चारा-पानी, नहाने-धोने के लिए पानी (water) की कमी नहीं है।

खूंटी जिले के कर्रा, मुरहू से लेकर अड़की, खूंटी और तोरपा प्रखंडों में मरती हुई नदियों, प्राकृतिक नालों, जल स्रोतों को पिछले पांच सालों से चल रहे एक सामुदायिक अभियान (community campaign) ने नई जिंदगी दी है। स्थानीय ग्रामीणों, ग्राम सभाओं के अलावा जिला प्रशासन के अफसर, जनप्रतिनिधि और जनसेवा वेलफेयर सोसायटी नामक संस्था इस अभियान की भागीदार है। इस अभियान के तहत नदियों, नालों पर जगह-जगह बालू की बोरियों से बांध बनाकर बेकार बह जाने वाले पानी को रोका जा रहा है।

अब तक 300 से भी ज्यादा जगहों पर लोगों ने श्रमदान कर बोरियों की मदद से बांध बनाए हैं। इस अभियान की बदौलत इलाके की नदियों से बालू के अवैध उत्खनन पर रोक लगी है। श्रमदान के लिए एक साथ सैकड़ों लोगों के जुटने से सामुदायिकता की भावना मजबूत हुई है और इसके जरिए कई दूसरी समस्याओं के समाधान की राह भी निकलने लगी है।

इस अभियान के सूत्रधारों में एक हैं अजय शर्मा जो खूंटी के ही रहने वाले हैं। पेशे से पत्रकार हैं।

शर्मा बताते हैं कि गर्मी के दिनों में मुरहू की तजना नदी, बनई नदी, तोरपा की कारो नदी सहित तमाम जल स्रोतों के सूखने से पेयजल, खेती से लेकर नहाने, मवेशियों को पानी पिलाने तक का संकट हो रहा था। उन्होंने और उनके साथियों ने जनसेवा वेलफेयर सोसाइटी बनाकर नदियों के पानी को प्राकृतिक तरीके से रोकने के लिए कुछ करने का संकल्प लिया।

फिर वर्ष 2018 में इसकी शुरूआत तपकरा गांव से हुई। गांव के लोग फावड़ा-बेलचा-कड़ाही लेकर इकट्ठा हुए। रांची में उन दिनों रिंग रोड के निर्माण में सीमेंट का काम बड़े पैमाने पर चल रहा था। सोसायटी ने वहां से सीमेंट की खाली बोरियां मंगाई। ग्रामीणों ने इन बोरियों में बालू भरकर कुछ ही घंटों में नदी पर बांध बना डाला।

इसके बाद सभी लोगों ने एक साथ मिलकर यहीं खिचड़ी पकाई और सामूहिक भोज किया। सामूहिक सहयोग के इस अभियान को मदईत (मदद) और जनशक्ति से जल शक्ति तक का नाम दिया गया। नतीजा यह हुआ कि उस साल तपकरा में पानी का संकट नहीं हुआ।

इस अभियान में शुरूआत से ग्रामीण सबीता सांगा, निखिल गुप्ता, देवा हस्सा, मो शकील पाशा, संदीप कुमार गुप्ता, सुशील सोय सहित कई लोग जुड़े थे।

अवैध तरीके से बालू के उत्खनन के कारण मुरहू की बनई नदी का अस्तित्व खतरे में था। ग्रामीण इसकी स्थिति देख परेशान थे क्योंकि यह मुरहू की जीवनधारा कही जाती थी। जिला प्रशासन और सेवा वेलफेयर सोसायटी के साथ ग्रामीणों ने मिलकर इसे नई जिंदगी देने की योजना पर काम किया और अब इसमें सफलता भी मिली है।

ग्रामीणों ने जिला प्रशासन और सेवा वेलफेयर सोसायटी के साथ मिलकर इस नदी पर दस सीरियल बोरी बांध बनाए जिसका परिणाम अब दिख रहा है। बोरी बांध बनने के बाद गानालोया पंप हाउस से लेकर घघारी गांव तक नदी में 12 किलोमीटर तक लबालब पानी भरा हुआ है।

बनई नदी करीब पचास किलोमीटर लंबी है और इसी नदी में खूंटी का मशहूर पर्यटन स्थल पंचघाघ भी स्थित है। एक समय हाल ये था कि नदी सूखने के कगार पर पहुंच गई थी। पंचघाघ में पानी कम होने के कारण यहां भी पर्यटकों का आना कम हो गया था। हालात देखकर हमने नदी पर बोरी बांध बनाने की ठानी और अब नदी में भरपूर पानी है।

बीते 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस के दिन मुरहू-अड़की की सीमा पर इस नदी पर लोगों ने 300 फीट लंबा बोरी बांध बना दिया। इस दिन श्रमदान में जिले के डीसी शशिरंजन, एसपी अमन कुमार, डीडीसी नीतीश कुमार सिंह और एसडीओ अनिकेत सचान ने भी हिस्सा लिया। जिला पुलिस के जवान भी श्रमदान के लिए आगे आ रहे हैं। आगामी 16 मई को मड़गांव में इसी तरह बोरी बांध बनाने का एकदिवसीय अभियान आयोजित किया जाने वाला है, जिसमें कई अफसर और जनप्रतिनिधि भी भाग लेंगे।

खूंटी जिले में दर्जनों छोटी पहाड़ी नदियां, बरसाती नाले और जलस्रोत हैं, लेकिन इनका पानी गर्मी में या तो सूख जाता था या फिर बेकार चला जाता था। बालू के अवैध खनन, जंगलों की कटाई और अतिक्रमण से ऐसी कई नदियों और जल स्रोतों का वजूद मिट रहा था।

इस अभियान ने खूंटी सदर प्रखंड अंतर्गत फुदी गांव की चुनघट्टी नदी, तोरपा प्रखंड में चारो और चेंगरझोर नदी, अड़की में नरदा नदी और मुरहू में तजना एवं बनई नदी को नई जिंदगी दी है। नदी में पानी रहने से आसपास के जल स्रोत भी रिचार्ज हो गये हैं। वहीं गांव के लोगों की पानी की किल्लत भी दूर हो गयी है।

नदी को बचाने के लिए कई गांव के लोगों ने अपने सीमान से बालू के अवैध खनन पर भी रोक लगा दी है। नदी में पानी रहने से अब गांव वालों को मवेशियों को पानी पिलाने और नहाने-धोने में किसी किस्म की दिक्कत नहीं हो रही है। वहीं बच्चे भी नदी में खूब जलक्रीड़ा कर रहे हैं।

अभियान के बाबत सुनील ठाकुर ने बताया कि 350 से ज्यादा ग्राम सभाओं के जरिए लोगों को पानी बचाने के लिए जागरूक किया गया है। जिस गांव में बोरी बांध बनाना होता है, वहां ग्राम सभा की सहमति ली जाती है। लोग ग्राम सभा में जाकर रायशुमारी करते हैं। बांध से होने वाले फायदे बताए जाते हैं। इसके बाद तय तिथि को सारे लोग मिलकर बांध बनाते हैं। फिर खिचड़ी भोज का आयोजन होता है। भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने इस अभियान को वर्ष 2020 में राष्ट्रीय जल शक्ति पुरस्कार के लिए चुना था। (आईएएनएस)

By NI Desk

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