नई दिल्ली। पैसिव स्मोकिंग (Passive Smoking), जिसे सेकेंड हैंड स्मोक के रूप में भी जाना जाता है, बच्चों के स्वास्थ्य के समक्ष एक खतरा है। यह बात शनिवार को विशेषज्ञों ने कही। पैसिव स्मोकिंग के कारण बच्चों में श्वसन संबंधी समस्याएं, अचानक शिशु मृत्यु सिंड्रोम (एसआईडीएस), कान में संक्रमण, विकास संबंधी समस्याएं और भविष्य में हृदय रोग का खतरा रहता है। इसे रोकने के लिए घर को धूम्रपान से मुक्त रखना और बच्चों को सार्वजनिक धूम्रपान क्षेत्रों से बचना आवश्यक है। धूम्रपान छोड़ने के कार्यक्रमों का समर्थन और परिवार के सदस्यों को जागरूक करना भी बच्चों की सुरक्षा में मदद कर सकता है। फोर्टिस एस्कॉर्ट्स अस्पताल (Fortis Escorts Hospital) के निदेशक और एचओडी, पल्मोनोलॉजी, रवि शेखर झा ने आईएएनएस को बताया, “पैसिव स्मोकिंग से बच्चों में श्वसन संबंधी समस्याएं, एसआईडीएस, कान में संक्रमण, विकास संबंधी समस्याएं और भविष्य में हृदय रोग की आशंका रहती है।
इसे रोकने के लिए घर को धूम्रपान मुक्त बनाए रखना और बच्चों को सार्वजनिक धूम्रपान क्षेत्रों से दूर रखना चाहिए। धूम्रपान छोड़ने के कार्यक्रमों का समर्थन करना और परिवार के सदस्यों को जागरूक करना भी बच्चों की सुरक्षा में मदद कर सकता है। उन्होंने कहा पैसिव स्मोकिंग (Passive Smoking) बच्चों को हानिकारक रसायनों के संपर्क में लाता है, इससे श्वसन संक्रमण, अस्थमा और एसआईडीएस का खतरा बढ़ जाता है। यह फेफड़ों के विकास को भी बाधित कर सकता है, इससे दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। पैसिव स्मोकिंग के परिणाम तत्काल और दीर्घकालिक दोनों हैं। अल्पकालिक संपर्क से आंखों, नाक और गले में जलन हो सकती है, साथ ही खांसी, सिरदर्द और सांस लेने में कठिनाई हो सकती है।
समय के साथ पैसिव स्मोकिंग (Passive Smoking) से फेफड़ों के कैंसर, हृदय रोग, स्ट्रोक और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) जैसी गंभीर स्थितियों के विकसित होने का जोखिम बढ़ जाता है। सीके बिरला अस्पताल के क्रिटिकल केयर और पल्मोनोलॉजी के प्रमुख कुलदीप कुमार ग्रोवर ने आईएएनएस को बताया, “पैसिव स्मोकिंग के दुष्प्रभाव तत्काल और लंबे समय तक रहने वाले हैं। अल्पावधि में, इसके संपर्क में आने से आंख, नाक और गले में जलन, खांसी, सिरदर्द और सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। समय के साथ, पैसिव स्मोकिंग से फेफड़ों के कैंसर, हृदय रोग (Heart Disease), स्ट्रोक और सीओपीडी जैसी गंभीर स्थितियों के विकसित होने का जोखिम बढ़ जाता है। उन्होंने यह भी कहा, “विशेष रूप से शिशु और बच्चे सेकेंड हैंड स्मोकिंग के हानिकारक प्रभावों के प्रति संवेदनशील होते हैं, जिन्हें श्वसन संक्रमण, अस्थमा, कान के संक्रमण और एसआईडीएस का अधिक खतरा रहता है।
बच्चों में पैसिव स्मोकिंग को रोकने के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। घर और कार को धूम्रपान मुक्त रखना, बच्चों के आसपास धूम्रपान से बचना और सार्वजनिक धूम्रपान क्षेत्रों से दूर रहना आवश्यक कदम हैं। सेकेंड हैंड स्मोकिंग के खतरों के बारे में लोगों को शिक्षित करना और धूम्रपान करने वालों को इसे छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करना भी महत्वपूर्ण उपाय हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि कानूनी उपायों को जन जागरूकता अभियानों के साथ जोड़कर, पैसिव स्मोकिंग के हानिकारक परिणामों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
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