Chhath Puja History: दिवाली के समाप्त होते ही छठ पूजा की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो जाती हैं। यह त्योहार खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए अत्यधिक महत्व रखता है। छठ का महापर्व चार दिनों तक मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत “नहाय-खाय” से होती है और समापन उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर किया जाता है। इस व्रत में श्रद्धालु लगातार 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखते हैं। क्या आप जानते हैं कि इस व्रत की शुरुआत कैसे हुई थी? इसके संदर्भ में कई कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं। पुराणों में भी छठ पर्व से जुड़ी कई कहानियों का उल्लेख मिलता है, जो इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाती हैं
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माता सीता ने किया था व्रत
बिहार में छठ पूजा से जुड़ी कई प्रचलित मान्यताएं हैं जिसमें से एक मान्यता यह है कि सबसे पहले छठ पूजा का व्रत माता सीता ने किया था. मान्यता के अनुसार जब भगवान राम-माता सीता और लक्ष्मण 14 वर्ष के वनवास से वापस अयोध्या लौटे थे, तब रावण के वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजयज्ञ सूर्य करने का उन्होंने फैसला लिया. इसके लिए मुग्दल ऋषियों को आमंत्रित किया. मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया. इसके बाद माता सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव दी पूजा की और सप्तमी को सूर्योदय होने पर फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया.
द्रौपदी ने किया छठ व्रत
एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत काल में छठ महाव्रत की शुरुआत हुई थी. इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्य के पुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके की थी. कर्ण सूर्य भगवान के परम भक्त थे. वह घंटों तक पानी मे खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे और सूर्य देव की कृपा से ही वह महान योद्धा बने. आज भी महापर्व छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है. इसके अलावा यह भी कथा प्रचलित है जब पांडव अपना पूरा राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने छठ का महाव्रत किया था. इस व्रत को करने से द्रौपदी की सभी मनोकामनाएं पूरी हुई और पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया.