Bhadli Navami2024: 15 जुलाई , सोमवार को आषाढ़ शुक्ल नवमी है. देवशयनी एकादशी से पहले इस दिन सभी शुभ कार्य किए जाएंगे. 15 जुलाई सोमवार का दिन अबुझ मुहूर्त का दिन माना जा रहा है. इस कारण इसे भड़ली नवमी भी कहा जाता है. आषाढ़ शुक्ल नवमी को आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि भी खत्म हो रही है. देवशयनी एकादशी 17 जुलाई को है और इससे पहले आने वाली भड़ली नवमी को अबुझ मुहूर्त माना जाता है. इस दिन विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश या नए काम की शुरुआत कर सकते हैं. इस दिन बिना मुहूर्त देखे भी मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं. उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार भड़ली नवमी गुप्त नवरात्रि की अंतिम तिथि भड़ली नवमी पर गणेश जी, शिव जी और देवी दुर्गा की विशेष पूजा करनी चाहिए. जरूरतमंद लोगों को धन, अनाज, छाता, जूते-चप्पल, कपड़े का दान करना चाहिए. जानिए भड़ली नवमी पर कौन-कौन से शुभ काम किए जा सकते हैं…
प्रथम पूज्य से करें दिन की शुरूआत
आषाढ़ शुक्ल नवमी को बिना मुहूर्त देखे सभी शुभ कार्य किए जा सकते है. वैसे तो सभी कार्य प्रथम पूज्य गणेश जी के पूजन से ही शुरू होते है. कोई पूजा या फिर कोई शुभ काम की शुरूआत करने से पहले हम सभी श्रीगणेश की पूजा-अर्चना करते है जिससे हमारे सभी कार्य सफल हो सकें. तो भड़ली नवमी के शुभ दिन को भी सर्वप्रथम गणेशजी के पूजन से शुरू करेंगे. श्रीगणेश को पंचामृत से स्नान कराएं और इसके बाद हार-फूल और वस्त्रों से श्रृंगार करें. प्रथमपूज्य गजानन को चंदन का तिलक लगाकर ऊँ गं गणेशाय नम: मंत्र का जाप करें. गणेशजी को भोग के रूप में दूर्वा और लड्डू को भोग लगाएं . धूप-दीप जलाकर आरती कर अपनी मनोकामना की कामना करें.
एक साथ करें शिव-पार्वती की पूजा
भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए एक लौटा जल ही पर्याप्त है. सच्चे मन से महादेव से जो कुछ भी मांगते है भगवान अवश्य ही फल की प्राप्ति देते है. हर हर महादेव के जयकारे के साथ शिवलिंग पर तांबे के लोटे से जल चढ़ाएं. भगवान भोलेनाथ को पंचामृत अर्पित करें. इसके बाद फिर से जल चढ़ाएं. पंचामृत 5 तत्वों से मिलकर बना होचता है. दूध, दही, घी, मिश्री और शहद के मिश्रण से पंचामृत बनाया जाता है. शिवलिंग का अभिषेक करने के बाद चंदन का लेप करें. इसके बाद बिल्व पत्र, हार-फूल, आंकड़े के फूल, धतूरा आदि पूजन सामग्री चढ़ाएं. भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए दीपक जलाएं और ऊँ उमामहेश्वराय नम: मंत्र का जप करें. मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष की माला का इस्तेमाल करें. शिव जी के साथ ही देवी पार्वती की भी पूजा करें. देवी मां को लाल चुनरी और लाल फूल चढ़ाएं. देवी दुर्गा पार्वती जी का ही एक रूप हैं. शिव-पार्वती की पूजा पति-पत्नी को एक साथ करनी चाहिए. ऐसा करने से घर-परिवार सुख-शांति और आपसी प्रेम बना रहता है।
दो ऋतुओं के संधिकाल में आती है नवरात्रि
गुप्त नवरात्रि में देवी सती की महाविद्याओं के लिए साधना की जाती है. ये साधनाएं तंत्र-मंत्र से जुड़े साधक ही करते हैं. इन दस महाविद्याओं में मां काली, तारा देवी, षोडषी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, और कमला देवी शामिल हैं. नवरात्रि का संबंध ऋतुओं से है। जब दो ऋतुओं का संधिकाल रहता है, उस समय देवी पूजा का ये पर्व मनाया जाता है. संधिकाल यानी एक ऋतु के खत्म होने का और दूसरी ऋतु के शुरू होने का समय. एक साल में चार बार ऋतुओं के संधिकाल में नवरात्रि आती है.