नई दिल्ली। विदेशी शासकों या हमलावरों के नाम पर रखे गए शहरों, इमारतों, संस्थानों या सड़कों आदि के नाम बदलने के लिए एक आयोग बनाने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है। याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी भी कि और कहा कि याचिकाकर्ता इससे क्या हासिल करना चाहता है। अदालत ने यह भी कहा कि अंग्रेजों के बांटो और राज करो की नीति को वापस लाने की जरूरत नहीं है।
भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर बड़े सवाल उठाए। अदालत ने कहा- आप इस याचिका से क्या हासिल करना चाहते हैं? क्या देश में और कोई मुद्दे नहीं हैं? इसमें कोई शक नहीं है कि भारत पर कई बार हमला किया गया, राज किया गया, यह सब इतिहास का हिस्सा है। अदालत ने कहा- आप सेलेक्टिव तरीके से इतिहास बदलने को नहीं कह सकते। अब इस मामले में जाकर क्या फायदा है? गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों में कई शहरों, सड़कों, इमारतों आदि के नाम बदले गए हैं।
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- देश अतीत का कैदी नहीं रह सकता। यह धर्मनिरपेक्षता, संवैधानिकता और राज्य की कार्रवाई में निष्पक्षता से जुड़ा है। जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा- भारत आज एक धर्मनिरपेक्ष देश है। आपकी उंगलियां एक विशेष समुदाय पर उठाई जा रही हैं, जिसे बर्बर कहा जा रहा है। क्या आप देश को उबलते हुए रखना चाहते हैं? हम धर्मनिरपेक्ष हैं और संविधान की रक्षा करने वाले हैं। उन्होंने कहा- आप अतीत के बारे में चिंतित हैं और वर्तमान पीढ़ी पर इसका बोझ डालने के लिए इसे खोद रहे हैं। इस तरीके से और अधिक वैमनस्य पैदा होगा। भारत में लोकतंत्र कायम है।