नई दिल्ली। अडानी-हिंडनबर्ग मामले में सुप्रीम कोर्ट की बनाई विशेषज्ञ समिति को कोई गड़बड़ी नहीं मिली है। जस्टिस एएम सप्रे कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि पहली नजर में मौजूदा कानूनों और नियमों का किसी तरह का उल्लंघन नहीं पाया गया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई यह रिपोर्ट शुक्रवार को सार्वजनिक हुई। इसमें एक तरह से विशेषज्ञ कमेटी ने अडानी समूह को क्लीन चिट दी है। इसके बाद कांग्रेस ने इस रिपोर्ट पर सवाल उठाया और कहा कि पहले से ही ऐसी रिपोर्ट आने का अंदेशा था।
विशेषज्ञ समिति ने कहा है कि अडानी के शेयरों की कीमत में कथित हेरफेर के पीछे सेबी की नाकामी थी, अभी इस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता है। कमेटी ने यह भी कहा कि ग्रुप की कंपनियों में विदेशी फंडिंग पर सेबी की जांच बेनतीजा रही है। गौरतलब है कि चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने दो मार्च को अडानी-हिंडनबर्ग मामले में छह सदस्यों की विशेषज्ञ समिति बनाई थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट छह मई को सौंप दी थी। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज जस्टिस एएम सप्रे इस कमेटी के प्रमुख थे। उनके साथ इस कमेटी में जस्टिस जेपी देवधर, ओपी भट, एमवी कामथ, नंदन नीलेकणि और सोमशेखर सुंदरेसन शामिल थे।
बहरहाल, इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अडानी ग्रुप द्वारा पहली नजर में किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं किया गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि सेबी ने भी अडानी समूह की ओर से दी गई जानकारी को गलत नहीं बताया है। इस रिपोर्ट में शेयरों की कीमत में बढ़ोतरी को लेकर कहा गया है कि शेयरों की कीमत बढ़ने में कानूनों का उल्लंघन नहीं हुआ। साथ ही यह भी कहा गया है सेबी को कीमतों में बदलाव की पूरी जानकारी थी और अडानी ग्रुप ने शेयरों की कीमतों को प्रभावित नहीं किया।
विशेषज्ञ समिति ने कहा है कि अडानी की कंपनियों में गैरकानूनी निवेश के सबूत नहीं मिले। इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद शॉर्टसेलरों ने मुनाफा कमाया, इसकी जांच होनी चाहिए। समिति ने कहा कि अडानी ग्रुप के शेयरों में खुदरा निवेश 24 जनवरी के बाद कई गुना बढ़ गया है। इसमें ये भी कहा गया है कि अडानी समूह की ओर से उठाए गए कदमों से विश्वास पैदा करने में मदद मिली और शेयरों के भाव अब स्थिर हैं।