नई दिल्ली। नए संसद भवन के उद्घाटन के विवाद में एक और मुद्दा जुड़ गया है। कांग्रेस ने सत्ता हस्तांतरण के तौर पर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को सेंगोल यानी राजदंड सौंपे जाने के भाजपा के दावे के खारिज किया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक प्रेस कांफ्रेंस करके बताया कि नए संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐतिहासिक सेंगोल यानी राजदंड स्थापित करेंगे, जिसे तमिलनाडु के 20 से अधिक अधीनम यानी मठ प्रमुखों ने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को दिया था। शाह की प्रेस कांफ्रेंस के बाद भाजपा के कई नेताओं ने यह दावा किया है।
कांग्रेस ने भाजपा के इस दावे को खारिज किया है कि 1947 में अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल का इस्तेमाल किया गया था। कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने कहा- इस बात के कोई दस्तावेजी सबूत नहीं हैं कि लॉर्ड माउंटबेटन, सी राजगोपालाचारी और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस राजदंड सेंगोल को अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना था। राजगोपालाचारी के दोनों जीवनीकारों में से किसी ने भी इस बारे में बात नहीं की है।
रमेश ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार और उसके ढोल बजाने वाले तमिलनाडु में अपने राजनीतिक अंत के लिए औपचारिक राजदंड का इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने कहा- इस बारे में जो भी दावे किए जा रहे हैं, वे सब फर्जी हैं। दूसरी ओर भाजपा ने दावा किया है कि अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण को चिह्नित करने के लिए सेंगोल को पहले प्रधानमंत्री नेहरू को सौंप दिया गया था। केंद्र सरकार और भाजपा के नेताओं ने अपने दावों में तमिलनाडु की मैगजीन ‘तुगलक’ से लेकर अमेरिका के ‘टाइम’ मैगजीन तक कई खबरों का हवाला दिया है।
भाजपा ने कांग्रेस पर पवित्र सेंगोल को सोने की छड़ी कह कर हिंदू परंपराओं का अपमान करने और इसे म्यूजियम में रखने का आरोप भी लगाया है। बताया जा रहा है कि सेंगोल प्रयागराज में नेहरू के पैतृक घर आनंद भवन में था। यह भी कहा जा रहा है कि आनंद भवन से बाद में इसे इलाहाबाद म्यूजियम में भेज दिया गया था। बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी 28 मई को नई संसद भवन का उद्घाटन करेंगे। इसके बाद इस सेंगोल को लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित किया जाएगा।
कांग्रेस के साथ साथ डीएमके ने भी सेंगोल स्थापित किए जाने पर सवाल उठाया है। डीएमके नेता टीकेएस इलंगोवन ने कहा है- सेंगोल राजशाही का प्रतीक था न कि लोकतंत्र का। यह राजनीतिक दलों द्वारा नहीं, बल्कि मठ द्वारा दिया जाता है। उन्होंने उस समय भारत को आजादी मिलने पर एक सेंगोल दिया था। इन चीजों का लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है। ये राजशाही का प्रतीक है।