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समलैंगिक जोड़ों के लिए सरकार क्या कर सकती है?

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार से पूछा है कि वह समलैंगिक जोड़ों के लिए क्या कर सकती है? समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने में सरकार की हिचक और उसके विरोध को देखते हुए गुरुवार को सुनवाई के छठे दिन चीफ जस्टिस ने पूछा कि अगर उनकी शादी को मान्यता नहीं दी जाती है तो सरकार उनके लिए क्या कर सकती है। अदालत ने केंद्र से पूछा कि समलैंगिक जोड़ों की बैंकिंग, बीमा, दाखिले आदि जैसी सामाजिक आवश्यकताओं पर केंद्र का क्या रुख है?

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार की सुनवाई में कहा कि समलैंगिक जोडों के लिए केंद्र को कुछ करना होगा। केंद्र बताए कि समलैंगिक जोड़ों की शादी को कानूनी मान्यता के बिना सामाजिक मुद्दों की अनुमति दी जा सकती है? सर्वोच्च अदालत ने तीन मई तक इस मामले में सरकार से जवाब मांगा है। गौरतलब है कि समलैंगिक शादी के मामले में केंद्र सरकार ने अलग-अलग कानूनों पर प्रभाव का हवाला दिया है। इनमें घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना, रेप, शादी, कस्टडी, भरण पोषण और उत्तराधिकार के कानूनों पर सवाल उठाए गए हैं।

इस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा- हम गठबंधन की व्यापक भावना का कुछ तत्व चाहते हैं। लंबे समय तक साथ रहना भी शादी ही होती है। कानून का मामला संसद पर छोड़े जाने की केंद्र सरकार की दलील का हवाला देते हुए उन्होंने कहा- आपने ये शक्तिशाली तर्क दिया है कि ये विधायिका का मामला है। उन्होंने आगे कहा कि हम भविष्य के लिए यह कैसे सुनिश्चित करें कि ये रिश्ते समाज में बहिष्कृत न हों। इस केंद्र की तरफ से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार कानूनी मान्यता दिए बिना कुछ ऐसे मुद्दों से निपटने पर विचार कर सकती है, जिनका वे सामना कर रहे हैं।

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