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देशद्रोह कानून बनाए रखने की सिफारिश

नई दिल्ली। विधि आयोग ने विवादित राजद्रोह कानून को बनाए रखने की सिफारिश की है। उसने कहा है कि इस समाप्त करने की बजाय कुछ संशोधन के साथ बनाए रखना चाहिए। गौरतलब है कि 152 साल पुराने इस कानून के इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई है। इस मामले में विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी है। उसने कहा है कि भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 124 ए को बनाए रखने की जरूरत है। इसको हटाने का कोई वैध कारण नहीं है। कानून के उपयोग को लेकर ज्यादा स्पष्टता बनी रहे इसके लिए कुछ संशोधन किए जा सकते हैं।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे राजद्रोह कानून को पिछले साल स्थगित कर दिया था। कोर्ट ने आदेश दिया था कि जब तक आईपीसी की धारा 124 ए की समीक्षा की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक इसके तहत कोई मामला दर्ज नहीं होगा। सरकार को सौंपी रिपोर्ट में विधि आयोग ने कहा है- हम सिफारिश करते हैं कि धारा 124 ए के तहत दी जाने वाली सजा को आईपीसी के अनुच्छेद छह के तहत अन्य अपराधों के साथ समानता में लाया जाए।

इस बीच संभावना है कि संसद के मॉनसून सत्र में इस कानून में संशोधन का बिल लाया जाए। एक मई को केंद्र सरकार ने राजद्रोह कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि संसद के मॉनसून सत्र में बिल लाया जा सकता है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट अगस्त के दूसरे हफ्ते में सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि क्या राजद्रोह पर 1962 के पांच जजों के फैसले को समीक्षा के लिए सात जजों के संविधान पीठ भेजा जाए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार उसका रुख भी जानना चाहा है।

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