राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

नोटबंदी वैध करार

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट बंद करने के केंद्र सरकार के फैसले को वैध ठहराया है। चार-एक के बहुमत के फैसले सर्वोच्च अदालत ने इस फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। साथ ही सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार के इस फैसले की वैधता पर सवाल उठाते हुए दायर सभी 58 याचिकाओं को खारिज कर दिया। पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस बीवी नागरत्ना ने बाकी चार जजों से असहमति जताते हुए कहा कि यह फैसला गैरकानूनी था। जस्टिस नागरत्ना का कहना था कि नोट बंद करने का फैसला संसद के जरिए किया जाना चाहिए था गजट नोटिफिकेशन के जरिए नहीं।

बहरहाल, जस्टिस एसए नजीर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ में जस्टिस बीआर गवाई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस बी राम सुब्रहमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल थे। चार जजों की ओर से बहुमत का फैसला जस्टिस बीआर गवई ने पढ़ा। उन्होंने कहा- नोटबंदी पर फैसला करने की प्रक्रिया पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है क्योंकि सरकार और आबीआई ने आपसी बातचीत के जरिए फैसला किया। उन्होंने कहा कि नोटबंदी के फैसले से क्या हासिल हुआ, यह सवाल नोटबंदी के फैसले की प्रक्रिया से नहीं जुड़ा हुआ है।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने नवंबर 2016 में पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट चलन से बाहर कर दिए थे। उस फैसले से करीब 10 लाख करोड़ रुपए के नोट रद्दी हो गए थे और करोड़ों लोगों को बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। काला धन बाहर लाने और नकदी का चलन कम करने के लिए यह फैसला किया गया था लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में इस समय नकदी का चलन 2016 के मुकाबले दोगुना हो गया है। करीब 30 लाख करोड़ रुपए की नकदी देश में है।

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से केंद्र सरकार को बड़ी राहत मिली है। भारतीय जनता पार्टी ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए इसका स्वागत किया है। केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ एक याचिकाकर्ता की तरफ से अदालत में पेश हुए कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने कहा कि अब सर्वोच्च अदालत ने इस पर मुहर लगा दी है तो अब इसे स्वीकार कर लिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनाए अपने फैसले में यह भी कहा कि नोटबंदी के फैसले को पलटा नहीं जा सकता। नोटबंदी के फैसले में कोई खामी नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- रिकॉर्ड की जांच के बाद हमने पाया है कि फैसला करने की प्रक्रिया सिर्फ इसलिए त्रुटिपूर्ण नहीं हो सकती है क्योंकि यह केंद्र सरकार से निकली है। रिकॉर्ड से ऐसा लग रहा है कि छह महीने की अंतिम अवधि के भीतर रिजर्व बैंक और केंद्र के बीच विचार हुआ था। चार जजों के इस फैसले से असहमति जताते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि केंद्र सरकार को नोटबंदी की प्रक्रिया नहीं करनी चाहिए थी। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि केंद्र सरकार के इशारे पर नोटबंदी कहीं अधिक गंभीर मुद्दा है, जिसका अर्थव्यवस्था और नागरिकों पर प्रभाव पड़ता है।

By NI Desk

Under the visionary leadership of Harishankar Vyas, Shruti Vyas, and Ajit Dwivedi, the Nayaindia desk brings together a dynamic team dedicated to reporting on social and political issues worldwide.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *