नई दिल्ली। पिछले दिनों हिंडनबर्ग रिपोर्ट (Hindenburg Report) के संदर्भ में कांग्रेस नेता राहुल गांधी Rahul Gandhi और मल्लिकार्जुन खरगे (Mallikarjun Kharge) ने संसद (Parliament) में अपने भाषण में अडानी समूह (Adani Group) का उल्लेख करते हुए सरकार एवं प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया। संसद के दोनों सदनों में उनके भाषण के कई अंशों को कार्यवाही से हटा दिया गया। ऐसे में सांसदों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उनके विशेषाधिकारों (Privileges) के हनन के मुद्दे पर चर्चा शुरू हो गई है। इस बारे में लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचारी का मानना है कि ऐसा कोई नियम नहीं कि सदन में सदस्य आरोप नहीं लगा सकते।
सवाल: संसद में पिछले दिनों चर्चा के दौरान विपक्षी सदस्यों के भाषण के कुछ अंशों को सदन की कार्यवाही से निकाल दिया गया। इसे विपक्ष ने सांसदों के विशेषाधिकारों का हनन बताया है। संसदीय नियमों के आलोक में आपकी इस पर क्या राय है?
जवाब: संसद में सदस्यों द्वारा दिए जाने वाले भाषण में कोई शब्द या संदर्भ अगर अमर्यादित या अशोभनीय होता है, तब अध्यक्ष को यह अधिकार होता है कि वह उसे कार्यवाही से हटा सकते हैं। ऐसा हमेशा से होता आया है। लेकिन अभी प्रधानमंत्री पर कुछ आरोप लगाए गए हैं। ऐसे में आरोपों की पुष्टि करने के लिए सबूत मांगे जा रहे हैं।
ऐसे मामलों को लेकर संसदीय प्रक्रिया में कोई तय नियम नहीं है। 1950 के बाद से विभिन्न लोकसभा अध्यक्षों द्वारा दी गई व्यवस्थाओं के आधार पर ऐसे विषयों पर प्रक्रिया तय की गई है। इसमें कहा गया है कि अगर कोई सदस्य आरोप लगाते हैं तो वे तथ्यों के आधार पर उसकी पुष्टि करें और उसकी जिम्मेदारी लें। ऐसी स्थिति में ही आरोप लगाए जा सकते हैं।
सवाल : हाल में उच्चतम न्यायालय ने एक फैसला दिया कि सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर संविधान के अनुच्छेद 19(2) के अलावा अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाए जा सकते और उन्हें अन्य नागरिकों के समान अधिकार प्राप्त हैं। इस फैसले की पृष्ठभूमि में संसदीय कामकाज की प्रक्रिया के साथ सामंजस्य बनाने में किस प्रकार की चुनौतियां आ सकती हैं?
जवाब : संसद के निर्देश में सदस्यों को सभा के अंदर अपनी बात रखने की पूरी आजादी है और यह अनुच्छेद 105 के माध्यम से सुनिश्चित किया गया है। अनुच्छेद 19 (2) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सामान्य प्रावधान है। लेकिन अनुच्छेद 105 के तहत सदस्यों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर खास अधिकार दिए गए हैं। इसमें सदन में कही गई बातों को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
कोई भी स्वतंत्रता अपने आप में पूर्ण नहीं होती और अनुच्छेद 105 को लेकर भी यह कहा जाता है कि यह सदन के नियमों के अनुरूप हो। हालांकि अध्यक्ष/सभापति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अनुच्छेद 105 के तहत प्रदत्त अधिकारों को कम नहीं किया जाए।
सवाल :संसद में सदस्यों को मुक्त रूप से अपनी बात रखने को लेकर किस प्रकार की व्यवस्था है और सदन से बाहर किसी व्यक्ति के उल्लेख को लेकर क्या प्रावधान हैं?
जवाब : संसद के भीतर सदस्यों को अपनी बात रखने की उपयुक्त व्यवस्था है जो नियमों एवं प्रक्रियाओं में भी स्पष्ट है और अनुच्छेद 105 में इसका प्रावधान किया गया है। ऐसा कोई नियम नहीं है कि आरोप नहीं लगाए जा सकते। सदस्यों को अपनी बात रखते हुए दो चीजों का ध्यान रखना चाहिए..पहला यह कि वे जो भी कहें, उसकी जिम्मेदारी लें और दूसरा कि उनकी कही बातें या आरोप तथ्यों के आधार पर हों। ऐसा इसलिए जरूरी है कि क्योंकि अगर उक्त मामले की कोई जांच होती है और आरोप बेबुनियाद साबित होते हैं तब विशेषाधिकार हनन का मामला चलाया जा सके।
सवाल : संसद की प्रक्रियाओं के तहत असंसदीय शब्दों एवं संदर्भों की क्या परिभाषा है। क्या इसको लेकर कोई मानक तय होना चाहिए?
जवाब : असंसदीय शब्दों को लेकर कोई नियम मानदंड तय नहीं है और यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि उक्ति, शब्द या बातें किस संदर्भ में कही गई हैं। मिसाल के तौर पर एक समय केंद्र सरकार में मंत्री रहे सरदार स्वर्ण सिंह जब सदन में अपनी बात रख रहे थे तब जनसंघ के एक सदस्य हुकुमचंद ने कहा था कि अध्यक्ष जी 12 बज गए हैं। इस पर सरदार स्वर्ण सिंह ने आपत्ति व्यक्त की थी और इसे कार्यवाही से हटा दिया गया था।
ऐसे में सदन में किसी सदस्य द्वारा कही गई बातों का संदर्भ महत्वपूर्ण होता है और उसी के आधार पर उसे असंसदीय करार दिया जाता है या कार्यवाही से हटाया जाता है।
सवाल : बदलते समय की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए क्या संसद में कामकाज की प्रक्रिया और नियमों में संशोधन किए जाने की जरूरत है?
जवाब : संसद में नियम चर्चा और कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए होते हैं। अगर सदस्य नियमों के मुताबिक चलेंगे, नियमों को मानेंगे तब सदन में कामकाज अच्छे ढंग से चलेगा। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि इसमें बदलाव की कोई जरूरत है। (भाषा)