नई दिल्ली। भारत ने पूर्वी लद्दाख में सीमा पर स्थिति सामान्य नहीं होने तक चीन के साथ संबंध सामान्य नहीं होने की बात कही। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दोनों देशों के बीच रिश्तों में सैनिकों की ‘अग्रिम मोर्चे’ पर तैनाती को मुख्य समस्या करार दिया। जयशंकर ने कहा, वास्तविकता यह है कि संबंध प्रभावित हुए हैं और यह प्रभावित होते रहेंगे, अगर कोई ऐसी उम्मीद रखता है कि सीमा पर स्थिति सामान्य नहीं होने के बावजूद हम किसी प्रकार (संबंध) सामान्य बना लेंगे तो ये उचित उम्मीद नहीं है।
जयशंकर ने उत्तरी सीमा की स्थिति और चीन की ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल परकहा भारत किसी दबाव, लालच और गलत विमर्श से प्रभावित नहीं होता। भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में संघर्ष के कुछ क्षेत्रों में पिछले तीन वर्षो से अधिक समय से तनातनी है। हालांकि दोनों देशों के बीच अनेक दौर की सैन्य और कूटनीतिक बातचीत के बाद भी गतिरोध बना हुआ हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि दोनों पक्षों को अपने सैनिकों को पीछे हटाने के रास्ते तलाशने होंगे। मौजूदा गतिरोध चीन के हित में भी नहीं है।
विदेश मंत्री ने कहा कि ऐसा नहीं है कि संवाद टूट गया है। बात यह है कि चीन के साथ गलवान की घटना से पहले भी हम बात कर रहे थे और उनसे कह रहे थे कि हम आपके सैनिकों की गतिविधियों को देख रहे हैं जो हमारे विचार से उल्लंघनकारी हैं। गलवान की घटना के बाद की सुबह मैंने अपने चीनी समकक्ष के साथ बातचीत की। उन्होंने कहा कि इसके बाद से दोनों पक्ष कूटनीतिक और सैन्य माध्यमों से बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पीछे हटना एक व्यापक प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि इसकी बारीकियों पर इससे जुड़े लोग काम कर रहे हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या मई 2020 के सीमा विवाद के बाद चीन ने भारत के क्षेत्र पर कब्जा किया है, जयशंकर ने कहा कि समस्या सैनिकों की अग्रिम मोर्चे पर तैनाती है।जून 2020 में गलवान घाटी में संघर्ष के बाद से दोनों देशों के बीच संबंध ठीक नहीं है और इसके कारण दशकों में पहली बार दोनों पक्षों के बीच गंभीर सैन्य संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। जयशंकर ने कहा, हम चीन के साथ संबंधों को बेहतर बनाना चाहते हैं। लेकिन यह तभी संभव है तब सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन और शांति हो और अगर कोई समझौता है तो उसका पालन किया जाए। उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष विवाद के समाधान के लिए बातचीत कर रहे हैं।