नई दिल्ली। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले में सुनवाई शुरू की है। पहले दिन मंगलवार को केंद्र सरकार और याचिकाकर्ता दोनों के वकीलों ने अपनी दलीलें पेश कीं। बुधवार को भी इस मामले में सुनवाई जारी रहेगी। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह की मान्यता देने वाली याचिकाओं का विरोध किया है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले में दायर 15 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता और याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने पैरवी की। पहले दिन सुबह 11 बजे से शुरू हुई सुनवाई दोपहर एक बजे तक चली फिर लंच के बाद दो से चार बजे तक सुनवाई हुई।
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि समलैंगिक विवाह का मुद्दा ऐसा नहीं है, जिस पर एक पक्ष में बैठे पांच लोग, दूसरे पक्ष में बैठे पांच लोग और बेंच पर बैठे पांच विद्वान बहस कर सकें। उन्होंने कहा कि इस मामले में दक्षिण से लेकर उत्तर तक और किसान से लेकर कारोबारी तक का नजरिया जानना होगा। उन्होंने कहा- हम अभी भी इन याचिकाओं के आधार पर सवाल कर रहे हैं, क्योंकि हो सकता है कि इस मामले पर सभी राज्य एकराय न हों। हम अभी भी यही कह रहे हैं कि क्या इस मुद्दे पर कोर्ट खुद फैसला ले सकती है।
इस पर अदालत ने कहा- हम जानना चाहते हैं कि याचिकाकर्ता क्या दलीलें दे रहे हैं। देखते हैं कि याचिकाकर्ता और हमारे दिमाग में क्या चल रहा है। जब तुषार मेहता ने कहा कि यह बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है तो अदालत ने कहा- सॉलिसीटर जनरल हमें नहीं बता सकते कि यह फैसला कैसे करना है। हम सही वक्त पर आपको भी सुनेंगे।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा- हम अपने घरों में प्राइवेसी चाहते हैं। साथ ही यह भी कि हमें सार्वजनिक जगहों पर कोई लांछन ना सहना पड़े। हम चाहते हैं कि दो लोगों के लिए शादी और परिवार को लेकर वैसी ही व्यवस्था हो, जैसी अभी दूसरों के लिए चल रही है। उन्होंने कहा- शादी और परिवार की हमारे समाज में इज्जत होती है। कानून में से इस मामले पर आपराधिक और अप्राकृतिक हिस्सा हट गया है। ऐसे में हमारे अधिकार भी समान हैं।