Brahma Kamal: उत्तराखंड के बागेश्वर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में आज भी पारंपरिक रीति-रिवाज और धार्मिक मान्यताएं गहराई से जुड़ी हुई हैं।
इन्हीं में से एक अनूठी परंपरा है ब्रह्म कमल के फूलों को तोड़ने की, जिसे शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है।
ये दुर्लभ फूल उच्च हिमालयी बुग्यालों में पाए जाते हैं और खासतौर पर नंदाअष्टमी मेले के दौरान देवी मां को अर्पित किए जाते हैं।
पुजारी के अनुसार, इन फूलों को तोड़ने के लिए कठोर पौराणिक नियमों का पालन करना आवश्यक है।
फूल तोड़ने से पहले कई किलोमीटर की पैदल यात्रा की जाती है। बुग्याल पहुंचने के बाद दो समय का स्नान और एक समय का भोजन करना अनिवार्य होता है।
ब्रह्म कमल को तोड़ने से पहले उनकी पूजा की जाती है, और केवल ब्रह्ममुहूर्त में ही उन्हें तोड़ा जाता है। इन फूलों को मां भगवती को चढ़ाकर विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।
यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि प्रकृति और आध्यात्मिकता के बीच संतुलन बनाए रखने का संदेश भी देती है।
बह्राकमल तोड़ने के नियम
यह हिमालय के बुग्यालों में उगता है, इसे तोड़ने की प्रक्रिया धार्मिक नियमों और परंपराओं से जुड़ी होती है। इस पवित्र कार्य को करने के लिए कई विशेष विधियां अपनाई जाती हैं।
ब्रह्म कमल तक पहुंचने के लिए गांव से बुग्याल तक कठिन पैदल यात्रा की जाती है। इस यात्रा को पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ संपन्न किया जाता है।
ब्रह्म कमल तोड़ने वाले पुजारी को स्थानीय भाषा में ‘जतर’ कहा जाता है। ये पुजारी अत्यंत पवित्र जीवनशैली का पालन करते हैं।
वे एक समय का शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करते हैं और दिन में दो बार स्नान करते हैं।यह स्थान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
जिस स्थान पर ब्रह्म कमल उगते हैं, वहां मां भगवती का प्रतीकात्मक मंदिर होता है। पुजारी सबसे पहले नंदाकुंड नामक तालाब में स्नान करते हैं। इसके बाद देवी शक्ति, यानी मां भगवती की मूर्ति का भी विधिपूर्वक स्नान कराया जाता है।
ब्रह्म कमल तोड़ने की परंपरा
ब्रह्म कमल तोड़ने की यह अनूठी परंपरा न केवल पवित्रता और आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसमें हवन, भंडारा और भक्तों के लिए प्रसाद वितरण जैसे धार्मिक अनुष्ठान भी शामिल हैं।
बुग्यालों की यात्रा शुरू करने से पहले मंदिर में हवन किया जाता है। इस हवन में गांव से लाया गया विशेष भंडार शामिल होता है, जिसमें नव अनाज, फल, और पूजा सामग्री होती है। इसके बाद मंदिर में भंडार भरने की प्रक्रिया पूरी की जाती है।
देवभूमि का सबसे पवित्र फूल
हवन और भंडारा संपन्न होने के बाद पुजारियों का दल बुग्याल की ओर प्रस्थान करता है। बुग्याल में अच्छे और पवित्र फूलों वाले हिस्से को चुना जाता है।
ब्रह्ममुहूर्त में एक विशेष विधि से इन फूलों को तोड़ा जाता है। फूलों को सावधानीपूर्वक एक-एक कर टोकरी में रखा जाता है।
पहले से मंदिर में चढ़ाए गए ब्रह्म कमल के फूल को भी अन्य फूलों के साथ टोकरी में रखा जाता है। यह फूल विशेष धार्मिक महत्व रखते हैं।
फूलों से भरी टोकरियों को पुजारी अपनी पीठ पर रखकर गांव के मंदिर तक लाते हैं। इसके बाद भव्य ब्रह्म कमल यात्रा निकाली जाती है।
मंदिर में मां भगवती को ब्रह्म कमल अर्पित किए जाते हैं। फिर इन पवित्र फूलों को प्रसाद के रूप में सभी भक्तों में वितरित किया जाता है, जो इस परंपरा को पूर्णता और शुभता प्रदान करता है।
मां भगवती का प्रिय फूल ब्रह्मकमल (Brahma Kamal)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्म कमल को मां भगवती का अत्यंत प्रिय फूल माना गया है। यह दिव्य पुष्प उच्च धार्मिक महत्व रखता है और इसे चढ़ाने से मां भगवती प्रसन्न होती हैं, अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखती हैं, और भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं।(Brahma Kamal)
पूजा के बाद ब्रह्म कमल को प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है। इसे आमतौर पर घर की तिजोरी में रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्म कमल को तिजोरी में रखने से घर में धन, समृद्धि, और संपन्नता का वास होता है।
ब्रह्म कमल में देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का वास माना गया है। इसलिए, यह फूल न केवल आध्यात्मिक रूप से बल्कि आर्थिक समृद्धि और पारिवारिक सुख-शांति के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
ब्रह्म कमल श्रद्धा, आस्था और समृद्धि का प्रतीक है, जो भक्तों को आत्मिक शांति और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. किसी भी बात का नया इंडिया व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.
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