Kedarnath Dham: केदारनाथ धाम उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक पवित्र हिंदू तीर्थस्थान है, जो भगवान शिव को समर्पित है. यह धाम चार धाम यात्रा का एक प्रमुख स्थल है और भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है.
केदारनाथ धाम में 2013 का भयानक दृश्य शायद ही कोई भूल पाया होगा. 2013 की आपदा ने वहां मौजूद सभी लोगों को अपनी चपेट में ले लिया था. केदारनाथ धाम में इस से पहले भी कई आपदाएं आई है.
इन सभी आपदाओं का कारण है प्रकृति से छेड़छाड़. प्रशासन या लोगों की लापरवाही से केदारघाटी में हर साल ऐसी ही कोई घटना घटित होती ही रहती है. इस साल भी जुलाई 2024 के अंत में बादल फटने की आपदा देखी गई थी.
चार धाम में से एक केदारनाथ धाम में प्रशासन की लापरवाही का मामला सामने आया है. एक आरटीआई से पता चला है कि धाम के चारों ओर गड्ढों में कई टन अशोधित कचरा डाला जा रहा है.
इस संवेदनशील क्षेत्र में कचरा डाले जाने से पर्यावरण प्रेमियों में चिंता बढ़ गई है. उत्तर प्रदेश के नोएडा के एक पर्यावरणविद ने आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी से बताया कि केदारनाथ धाम में 2022 से 2024 के बीच कुल 49.18 टन अशोधित कचरा मंदिर के पास दो गड्ढों में डाला गया है.
also read: यहां कोर्ट-कचहरी में नहीं बल्कि स्वंय देवता करते है न्याय…
साल दर साल बढ़ रहा कचरा
आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस अवधि में कचरे की मात्रा में लगातार वृद्धि देखी गई है. 2022 में 13.20 टन कचरा, 2023 में 18.48 टन कचरा और इस साल अब तक 17.50 टन कचरा उत्पन्न हुआ है. इस दौरान 23.30 टन अकार्बनिक कचरा भी उत्पन्न हुआ.
आरटीआई कार्यकर्ता अमित गुप्ता से सवाल करने पर केदारनाथ नगर पंचायत के लोक सूचना अधिकारी ने बताया कि यह सारा कचरा रिसायकल कर लिया गया है.
गुप्ता ने कहा कि आरटीआई से प्राप्त जानकारी में कचरा उत्पन्न होने और उसे अशोधित छोड़ दिए जाने के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. इससे यह स्पष्ट होता है कि वहां कचरा प्रबंधन के लिए कोई व्यवस्था नहीं है.
प्रधानमंत्री ने उठाया था मुद्दा
गुप्ता ने कहा कि केदारनाथ मंदिर 12,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, जहां ग्लेशियर भी हैं. यह क्षेत्र पर्यावरण के दृष्टिकोण से संवेदनशील है.
इस समस्या को प्रधानमंत्री ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी उठाया था, लेकिन अधिकारियों ने प्लास्टिक कचरे को निवारण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं.
मंदिर के पास जो गड्ढे हैं, वे लगभग भर चुके हैं, और अगर ऐसा ही चलता रहा, तो 2013 जैसी त्रासदी की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
उन्होंने बताया कि आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि इस अवधि में कचरे का निस्तारण गैरजिम्मेदाराना तरीके से किया गया, लेकिन प्रशासन ने इस पर कोई शिकायत नहीं दर्ज की और न ही कोई कार्रवाई की. (Kedarnath Dham)
आरटीआई कार्यकर्ता ने कहा कि पिछले दो सालों से वे खुद इस मामले में अधिकारियों को पत्र लिखकर शिकायत दर्ज करा रहे हैं.
उन्होंने इसकी शिकायत राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) में भी की है. शिकायत के बाद गंगा मिशन ने रुद्रप्रयाग प्रशासन को इस पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे.