mahakumbh 2025 : प्रयागराज महाकुंभ में इस बार करोड़ों श्रद्धालु गंगा और यमुना के संगम में आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। रिपोर्ट के अनुसार, अब तक 54 करोड़ से अधिक श्रद्धालु इस महाकुंभ में स्नान कर चुके हैं।
श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास से ओत-प्रोत इस आयोजन में देश-विदेश से भी लोग शामिल हो रहे हैं। लेकिन इस बीच एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है, जो गंगा और यमुना के जल की गुणवत्ता को लेकर चिंता बढ़ा रही है।
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) ने हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में एक विस्तृत रिपोर्ट दाखिल की है। (mahakumbh 2025)
यह रिपोर्ट 17 फरवरी को प्रस्तुत की गई थी, जिसमें प्रयागराज में गंगा और यमुना नदी के जल की गुणवत्ता का विश्लेषण किया गया है। इस अध्ययन के लिए CPCB ने 9 से 21 जनवरी के बीच कुल 73 अलग-अलग स्थानों से जल के सैंपल लिए और उनकी जांच की।
रिपोर्ट के अनुसार, संगम क्षेत्र में गंगा और यमुना का पानी नहाने लायक नहीं है। इस निष्कर्ष ने ना सिर्फ श्रद्धालुओं बल्कि पर्यावरणविदों और प्रशासन को भी चिंता में डाल दिया है।
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जल की गुणवत्ता और प्रदूषण स्तर
CPCB द्वारा किए गए परीक्षण में नदी के पानी में कई हानिकारक तत्व पाए गए हैं, जो इसे स्नान और उपभोग के लिए अनुपयुक्त बनाते हैं। रिपोर्ट के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं…
बैक्टीरियोलॉजिकल संदूषण – जल में फीकल कोलिफॉर्म (fecal coliform) और टोटल कोलिफॉर्म (total coliform) का स्तर अत्यधिक अधिक पाया गया, जो यह दर्शाता है कि इसमें मलजनित संदूषण मौजूद है। यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकता है।
घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen – DO) – यह पानी की स्वच्छता का एक महत्वपूर्ण मानक होता है। परीक्षण में यह पाया गया कि नदी के जल में घुलित ऑक्सीजन का स्तर आवश्यक मानक से कम है, जो जलजीवों और अन्य जैविक गतिविधियों के लिए अनुकूल नहीं है।
बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) – यह जल की जैविक स्वच्छता को मापने का एक तरीका है। गंगा और यमुना के जल में BOD का स्तर बहुत अधिक पाया गया, जो दर्शाता है कि पानी में कार्बनिक कचरे की अत्यधिक मात्रा है और जल अशुद्ध हो चुका है।
रासायनिक संदूषण – जल में आर्सेनिक, लेड और अन्य भारी धातुओं की मात्रा मानकों से अधिक पाई गई है, जिससे यह पानी त्वचा रोगों और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है। (mahakumbh 2025)
झाग और दुर्गंध – रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि कई स्थानों पर जल में झाग देखा गया, जो यह दर्शाता है कि औद्योगिक कचरे और सीवेज का प्रवाह नदी में हो रहा है।
प्रदूषण के कारण और समाधान (mahakumbh 2025)
औद्योगिक अपशिष्ट – उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में फैक्ट्रियों से निकलने वाला अपशिष्ट बिना उचित उपचार के सीधे नदियों में प्रवाहित हो जाता है।
सीवेज और नगरीय कचरा – प्रयागराज और आसपास के इलाकों में सीवेज का पानी नदी में मिल रहा है, जिससे जल की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। (mahakumbh 2025)
धार्मिक और सामाजिक गतिविधियाँ – महाकुंभ और अन्य धार्मिक आयोजनों के दौरान नदी में पूजन सामग्री, प्लास्टिक और अन्य कचरे का अत्यधिक मात्रा में गिरना भी प्रदूषण बढ़ाने का एक कारण है
प्रशासन की जिम्मेदारी और श्रद्धालुओं की सावधानी
औद्योगिक कचरे और सीवेज के निस्तारण के लिए सख्त नियमों का पालन किया जाए।
नदी में कूड़ा-कचरा और प्लास्टिक डालने पर कड़े प्रतिबंध लगाए जाएं। (mahakumbh 2025)
कुंभ और अन्य आयोजनों के दौरान जल की गुणवत्ता की निरंतर निगरानी की जाए।
श्रद्धालु भी जल को स्वच्छ बनाए रखने के लिए सतर्कता बरतें और नदी में कचरा ना डालें।
प्रयागराज महाकुंभ का आयोजन लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था और पवित्रता का प्रतीक है, लेकिन CPCB की रिपोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि गंगा और यमुना का जल स्नान के लिए सुरक्षित नहीं है।
ऐसे में प्रशासन को जल की गुणवत्ता सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए और श्रद्धालुओं को भी अपने धर्म और आस्था के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए। गंगा और यमुना की पवित्रता को बनाए रखना हम सभी की जिम्मेदारी है।
6 मानकों पर जांचा गंगा-यमुना का पानी
यह रिपोर्ट दर्शाती है कि गंगा और यमुना नदियों के पानी की गुणवत्ता का आकलन छह मानकों के आधार पर किया गया है।
इनमें पीएच स्तर (अम्लीयता/क्षारीयता), फीकल कोलीफॉर्म, बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD), केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (COD), और डिजॉल्वड ऑक्सीजन जैसे कारक शामिल हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, अधिकतर स्थानों पर पानी की गुणवत्ता पांच मानकों पर संतोषजनक पाई गई, लेकिन फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा तय मानकों से अधिक दर्ज की गई। (mahakumbh 2025)
सामान्य रूप से, एक मिलीलीटर पानी में 100 फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया होने चाहिए, लेकिन अमृत स्नान से पहले यमुना नदी के एक सैंपल में इसकी संख्या 2300 तक पाई गई, जो गंभीर प्रदूषण को दर्शाता है।
इससे स्पष्ट होता है कि नदी जल में बैक्टीरियल प्रदूषण एक प्रमुख समस्या बनी हुई है, जिसे नियंत्रित करने के लिए ठोस उपायों की आवश्यकता है।
संगम के आसपास स्थिति ज्यादा खराब (mahakumbh 2025)
प्रयागराज स्थित संगम क्षेत्र में जल की गुणवत्ता को लेकर चिंताजनक आंकड़े सामने आए हैं। हाल ही में किए गए जल परीक्षण में यह स्पष्ट हुआ है कि संगम और उसके आसपास के इलाकों में जल में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा अत्यधिक अधिक पाई गई है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है।
विशेषज्ञों द्वारा लिए गए सैंपल के परीक्षण के अनुसार, संगम क्षेत्र में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा सामान्य मानक से कई गुना अधिक पाई गई। (mahakumbh 2025)
एक मिलीलीटर पानी में इसकी अधिकतम मात्रा 100 होनी चाहिए, लेकिन संगम क्षेत्र में यह 2000 तक पहुंच गई है। इसी तरह, टोटल फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा 4500 दर्ज की गई, जो जल की अत्यधिक दूषित स्थिति को दर्शाती है।
शास्त्री ब्रिज के पास भी प्रदूषण का उच्च स्तर
गंगा नदी पर स्थित शास्त्री ब्रिज के पास से लिए गए जल सैंपल भी चिंताजनक स्थिति दर्शाते हैं। यहां फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा 3200 मिलीलीटर पाई गई, जबकि टोटल फीकल कोलीफॉर्म 4700 मिलीलीटर दर्ज की गई।
यह आंकड़े जल में गंदगी और प्रदूषण के उच्च स्तर को दर्शाते हैं, जिससे नदी के जल का उपयोग स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है। (mahakumbh 2025)
संगम से दूर जल की स्थिति थोड़ी बेहतर
संगम से दूर के क्षेत्रों में जल की गुणवत्ता अपेक्षाकृत बेहतर तो है, लेकिन मानकों के अनुरूप नहीं है।
फाफामऊ चौराहे के पास से लिए गए सैंपल में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा 790 मिलीलीटर पाई गई। राजापुर मेहदौरी में यह 930 मिलीलीटर थी। (mahakumbh 2025)
झूंसी में छतनाग घाट और एडीए कॉलोनी के पास जल में इसकी मात्रा 920 मिलीलीटर दर्ज की गई। नैनी के अरैल घाट पर यह 680 मिलीलीटर रही। राजापुर क्षेत्र में यह 940 मिलीलीटर दर्ज की गई।
स्वच्छता मानकों पर खरा नहीं उतरता गंगाजल (mahakumbh 2025)
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के मानकों के अनुसार, यह जल C श्रेणी में आता है, जिसका अर्थ है कि इस जल का उपयोग बिना शुद्धिकरण और कीटाणुशोधन (डिसइंफेक्शन) के स्नान आदि के लिए भी नहीं किया जा सकता।
अत्यधिक प्रदूषण के कारण जलजनित रोगों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है, जिससे हजारों लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। (mahakumbh 2025)
गंगा नदी का यह स्तर प्रदूषण के खतरनाक स्तर को दर्शाता है। इस बढ़ते जल प्रदूषण की मुख्य वजहें सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट का नदी में प्रवाह, धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान कचरे का विसर्जन और नगर निगम की ओर से जल शुद्धिकरण की अपर्याप्त व्यवस्था हैं।
सरकार और स्थानीय प्रशासन को इस दिशा में कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता बढ़ाने, औद्योगिक कचरे के नियंत्रित निस्तारण, सार्वजनिक जागरूकता अभियानों और नियमित जल परीक्षणों के जरिए जल गुणवत्ता में सुधार लाने की आवश्यकता है।
यदि समय रहते उचित उपाय नहीं किए गए, तो यह स्थिति और भी गंभीर हो सकती है, जिससे आम जनता के स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। (mahakumbh 2025)
फीकल कोलीफॉर्म की अधिकता
गंगा नदी भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक मानी जाती है, लेकिन प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण इसका जल गुणवत्ता मानकों पर खरा नहीं उतर रहा है।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में गंगा नदी पर शोध कर रहे प्रोफेसर बी.डी. त्रिपाठी के अनुसार, यदि किसी जल स्रोत में मानक से अधिक मात्रा में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, तो वह पानी किसी भी प्रकार के उपयोग के लिए असुरक्षित हो जाता है।
यह बैक्टीरिया मुख्य रूप से मलजल से आता है और जलजनित बीमारियों के प्रसार का प्रमुख कारण बन सकता है। (mahakumbh 2025)
यदि इस दूषित पानी को पीया जाता है, तो यह गंभीर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल संक्रमण, डायरिया, टाइफाइड और हैजा जैसी बीमारियों का कारण बन सकता है।
इसके अलावा, यदि इस पानी से स्नान किया जाए या त्वचा इसके सीधे संपर्क में आए, तो खुजली, चकत्ते और अन्य त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न हो सकते हैं।
महाकुंभ में गंगा की स्वच्छता के प्रयास
महाकुंभ जैसे विशाल धार्मिक आयोजन के दौरान गंगा जल को स्वच्छ बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होती है। प्रयागराज नगर निगम और उत्तर प्रदेश जल निगम इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
अधिकारियों के अनुसार, जियो-ट्यूब तकनीक का उपयोग कर 23 अनटैप्ड नालों के अपशिष्ट जल को शोधित किया जा रहा है। (mahakumbh 2025)
1 जनवरी से 4 फरवरी तक 3,660 MLD (मिलियन लीटर प्रति दिन) साफ किया हुआ पानी गंगा में छोड़ा गया है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कुंभ मेले के दौरान श्रद्धालुओं को स्वच्छ और सुरक्षित जल उपलब्ध हो।
प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में आवश्यक कदम (mahakumbh 2025)
हालांकि महाकुंभ के दौरान गंगा की सफाई के लिए विशेष अभियान चलाए जाते हैं, लेकिन इसकी दीर्घकालिक स्वच्छता के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं:
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) की संख्या बढ़ाना – गंगा में गिरने वाले अनुपचारित नालों को रोकने के लिए अधिक STP स्थापित किए जाने चाहिए।
औद्योगिक कचरे पर सख्ती – उद्योगों द्वारा सीधे गंगा में छोड़े जाने वाले रसायनों और गंदे पानी को पूरी तरह रोका जाना चाहिए। (mahakumbh 2025)
सामुदायिक जागरूकता – स्थानीय नागरिकों को गंगा में कचरा और प्लास्टिक न फेंकने के लिए शिक्षित किया जाना चाहिए।
नियमित जल परीक्षण – गंगा जल की गुणवत्ता की लगातार निगरानी की जानी चाहिए ताकि प्रदूषण स्तर का समय पर पता चल सके।
गंगा केवल एक नदी नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर है। इसे स्वच्छ और निर्मल बनाए रखना प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है। (mahakumbh 2025)
यदि समय रहते आवश्यक कदम नहीं उठाए गए, तो फीकल कोलीफॉर्म जैसे खतरनाक बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियां और जल प्रदूषण की समस्या और गंभीर हो सकती है।
2019 के कुंभ में भी ऐसी ही स्थिति
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, गंगा और यमुना नदियों के पानी का मूल्यांकन छह मानकों पर किया गया।
इनमें पीएच (पानी की अम्लीयता या क्षारीयता), फीकल कोलीफॉर्म, बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD), केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (COD), और डिजॉल्वड ऑक्सीजन शामिल हैं। (mahakumbh 2025)
रिपोर्ट में यह सामने आया कि कई स्थानों पर फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा मानक से अधिक पाई गई, जबकि बाकी पांच मानकों पर पानी की गुणवत्ता मानक के अनुरूप थी।
यह समस्या पिछले कुंभ मेलों में भी सामने आई थी। 2019 के कुंभ मेला में, जिसमें 13 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने स्नान किया था, करसर घाट पर BOD और फीकल कोलीफॉर्म का स्तर स्वीकार्य सीमा से ऊपर पाया गया।
विशेष रूप से, प्रमुख स्नान के दिनों में शाम के मुकाबले सुबह BOD का स्तर अधिक था, जो पानी की गुणवत्ता में गिरावट को दर्शाता है। (mahakumbh 2025)
इससे यह स्पष्ट है कि नदी जल की गुणवत्ता में सुधार के लिए ठोस उपायों की जरूरत है, खासकर भीड़-भाड़ वाले समय में।