कहा जाए तो यह सृष्टि भी महादेव की ही देन है. सृष्टि के कण-कण में महादेव बसते है. लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में एक ऐसा शहर है जहां का हर पत्थर शिवलिंग है. (Narmada River) आज सावन के महीने की शुरूआत सोमवार के शुभ दिन के साथ ही हुई है. मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के किनारे खरगोन जिले के बकवां गांव का हर पत्थर शवलिंग माना जाता है. खरगोन जिले के बकवां गांव अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है. दुनिया भर में इस गांव की चर्चा नर्मदेश्वर शिवलिंग की वजह से भी होती है. इस गांव से गुजर रही नर्मदा की तली में प्राकृतिक शिवलिंग बनते हैं. आपस में पत्थरों के टकराने और घिसने की वजह से शिवलिंग बनते हैं.
पत्थर आपस में टकराकर बनते है शिवलिंग
इन प्राकृतिक शिवलिंगों को नर्मदा की तली से निकाल कर इस गांव में रहने वाले केवट समाज के लोग तराशते हैं. यहां केवट समाज के लोग शिवलिंगों को तराशने का काम कुटीर उद्योग की तर्ज पर करते हैं. उनका कहना है कि त्रेता में उनके समाज पर भगवान राम ने कृपा की थी. अब कलियुग में भगवान शिव की कृपा बरस रही है. स्थानीय लोगों के मुताबिक इस गांव से निकल रही नर्मदा नदी में काफी तेज बहाव है. इसकी वजह से बड़े-बड़े पत्थर आपस में टकराते हुए आते हैं.
गांव के लोग नर्मदा के तल से इन पत्थरों को निकाल कर अपने घर ले जाते हैं और फिर आवश्यकता के मुताबिक इसे बारीकी से तराशने और नक्काशी के जरिए विभिन्न आकृतियों को उकेरने का काम करते हैं. इस काम से जुड़े लोगों के मुताबिक चूंकि ये पत्थर पहले से ही शिवलिंग की ही आकृति के होते हैं, इसलिए इन्हें तराशने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी होती.
किसी वरदान से कम नहीं नर्मदा
इस गांव में रहने वाले केवट समुदाय के लोगों के मुताबिक नर्मदा उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं है. इस गांव के लोग पीढ़ियों से नदी से पत्थर निकाल कर तराशने का काम कर रहे हैं और यह काम हर घर में होता है. इसी काम से लोगों की घर गृहस्थी बहुत अच्छे से चल रही है. इन्ही पत्थरों से निर्मित शिवलिंग को नर्मदेश्वर शिवलिंग कहा जाता है. स्थानीय लोगों के मुताबिक बकावां गांव से महेश्वर के बीच महज 15 किलोमीटर के दायरे में ही इस तरह के शिवलिंग मिलते हैं. शिवलिंग के काम से जुड़े बकावां गांव के निवासी तुलसीराम केवट कहते हैं कि नर्मदा से निकाला गया शिवलिंग नेचुरल होता है. नर्मदा के हर कंकर में शंकर का वास है.
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