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कैसे बचे बांग्लादेशी हिंदू?

यह बात दिल-दिमाग को सचमुच बैचेन किए हुए है कि करनी शेख हसीना और नरेंद्र मोदी की लेकिन भरनी लाखों-लाख हिंदू परिवारों की, अपनी माटी में थर्राते हुए जीने की। मैं आस्थावान हूं और मेरा धर्म है जो मैं अपने सहधर्मी घर-परिवारों की चिंताओं से सरोकार रखू। मैं सनातनधर्मी हूं इसलिए भी बांग्लादेश के हिंदुओं के प्रति मेरे मन में इसलिए मान है क्योंकि इन्हे अवसर था कि वे भारत आ कर बसते। आखिर बांग्लादेश भारत के सौजन्य से बना देश है। 1971 में इंदिरा गांधी और मुजीबुर्रहमान के समय में हिंदुओं के लिए भारत आ कर बसने का मौका था। लेकिन वे नहीं आए और माँ, माटी, मानुष की अपनी तासीर में उन्होने अपनी माटी को नहीं छोड़ा। इसलिए बांग्लादेश की आबादी में आज भी कोई आठ प्रतिशत हिंदू है। इनके खिलाफ हिंसा की जो खबरे आ रही है और कोई 25 जिलों में भीड़ के हमलों की जो बात है तो जाहिर है बांग्लादेश में सभी तरफ हिंदू बसे हुए है। यह भी ध्यान रहे कि विदेश में भी बांग्लादेशी प्रवासी हिंदुओं की संख्या अच्छी खासी है।

बांग्ला हिंदू भद्रजन भारतीय संस्कृति-सभ्यता का गौरव है। और पश्चिमी बंगाल हो या पूर्वी बंगाल, बांग्ला हिंदू अपनी देवी (मां), माटी ( गंगा-ब्रहपुत्र का विशाल दौआब) तथा मानुष (मनुष्यता का भद्र संस्करण) अभी तक अपनी भाषा, आस्था, रहन-सहन, पढ़ाई-लिखाई, बुद्धी की उन सभी प्रवृतियों को धारे हुए है जिसके चलते इस्लामी कट्टरता की मुश्किलों के बावजूद बांग्लाभाषी अपना वजूद कायम रखे हुए है।

पर अब अगस्त 2024 का मौजूदा समय इन बांग्लादेशी हिंदुओं के लिए भयानक है। और ऐसा होना भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से है। नरेंद्र मोदी, अजित डोवाल द्वारा शेख हसीना के निरंकुश पॉवर की एक ही टोकरी में सभी अड्डे रखना बांग्लादेशी हिंदुओं को विलेन बनाए हुए है। मोदी सरकार के कारण अस्सी लाख या एक करोड बांग्ला हिंदुओं का अपनी माटी में जीना मुश्किल हुआ पड़ा है।

इसलिए बांग्लादेश के हिंदुओं की त्रासदी हर हिंदू की त्रासदी है। कोई न माने इस सत्य को लेकिन हकीकत है इस 15 अगस्त 2024 के समय में दुनिया भर का हिंदू आशंकाओं, चिंता, दुविधा और टकरावों के ऐसे मनोभावों में सांस लेते हुए है कि भारतीय हो या प्रवासी, मोदी भक्त हो या मोदी विरोधी सभी हिंदू असहायता, अनिश्चितताओं में फंसे है।

यदि भारत का हिंदू निराशा, आर्थिक बेहाली, भक्ति सहित तमाम तरह की स्थितियों से जूझ रहा है तो कनाडा और अमेरिका व ब्रिटेन का हिंदू भी अपने को अजीब स्थिति में पा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके दस साला शासन का सबसे बड़ा पाप है जो दुनिया भर के हिंदुओं में अपने हिंदू नेतृत्व, शासन, गौरव की हवा फूंक हिंदूफोबिया बनाया, गुब्बारा फूलाया और अब सब बदनाम हो बेसहारा है। विदेशी भूमि के भारतीय  समुदायों में भी विभाजन बना है। कोई न माने इस बात को लेकिन हकीकत है कि कनाड़ा में आज हिंदू बनाम सिख का विग्रह है तो अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया में भी है। हर जगह इंडियन कम्युनिटी की एकजुटता या तो खत्म है या एक-दूसरे के दुश्मन है। ऊपर से ब्रिटेन, अमेरिका सभी जगह प्रवासियों के खिलाफ माहौल और अंग्रेज बनाम इस्लाम की लड़ाईयों में अलग हिंदुओं को अपने को बचाए रखना है।

एक तरफ ऋषि सुनक, कमला हैरिस आदि असंख्य चेहरों से इंडियन कम्युनिटी का मान-सम्मान तो दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी के शासन की बदनामियों (याद करे कनाड़ा में हरदीपसिंह निज्जर की हत्या, गुरपतवंत पन्नू की हत्या की साजिश जैसे विवाद), उनके भक्तों के मूर्खतापूर्ण नैरेटिव व हरकतों ने हिंदुओं की साख को ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है कि किसी भी सभ्य लोकतांत्रिक देश में भारत की कूटनीति से हिंदुओं के न हित सधते हुए है और न सम्मान व सुरक्षा में बेहतरी है।

तभी बांग्लादेश के हिंदुओं की चिंता में लाख टके का सवाल है कि वे हिंदू क्या करें? वे अपने को कैसे बचाए?  पहली बात, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार से कोई उम्मीद नहीं रखे। पहले पांच साल, फिर पांच साल कनाड़ा, अमेरिका, ब्रिटेन आदि के तमाम प्रवासी हिंदुओं ने, बांग्ला माटी के हिंदुओं ने उम्मीद रखी, मोदी के स्वागत के लिए बेइंतहा पैसा खर्च किया तो वह सब अब निरर्थक साबित है। इसलिए हर हिंदू को अनुभवों की समीक्षा करनी चाहिए। अपने-अपने समाजों में मैसेज बनाए कि उ निरंकुश और हिंदू बनाम इस्लाम, ईसाई के झगड़ों की पोषक मोदी सरकार से उनका नाता नहीं है। बांग्लादेश में जैसे शेख हसीना थी वैसे ही उसकी समर्थक मोदी सरकार है।

दूसरी बात, दिल-दिमाग से इस झूठ को निकाले कि नरेंद्र मोदी हिंदुओं के भगवान है या मोदी है तो सब मुमकिन है। अब हर उस सनातनी हिंदू का यह धर्म है कि पूरे समाज को नरेंद्र मोदी विश्वरूप के अंधविश्वास से बाहर निकाले। मेरा मानना है आने वाले महिनों में और खासकर आम चुनाव, नई सरकार के गठन (और यदि वहां जमायत इस्लामी के दबदबे वाली सरकार बनी तो पता नहीं न जाने क्या हो) तक हजारों-लाखों (पता नहीं क्या संख्या हो!) हिंदू परिवारों पर वहा विपदा का समय होगा। इसलिए बांग्लादेश के हिंदुओं में ही यह समझदारी बननी चाहिए जो वे लोकतंत्र बहाली के नौजवान आंदोलनकर्ताओं में अपनी पैंठ बनाए। दुनिया भर में फैले प्रवासी बांग्लादेशी हिंदुओं को अंतरिम सरकार के प्रमुख युशुफ पर यह दबाव बनाना चाहिए कि वे इस्लामी भीड़ को काबू करने, हिंदुओं की सुरक्षा के फैसले करें। मसले की अनदेखी नहीं करें। अमेरिका और ब्रिटेन जैसी प्रभावी सरकारों का मोहम्मद युनूश पर दबाव बनेगा तो हिंदुओं का जीना सामान्य हो सकेगा।

साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अजित डोवाल, एस जयशंकर को यदि बांग्ला हिंदुओं की तनिक भी चिंता है तो वे शेख हसीना को या तो ढाका के सुपुर्द करें या राष्ट्रपति पुतिन को पटाकर रूस में शेख हसीना का निर्वासन कराए। यों शेख हसीना के प्रति मेरा भी एक भाव है। लेकिन हसीना ने पिछले पंद्रह वर्षों में जिस तानाशाही के साथ ढ़ाका में राज किया, लोगों को जेल में डाला या मरवाया तो वे लोकतंत्र की हत्यारी अपराधी तो है इसलिए इस मांग का मतलब है कि भारत उन्हे बांग्लादेश के सुपुर्द करें। कांग्रेस और विपक्ष को शेख हसीना के साथ सहानुभूति नहीं रखनी चाहिए। तब हसीना का समर्थन करेंगे मोदी विरोध की क्या तुक?

आखिर जिस शेख हसीना ने लोकतंत्र को ढ़ोग में बदला। लोकतंत्र के नाम पर चुनावी धांधलिया की। संसद को कठपुतली बनाया। संसद में विरोध का मान और उसकी आवाज नहीं होने दी और संस्थाओं को भ्रष्ट तथा आज्ञाकारी बनाया। अखबार, मीडिया, सोशल मीडिया का गला घोटा उसका अंत वैसा क्यों न हो जैसा दुनिया के तमाम तानाशाहों का, सद्दाम हुसैन से ले कर सुहार्तों, सुकार्णों आदि का होता आया है।

असल बात शेख हसीना यदि भारत में रही तो बांग्लादेश में हिंदू निशाने में रहेंगे। शेख हसीना सरकार को नरेंद्र मोदी के खुले समर्थन का बदला वहा के आंदोलनकर्ता हिंदुओं से लेंगे।

पर भारत में क्या इस तरह सोचा जा रहा है? उलटा है। टीवी चैनलों, सोशल मीडिया में ललकारा जा रहा है कि मोदीजी घुस कर मारों या बांग्लादेश में सेना भेज कर हिंदुओं को बचाओं। शनिवार को एक भगवा चैनल में यह आव्हान था कि हमला कर वहा एक करोड़ हिंदुओं का अलग देश बने! ।

मतलब अभी भी मोदी भगवान है। मोदी है तो सब मुमकिन है। स्वभाविक है कि मोदी और उनकी टीम ने घर-घर मोदी की महिमा बनाई है। मतलब मोदी ने पाकिस्तान में घुसकर आंतकी ठिकाने खत्म किए। वे हिंदू विरोधी उग्रवादियों को कनाड़ा में ठिकाने लगा सकते है तो अमेरिका में भी हिंदू विरोधियों में कंपंकपी पैदा करते है। इतना ही नहीं उन्होने यूक्रेन-रूस में युद्ध रूकवा कर भारतीयों को सुरक्षित स्वदेश लौटाया आदि, आदि तो अंधविश्वासी हिंदू मानेंगे ही की वे अखंड भारत भी बना सकते है। बांग्लादेश पर कब्जा कर उसे भारत का अंग बना सकते है तो पाकिस्तान में कल्कि अवतार की महिमा बना उसे भी अपने अखंड भारत में समेट सकते है। दूसरे शब्दों में, बांग्लादेश के 15 करोड, पाकिस्तान के 24 करोड और भारत के 20 करोड़ मुसलमानों के अधिपति बनना, अखंड भारत बनाना मोदी के लिए चुटकियों का काम है तो इस मूर्ख मनोदशा में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया यूनुस और वहा की लोकंतत्रवादी सिविल सोसायटी, मुस्लिम नौजवान का टिड्डी दल भला विश्व रूपी दिव्य शक्ति मोदी के आगे कहा टिकेगा! मैं हैरान था शनिवार को एक राष्ट्रीय टीवी चैनल पर पाकिस्तान के मुसलमानों में हिंदुओं के कल्कि अवतार की सनसनी देख।

उफ! तब क्यों नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 अगस्त 2025 के दीन लालकिले पर घोषित कर देते कि मैं हूं कल्कि अवतार। साथ ही दस साला कार्यकाल का यह निचोड़ भी बताए कि कि उनके त्रिकालदर्शी अवतार में हिंदुओं की बुद्धी में कैसे चार चांद लगे है। और वे अपनी छप्पन इंची छाती को प्रमाणित करने के लिए लाल किले से ऐलान करें कि बांग्लादेश में यदि एक भी हिंदू का बाल बांका हुआ या धर्मांतरण हुआ तो वे खुद टैंक में बैठकर (2019 के चुनाव में उनके ऐसे फोटो थे) बांग्लादेश पर चढ़ाई करेंगे।

बहरहाल, व्यंग और कटाक्ष से बाहर निकल फिलहाल इतना भर सोचना चाहिए कि कैसे शेख हसीना भारत छोड़े और कैसे उस गौतम अदानी एंड पार्टी का धंधा ढ़ाका में बंद हो जिसके कारण अर्से से बांग्लादेश में भारत और मोदी के खिलाफ यह नफरत है कि उनके देश को मोदी पिठ्ठू अरबपति लूट रहे है। हां, बांग्लादेश में शेख हसीना के रहते हुए भारत और भारत की चीजों के बहिष्कार का नारा और आंदोलन भी था। उन सभी घावों पर मरहम के बिना हिंदुओं के खिलाफ बांग्लादेश में गुस्सा ठंडा नहीं होना है। या फिर यह हो कि भारत की सीमा के दरवाजे खोल कर नरेंद्र मोदी हिंदुओं को भारत आने दे।

आप ही सोचिए, क्या संभव है?

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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