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कहां कहां और कितना आरक्षण होगा?

पूरे देश में राजनीति करने और चुनाव लड़ने का अब सबसे बड़ा मुद्दा आरक्षण है। कर्नाटक में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ‘जितनी आबादी, उतना हक’ नारा दिया। इसका मतलब है कि जिसकी जितनी आबादी है उसको उतनी हिस्सेदारी मिलेगी। इसके लिए उन्होंने जातीय जनगणना की जरूरत बताई। बिहार में जातीय जनगणना चल रही थी, जिसे हाई कोर्ट ने रोक दिया है। ओड़िशा में भी सामाजिक, आर्थिक गणना का काम हो रहा है। इसके जरिए जातियों की वास्तविक संख्या का पता लगाया जाएगा और उनको उसी अनुपात में आरक्षण दिया जाएगा। कर्नाटक में कांग्रेस ने आरक्षण को बढ़ा कर 75 फीसदी करने का ऐलान किया है।

गौरतलब है कि अभी तक माना जाता था कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। लेकिन कई राज्यों ने इस सीमा का अतिक्रमण कर दिया गया है। झारखंड में ओबीसी आरक्षण 13 से बढ़ा कर 27 फीसदी कर दिया गया है। एससी आरक्षण में भी बढ़ोतरी की गई है। इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी आरक्षण 77 फीसदी तक पहुंच गया है। पिछड़ी, दलित और आदिवासी जातियों के अनुपात में राज्य सरकारें आरक्षण बढ़ा रही हैं। एक बार जातियों की गिनती हो जाए और उनका आंकड़ा सामने आ जाए तो उस हिसाब से आरक्षण लागू करने की घोषणा भी होगी।

तभी सवाल है कि कहां कहां और कितना आरक्षण बढ़ाया जाएगा? चूंकि देश की सभी पार्टियां आरक्षण और सामाजिक न्याय की बात कर रही हैं इसलिए यह मानने में दिक्कत नहीं है कि आने वाले समय में जातियों को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण मिला हुआ होगा। सामाजिक न्याय की राजनीति भारत में खास कर उत्तर भारत में मंडल आयोग की रिपोर्ट से तेज हुई और उसकी राजनीति करने वाले तमाम पुरोधा नेता आरक्षण बढ़ाने की मांग करते रहे हैं। सो, आने वाले दिनों में कई नए क्षेत्रों में आरक्षण देखने को मिलेगा। न्यायपालिका में आरक्षण की व्यवस्था लागू करने की मांग पर अमल हो सकता है। सेना में जातियों के नाम पर बटालियन बनाने की मांग उठने लगी है। निजी सेक्टर में आरक्षण लागू करने का फैसला हो सकता है क्योंकि सरकारी क्षेत्र में नौकरियां कम हो गई हैं। आरक्षण की सीमा 50 से बढ़ कर 90 फीसदी तक जा सकती है।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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