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बांग्लादेश में हिंदुओं की दुर्दशा

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विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गुरुवार, सात नवंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बांग्लादेश की सरकार से कहा कि वह हिंदुओं पर हमला करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करे। पिछले दो महीने में कई बार इस तरह की बात कही जा चुकी है। अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव प्रचार के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने भी बांग्लादेश में हिंदुओं को प्रताड़ित किए जाने का मुद्दा उठाया और उसे बर्बरता करार दिया। सोचें, इससे पहले कब अमेरिका के किसी पूर्व राष्ट्रपति को इस तरह की चिंता जताने की जरुरत पड़ी थी? बांग्लादेश में भारत के हिंदू प्रताड़ित हो रहे हैं। उनकी धार्मिक गतिविधियों को रोका जा रहा है। मंदिरों और घरों पर हमले हो रहे हैं। इतना ही नहीं अब तो भगवा झंडा फहराने पर भी बांग्लादेश में हिंदुओं पर मुकदमे हो रहे हैं!

यह बिल्कुल ताजा परिघटना है। चटगांव में पिछले दिनों भारत के हिंदुओं ने सनातन धर्म के बैनर तले जुलूस निकाला और प्रदर्शन किया था। उस प्रदर्शन में भगवा झंडा फहराया गया। यह सनातन संस्कृति का प्रतीक झंडा है। लेकिन किसी एक व्यक्ति ने शिकायत कर दी कि बांग्लादेश के झंडे के ऊपर हिंदुओं ने भगवा झंडा फहराया तो दर्जनों लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया। कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। यह अलग बात है कि बाकी धर्मों के लोग भी अपने धर्म का झंडा बांग्लादेश के राष्ट्रीय झंडे से ऊपर ही फहराते हैं। खुद इस्लामिक संगठनों के जुलूस में लोग अपने धर्म का झंडा ऊपर रखते हैं। अनेक लोगों ने सोशल मीडिया में इस तरह की तस्वीरें भी साझा कीं। लेकिन बांग्लादेश के नए प्रशासन और वहां की पुलिस यहां तक कि सेना का नजरिया भी हिंदुओं के प्रति द्वेष का है। तभी इस मामले में मुकदमा दर्ज हुआ और गिरफ्तारी हुई।

एक पुरानी कहावत है कि ‘जबरा मारे और रोने भी न दे’। यही स्थिति बांग्लादेश में दिख रही है। वहां के कट्टरपंथी तत्व सेना और पुलिस की देखरेख में हिंदुओं पर हमले कर रहे हैं। मंदिर तोड़ रहे हैं। और जब हिंदू संगठन इसके विरोध में प्रदर्शन करते हैं तो पुलिस मुकदमे दर्ज करके उनको गिरफ्तार कर रही है। यह सब तब हो रहा है, जब देश में हिंदू हितों को सर्वोच्च मानने का दावा करने वालों की सरकार है। जब कथित तौर पर हिंदू विरोधी और तुष्टिकरण करने वाली सरकार थी तब पड़ोस के देश बांग्लादेश में हिंदू पीटे नहीं जा रहे थे और न भगाए जा रहे थे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिंदू और मुसलमान का तनाव ऐतिहासिक है। यह एक धार्मिक व सांस्कृतिक विवाद है। लेकिन कूटनीति और राजनीति से इसे दबा कर रखा जाता था। बांग्लादेश में चाहे शेख हसीना वाजेद प्रधानमंत्री रही हों या खालिदा जिया रही हों हिंदू लोग सहज भाव से रहते थे और अपने पर्व त्योहार मनाते थे। लेकिन अब जैसे जैसे भारत में धार्मिक आधार पर विभाजन बढ़ रहा है और भारतीय जनता पार्टी के नेता वोट लेने के लिए अनाप शनाप भाषण दे रहे है वैसे वैसे पड़ोस के देशों में, हिंदुओं का जीवन मुश्किल होता जा रहा है।

अगर भाजपा को अपने राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक विभाजन बढ़ाना है या जैसा कि केंद्र सरकार के गिरिराज सिंह जैसे मंत्री खुल कर मुसलमानों के खिलाफ बोल रहे हैं, उन्हें भगाने और मारने की बात कर रहे हैं तो क्या भाजपा की सरकार को मुस्लिम बहुल देशों में हिंदुओं को बचाने के उपाय नहीं करने चाहिए? लेकिन चूंकि बांग्लादेश या पाकिस्तान के हिंदू भाजपा का वोट बैंक नहीं हैं तो उनकी कोई चिंता नहीं है। नागरिकता कानून में संशोधन कर दिया गया, लेकिन अब तक जितने हिंदूओं को नागरिकता मिली है उनकी संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। जाहिर है सरकार की एप्रोच केवल भारत में मुस्लिमों को गालियां देकर, उनके साथ मारपीट करके हिंदुओं के वोट हासिल करने और दूसरे देशों में हिंदुओं को उनके हाल पर छोड़ देने की है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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