भारतीय जनता पार्टी और देश की राजनीति में भी शीर्ष के दो नेता नरेंद्र मोदी और अमित शाह हैं। उनके बाद जो तीसरे नेता उभर रहे हैं वे योगी आदित्यनाथ हैं। इन तीनों नेताओं की छवि कट्टर हिंदू नेता की है। यह माना जा रहा है कि देश के बहुसंख्यक हिंदू समाज को एकजुट करने के लिए उसी तरह की राजनीति करनी होगी, जैसी ये तीन नेता करते हैं। कट्टर हिंदू राजनीति के अलावा इन तीनों की एक पहचान अकेले चलने वाले नेता की है। केंद्र सरकार में जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने अमित शाह के अलावा किसी दूसरे मंत्री का कोई मतलब नहीं है उसी तरह उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के सामने किसी मंत्री या नेता की कोई हैसियत नहीं है। सत्ता और अधिकार पर इन नेताओं का संपूर्ण नियंत्रण है।
तभी सवाल है कि क्या भाजपा की आगे की राजनीति में उदार और समावेशी यानी सबको साथ लेकर चलने वाले नेताओं के लिए कोई जगह है? या जिसको आगे बढ़ना है उसे इसी तरह की राजनीति करनी होगी? मौजूदा स्थिति में उदार और समावेशी नेताओं के लिए जगह नहीं दिख रही है। लेकिन परिस्थितियां पैदा होती हैं तो कुछ भी हो सकता है। आखिर परिस्थितियों ने ही अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया था। नब्बे के दशक के शुरू में रथयात्रा कर रहे लालकृष्ण आडवाणी को यह बात समझ में आ गई थी कि भाजपा अपने दम पर सत्ता हासिल नहीं कर सकती है। उसे दूसरी पार्टियों की मदद की जरूरत होगी और वह मदद वाजपेयी के चेहरे पर ही मिल सकती है। सो, उन्होंने वाजपेयी के नाम का ऐलान किया और वाजपेयी ने छह साल तक 25 पार्टियों के गठबंधन की सरकार चलाई। सो, अगर भाजपा अगले चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करती है तो किसी उदार, समावेशी नेता के लिए संभावना नहीं है।
लेकिन अगर भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तभी भाजपा के उदार और समावेशी नेताओं के लिए कोई जगह बनेगी। विपक्ष की कई पार्टियां ऐसी परिस्थिति बनाने के लिए काम कर रही हैं। नीतीश कुमार ने भाजपा से अलग होने के बाद कहा था कि अगर 50 सीटें कम हो जाती हैं तो भाजपा अल्पमत में आ जाएगी। उसका बहुमत समाप्त हो जाएगा। उनके कहने का एक मतलब यह है कि तब भाजपा को दूसरी पार्टियों या पुराने सहयोगियों की जरूरत पड़ेगी। अगर राजनीति ऐसा टर्न लेती है और अगले चुनाव में भाजपा बहुमत से पीछे रह जाती है तब दूसरी पार्टियों या पुरानी सहयोगी पार्टियों की शर्त शीर्ष पर बदलाव की होगी। तब भाजपा के उदार चेहरों में से किसी की लॉटरी निकल सकती है।
भाजपा के उदार चेहरों में नंबर एक नाम नितिन गडकरी का है। वे नरेंद्र मोदी की सरकार में सबसे सक्षम मंत्री माने जाते हैं। उन्होंने सड़क परिवहन का कायाकल्प किया है। पूरे देश में सड़कों का जाल बिछाने वाले नेता के तौर पर वे जाने जाते हैं। उनकी एक खासियत यह भी है कि वे अपने मन से काम करते हैं। पार्टी के सर्वोच्च नेता का दबाव भी उनके ऊपर नहीं है। नोटबंदी जैसे मुद्दे पर भी वे इकलौते नेता थे, जिन्होंने सवाल उठाया था। उनको स्वतंत्र रूप से सोचने, विचारने और काम करने का खामियाजा भी भुगतना पड़ा है। लेकिन वे सक्षम मंत्री हैं, सबको साथ लेकर चलने वाले नेता हैं, जो उन्होंने भाजपा के अध्यक्ष के तौर पर प्रमाणित किया है, विपक्षी पार्टियों के साथ भी उनका सद्भाव है और कॉरपोरेट को उन पर भरोसा है।
दूसरा चेहरा राजनाथ सिंह का है। वे उत्तर प्रदेश के नेता हैं और दो बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं। उनका कद अखिल भारतीय है। विपक्षी पार्टियों का उनके प्रति सद्भाव रहता है। मीडिया में भी वे खासे लोकप्रिय हैं। लेकिन उनके रास्ते की एक बाधा यह है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सबसे बड़े नेता के तौर पर उभरे हैं। दूसरे, नरेंद्र मोदी सरकार में कामकाज के जरिए उन्होंने गडकरी जैसी छाप नहीं छोड़ी है। उनके बारे में यह धारणा भी बनी है कि वे नरेंद्र मोदी के हिसाब से ही काम करते हैं। यानी स्वतंत्र रूप से, अपनी मर्जी से फैसले नहीं करते हैं, जैसे गडकरी करते हैं। मोदी सरकार के दूसरे मंत्रियों की तरह राजनाथ सिंह भी हर समय प्रधानमंत्री मोदी का गुणगान करते हैं, जबकि गडकरी के मुंह से कभी कभार ही प्रधानमंत्री का गुणगान सुनने को मिला होगा।
नितिन गडकरी और राजनाथ सिंह के अलावा कुछ और नेता हो सकते हैं लेकिन वह संयोग पर आधारित होगा। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बड़ा नाम है लेकिन एक बार चुनाव हारने के बाद फिर से मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनकी स्थिति पहले जैसी नहीं रही है। वे विनम्र हैं, उदार हैं, समावेशी हैं और पिछड़ी जाति से आते हैं, संघ का पुराना बैकग्राउंड है। ये सारी बातें उनके पक्ष में हैं।