कर्नाटक में मतदान की तारीख नजदीक आते आते यह धारणा बन रही है कि कांग्रेस आलाकमान पार्टी को चुनाव लड़ा रहा है। जब चुनाव प्रचार शुरू हुआ था तो माना जा रहा था कि कांग्रेस के दो नेता, पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार चुनाव लड़ा रहे हैं। इन्हीं दोनों के चेहरे पर चुनाव हो रहा था। बाद में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की चुनाव में एंट्री हुई। खड़गे, सिद्धरमैया और डीकेएस की तिकड़ी चुनाव लड़ाने लगी। चुनाव पूर्व तमाम सर्वेक्षणों में जब यह बताया जाने लगा कि कांग्रेस अकेले दम पर जीत कर सरकार बना सकती है तो मीडिया ने अपने आप या प्रायोजित तरीके से यह धारणा बनाई कि चुनाव प्रदेश के मुद्दों पर हो रहा है, प्रदेश के नेता चुनाव लड़वा रहे हैं और कांग्रेस प्रदेश के नेताओं के दम पर जीतेगी। लेकिन अब यह धारणा बदल गई है। लेकिन फिर भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं की एंट्री और हल्ला बोल प्रचार से चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों व इमेज पर लड़ा जा रहा है। तभी यह धारणा बन गई है कि राहुल गांधी व प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस को चुनाव लड़वा रहे हैं।
सोनिया गांधी भी हुबली में एक चुनावी सभा संबोधित कर रही हैं। बरसों बाद वे किसी चुनावी रैली में हिस्सा लेंगी। यह संयोग है कि आखिरी राजनीतिक कार्यक्रम, जिसमें उन्होंने हिस्सा लिया था वह कर्नाटक में ही था। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जब कर्नाटक पहुंची थी तब सोनिया भी वहां पहुंची थीं और राहुल के साथ पैदल चली थीं। उसके बाद वे प्रचार के लिए जा रही हैं। इस तरह पिछले दो हफ्ते में सोनिया गांधी के परिवार ने कर्नाटक का चुनाव प्रचार पूरी तरह से अपने हाथ में ले लिया। पहले राहुल गांधी चुनाव प्रचार में उतरे और एक दर्जन चुनावी रैलियों को संबोधित किया। उन्होंने किसानों, युवाओं, मछुआरों आदि से संवाद किया। हर समूह की समस्याओं को समझ कर उनके लिए चुनावी वादे किए।
इसी तरह प्रियंका का अभियान चुनाव की घोषणा से पहले शुरू हुआ था और वे महिलाओं के एक कार्यक्रम में शामिल हुई थीं। चुनाव की घोषणा के बाद उन्होंने चार दिन प्रचार किया। हर दिन कम से कम तीन चुनावी रैलियों को संबोधित किया। प्रियंका ने भाजपा के एजेंडे और उसके नेताओं की ओर से उठाए जा रहे मुद्दों का आक्रामक तरीके से जवाब देना शुरू किया। खड़गे के बयान पर जब प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस ने उनको 91 बार गालियां दी हैं तो प्रियंका ने ही रक्षात्मक होने की बजाय आगे बढ़ कर कहा कि प्रधानमंत्री हमेशा अपना दुखड़ा रोते रहते हैं, उनको जनता के दुख दर्द से मतलब नहीं होता है। प्रियंका ने कहा कि उनके परिवार को जितनी गालियां दी गई हैं, अगर वे वह गिनाना शुरू करें तो किताबें छप जाएंगी। उसके बाद अचानक अपमान का मुद्दा गायब हो गया।
सो, पिछले कई चुनावों के बाद सोनिया, राहुल और प्रियंका ने किसी राज्य के चुनाव में दम लगाया है। अगर इन तीनों के प्रचार से कांग्रेस जीतती है तो वह न सिर्फ कांग्रेस की किस्मत बदलने वाला होगा, बल्कि नेहरू-गांधी परिवार के चमत्कारिक नेतृत्व की पुनर्स्थापना करने वाला भी होगा। अभी यह आम धारणा है कि कांग्रेस आलाकमान बहुत कमजोर हो गया है और प्रादेशिक क्षत्रप अपने दम पर कांग्रेस को चुनाव जिताते हैं। इससे प्रादेशिक क्षत्रपों की मनमानी भी बढ़ी है, जिसे कई राज्यों, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि में साफ देखा जा सकता है। कई बार प्रदेश की राजनीति में पार्टी आलाकमान दखल ही नहीं दे सका और वह बहुत लाचार दिखा।
इसका एक कारण यह भी था कि भाजपा ने राहुल गांधी के बारे में यह धारणा बना दी थी कि वे जहां भी प्रचार करने जाते हैं वहां कांग्रेस हारती है। कांग्रेस नेताओं ने भी मन ही मन इस धारणा को मान लिया था। सब अपने को अपने राज्य का आलाकमान मानने लगे थे। कर्नाटक चुनाव के बाद यह धारणा बदल सकती है। कर्नाटक में भले प्रदेश के नेता लोकप्रिय हैं और चुनाव लड़वा रहे हैं लेकिन पूरे राज्य में उम्मीदवारों ने राहुल और प्रियंका की रैलियों की मांग की। और जहां जहां दोनों ने प्रचार किया वहां उनको जनता की अच्छी प्रतिक्रिया मिली। तभी ऐसा लग रहा है कि कर्नाटक के नतीजे के बाद भाजपा और कांग्रेस के प्रादेशिक क्षत्रपों को नए सिरे से राहुल और प्रियंका के बारे में सोचना होग।