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चीन ने पश्चिम को उकसा रहा!

जिस तरह से कनाडा में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या पर भारत में राजनीति हो रही है तो उसमें एक बड़ा तबका ऐसा है, जो इसे एक राजनीतिक अवसर के रूप में देख रहा है उसी तरह भारत के दो पड़ोसी चीन और पाकिस्तान भी इसमें अवसर देख रहे हैं। भारत में इसे चुनावी मुद्दे की तरह देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि अगले साल के लोकसभा चुनाव में इसका फायदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिलेगा तो दूसरी ओर चीन और पाकिस्तान इसे कूटनीतिक मुद्दे के तौर पर देख रहे हैं और इस बहाने भारत को विश्व बिरादरी में अलग-थलग करने का मौका मान रहे हैं। इस मामले में दोनों देशों की प्रतिक्रिया एक जैसी है। दोनों ने पश्चिमी देशों को उकसाने वाले बयान दिए हैं और भारत को एक दुष्ट देश के रूप में पेश करने का प्रयास किया है।

चीन ने हालांकि इस मामले में आधिकारिक रूप से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन वहां की सरकारी मीडिया ने इस मामले में अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों को निशाना बनाया है। चीन की सरकार का विचारों का प्रचार करने वाले राष्ट्रवादी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने अमेरिका को निशाना बनाते हुए कहा कि वह भारत को लोकतंत्र और आजादी के मूल्यों का पैरोकार मानता है और अपना सहयोगी बनाए हुए है और इस वजह से मानवाधिकारों के मामले में भारत के इतिहास की अनदेखी करता रहता है। अखबार ने इसे अमेरिका का पाखंड करार दिया है। ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने यह भी कहा है कि चीन पर दबाव डालने के लिए अमेरिका भारत के साथ सहयोग स्थापित करता है। इस मामले में सबसे तीखी टिप्पणी ‘ग्लोबल टाइम्स’ के संपादक हु शिजिन ने की, जिन्होंने निज्जर की हत्या का हवाला देते हुए ट्विटर पर लिखा- हत्या की घटना संभव है कि अमेरिका के लिए परेशानी का कारण बन जाए। इसके आगे सवालिया लहजे में उन्होंने लिखा- क्या उसे अपने छोटे भाई कनाडा का समर्थन करना चाहिए या भारत का, जो चीन को काउंटर करने के लिए उसका प्यादा है? यह बयान अमेरिका को उकसाने वाला तो है ही साथ ही भारत के लिए बेहद अपमानजनक है। इससे यह दिख रहा है कि चीन भारत और अमेरिका के संबंधों को किस नजर से देखता है। चीन के कुछ अन्य मीडिया संस्थानों ने भी कनाडा की घटना को अमेरिका और ब्रिटेन के लिए मुश्किल वाला बताया है और कहा है कि उनको इस बारे में फैसला करना होगा।

और यह भी नोट करें कि अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने कहा हम कनाडा के साथ है और अमेरिका, भारत को कोई ‘विशेष छूट’ नहीं देगा।देश की परवाह किए बिना हम साथ खड़े होंगे और अपने बुनियादी सिद्धांतों की रक्षा करेंगे। हम कनाडा जैसे सहयोगियों के साथ भी नज़दीक से काम करेंगे, क्योंकि इस मामले में जांच और राजनयिक प्रक्रिया को कनाडा आगे बढ़ा रहा है।मैं इस बात को मज़बूती से ख़ारिज करता हूं कि अमेरिका और कनाडा के बीच कोई मतभेद है। जो आरोप कनाडा ने लगाए हैं, उसे लेकर हमें चिंता है और हम चाहेंगे कि इस जांच को आगे बढ़ाया जाए और अपराधियों को ज़िम्मेदार ठहराया जाए।”

पाकिस्तान

चीन की ही तरह पाकिस्तान ने भी बिल्कुल उसी की लाइन पर बयान दिया है। पाकिस्तान ने कनाडा में हुई निज्जर की हत्या और उस पर भारत व कनाडा के बीच चल रहे कूटनीतिक गतिरोध का इस्तेमाल भारत को बदनाम करने के लिए किया है। उसने इसी बहाने कश्मीर का मुद्दा उठाया है और भारत पर मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाया है। चीन की तरह पाकिस्तान ने भी अमेरिका को उकसाया है। फर्क इतना है कि चीन की ओर से उसकी मीडिया ने कमान संभाली है, जबकि पाकिस्तान की ओर से सरकार सीधे सामने
आई है।

पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने भारत को एक ‘शरारती देश’ बताते हुए कहा है कि वह ‘नाटो के एक सदस्य देश की संप्रभुता का उल्लंघन करते हुए पकड़ा गया है’। पाकिस्तान के प्रसिद्ध अखबार ‘डॉन’ ने कनाडा में हुई निज्जर की हत्या के पीछे भारत और इजराइल के करीबी संबंधों को कारण बताया है। उसने लिखा है कि ‘भारत जिसे आतंकवादी समझता है उस पर हमला करने का तरीका इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद की हैंडबुक से लिया है’। उर्दू अखबार ‘दुनिया’ ने लिखा है कि भारत की वजह से कनाडा अभी जो हालात देख रहा है, पाकिस्तान लंबे अरसे से इस ओर दुनिया का ध्यान खींचने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तानी अखबारों ने कश्मीरी, सिखों और मणिपुरी लोगों को बीच में लाकर भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड को खराब बताने की कोशिश कर रहे हैं।

हो सकता है कि इस पूरे घटनाक्रम से भारत के अंदर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राजनीतिक लाभ मिल जाए लेकिन यह घटनाक्रम जितना लंबा चलेगा, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारत की साख उतनी खराब होगी। इसलिए जल्दी से जल्दी इसका निपटारा करना होगा। अगर जरूरत हो तो कनाडा की एजेंसियों के साथ जांच में शामिल होकर इस मामले को खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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