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जांच कैसे होगी, कौन कराएगा?

Adani Bribery CaseImage Source: ANI

गौतम अडानी ने जब भारत सरकार के सार्वजनिक उपक्रम सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के साथ करार कर लिया और अमेरिकी में सूचीबद्ध एज्योर एनर्जी के जरिए अमेरिका में इसका प्रचार करके खूब सारा पैसा उठा लिया तो सबसे बड़ा संकट था कि सोलर एनर्जी खरीदेगा कौन? पारंपरिक ऊर्जा स्रोत यानी कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों या पनबिजली परियोजनाओं के मुकाबले सौर ऊर्जा वाली बिजली स्वच्छ तो थी लेकिन महंगी बहुत थी। ऊपर से चार या आठ गीगावॉट बिजली बेचनी है। इसका एक ही तरीका था कि राज्य सरकारें बिजली खरीदे। इसके लिए अडानी समूह ने राज्य सरकारों के साथ लॉबिंग शुरू की। प्रयास किया गया कि राज्यों की पावर ट्रांसमिशन कंपनियों के साथ पावर परचेज एग्रीमेंट हो। इस मामले में ज्यादातर राज्यों ने हाथ खड़े कर दिए क्योंकि उनको पारंपरिक स्रोत से सस्ती बिजली मिल रही थी और तब भी उनको अच्छी खासी सब्सिडी देनी होती थी। सो, राज्यों को पटाने के लिए भारी भरकम रिश्वत दी गई।

उस समय चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के सौर ऊर्जा की खरीद का सौदा हुआ। इन राज्यों में से एक छत्तीसगढ़ है, जहां सौदे के समय कांग्रेस की सरकार थी। दो राज्यों में उस समय प्रादेशिक पार्टियों की सरकार थी। तमिलनाडु में एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार थी, जो कांग्रेस गठबंधन में थी और आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस की सरकार थी। ओडिशा में नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजू जनता दल की सरकार थी। आंध्र प्रदेश और ओडिशा दोनों की राज्य सरकारें मुद्दों के आधार पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का समर्थन करती थीं। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर था, जिसके साथ सौर ऊर्जा का समझौता हुआ था।

अब चार जगह स्थितियां बदल गई है। ओडिशा और छत्तीसगढ़ में अब भाजपा की सरकार है। आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की सरकार है, जिसमें भाजपा भी शामिल है। यानी वहां एनडीए की सरकार है। तमिलनाडु में अब भी डीएमके की सरकार है। जम्मू कश्मीर अब भी केंद्र शासित प्रदेश है लेकिन वहां अब राष्ट्रपति शासन नहीं है और उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार है। तभी सवाल है कि बदली हुई परिस्थितियों में इस मामले की जांच कैसे होगी? कौन जांच के आदेश देगा? क्या राज्य सरकारें इस मामले की जांच कराएंगी? भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता डंके की चोट पर कह रहे हैं कि जिस समय सौर ऊर्जा के समझौते होने और रिश्वत दिए जाने की घटना हुई है उस समय किसी राज्य में भाजपा की सरकार नहीं थी। लेकिन अब जो भाजपा की सरकार है वह विपक्षी पार्टियों की सरकारों की जांच के आदेश देगी? अगर ओडिशा और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार और आंध्र प्रदेश की चंद्रबाबू नाय़डू सरकार जांच के आदेश देती है तो तमिलनाडु में क्या होगा? अगर तमिलनाडु सरकार अपने ही समझौते की जांच नहीं कराती है तो क्या केंद्र सरकार अपनी ओर से पहल करके जांच कराएगी या अदालत का दखल होगा? ध्यान रहे सौर ऊर्जा का करार भारत सरकार के सार्वजनिक उपक्रम सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के साथ हुआ है। इस लिहाज से भारत सरकार भी जांच करा सकती है। सबसे दिलचस्प जम्मू कश्मीर का मामला है, जो अब भी केंद्र शासित प्रदेश है लेकिन क्या उमर अब्दुल्ला की सरकार मामले की जांच के आदेश दे सकती है और अगर आदेश देती है तो क्या उप राज्यपाल और केंद्रीय गृह मंत्रालय जांच होने देगा?

इस मामले में भी सबकी नजर आंध्र प्रदेश पर होगी, जहां मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू अपनी गिरफ्तारी का बदला लेने के लिए किसी तरह से पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी को जेल भेजना चाहते हैं। ऊपर से सबसे ज्यादा रिश्वत आंध्र प्रदेश में ही दी गई है। कथित तौर पर 21 सौ करोड़ रुपए से कुछ ज्यादा की जो रिश्वत दी गई है उसमें से 1,750 करोड़ रुपए आंध्र प्रदेश सरकार को दिए गए हैं। जगन मोहन रेड्डी कह रहे हैं कि उनकी सरकार ने भारत सरकार के सार्वजनिक उपक्रम के साथ करार किया है और वह बहुत साफ सुथरा करार है। नायडू के सामने दुविधा यह होगी कि जांच कराते हैं तो जगन मोहन के साथ साथ सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और गौतम अडानी दोनों जांच के दायरे में आएंगे। अगर जगन दोषी पाए जाते हैं तो अडानी भी दोषी पाए जाएंगे। तो क्या ऐसी जांच की इजाजत केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार दे सकती है? ये दुविधा ओडिशा और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकारों के सामने भी होगी कि वे अडानी को कठघरे में खड़ा करें या नहीं? तमिलनाडु सरकार के सामने तो बड़ी समस्या है कि वह अपने ही खिलाफ कैसे जांच कराए। कांग्रेस पार्टी जांच की मांग करेगी तो छत्तीसगढ़ की उसकी सरकार कठघरे में आएगी और स्टालिन जैसा करीबी सहयोगी भी मुश्किल में फंसेगा। सो, कुल मिला कर बहुत दिलचस्प स्थिति हो गई है। अडानी को बचाने वालों के सामने अलग मुश्किल है तो अडानी पर शिकंजा कसने की चाह रखने वालों के सामने अलग समस्या है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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