सबसे हैरानी की बात है कि भारतीय जनता पार्टी जिन मुद्दों को चुनाव के लिए तैयार कर रही थी उन पर चुनाव नहीं लड रही है। सांप्रदायिक विभाजन और कट्टर हिंदुत्व वाले मुद्दे भाजपा ने लगभग पूरी तरह से छोड़ दिया। भाजपा ने न सिर्फ यह एजेंडा छोड़ा है, बल्कि इसका बहुत साफ मैसेज भी दिया है वह इन एजेंडों पर चुनाव नहीं लड़ेगी। यह मैसेज देने के लिए भाजपा ने राज्य में प्रचार के लिए बनी 40 स्टार प्रचारकों की सूची में बेंगलुरू के सांसद तेजस्वी सूर्या को नहीं रखा। वे भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश तक भाजपा के लिए एजेंडा बनवाने वाला प्रचार कर रहे हैं। वे कट्टरपंथी राजनीति का सबसे तेजी से उभरता चेहरा हैं। कोरोना महामारी के समय वार रूम में काम कर रहे मुस्लिम सदस्यों के ऊपर उन्होंने आरोप लगा दिया था, जिसे लेकर बाद में उनकी और पार्टी की बड़ी किरकिरी हुई थी। लेकिन इसके बावजूद वे पूरे देश में घूम कर भड़काऊ भाषण करते थे। परंतु उनको भाजपा ने स्टार प्रचारक नहीं बनाया।
वे पिछले छह-आठ महीने से जिन मुद्दों पर प्रचार कर रहे थे वो सारे मुद्दे हाशिए में हैं। भाजपा हिजाब का मुद्दा नहीं बना रही है, जबकि पिछले साल कई महीने तक इस पर राजनीति हुई थी। राज्य सरकार ने स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पर पाबंदी लगाई है, लेकिन भाजपा इसका श्रेय नहीं ले रही है। हलाल मीट का मुद्दा नहीं उठाया जा रहा है। टीपू सुल्तान बनाम सावरकर का प्रचार नहीं हो रहा है। लव जिहाद व धर्मांतरण की बात नहीं हो रही है और न अभी तक किसी ने मंदिर निर्माण का जिक्र किया है। हिंदी पट्टी के राज्यों में अपने भड़काऊ भाषणों से ध्रुवीकरण कराने वाले सांसद और केंद्रीय मंत्रियों को भी अभी तक चुनाव प्रचार से दूर ही रखा गया है। भड़काऊ भाषणों की बजाय भाजपा विकास की बात कर रही है और सामाजिक समीकरण के आधार पर चुनाव लड़ रही है।
विकास के लिए नरेंद्र मोदी का चेहरा आगे किया गया है। कुछ समय पहले सूत्रों के हवाले से मीडिया में यह खबर आई थी कि भाजपा नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ेगी। उसी समय कहा गया था कि कट्टरपंथी और भड़काऊ मुद्दों की बजाय डबल इंजन की सरकार के विकास और मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाएगा। असल में येदियुरप्पा के चुनावी राजनीति से संन्यास के बाद भाजपा के पास प्रदेश में कोई ऐसा चेहरा नहीं बच गया है, जिसके दम पर वह पूरे राज्य में चुनाव लड़े। ऊपर से उसके ज्यादातर नेताओं के खिलाफ एंटी इन्कंबैंसी है। दूसरी ओर कांग्रेस के पास मल्लिकार्जुन खड़गे, सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार जैसे नेता हैं। तभी भाजपा चुनाव को मोदी बनाम राहुल करने या मोदी बनाम गांधी परिवार बनाने की कोशिश में लगी है। कांग्रेस का हमला भाजपा के स्थानीय नेताओं पर है तो भाजपा का हमला कांग्रेस के स्थानीय नेताओं की बजाय राष्ट्रीय नेताओं और खास कर सोनिया व राहुल गांधी पर है।