राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

लावारिश सभी मुश्किलों को बरदास्त भ्रष्टाचार के कारण हैं

भारत में रिश्वत की लेन-देन ने लोगों का जीवन कुछ मामलों में आसान बनाया है, लेकिन देश की सामूहिक बुद्धी इस बात को नहीं समझती हैं कि उनकी सारी मुश्किलें भ्रष्टाचार के कारण हैं। वे पहले भ्रष्टाचार बरदाश्त करते हैं फिर उससे पैदा हुई मुश्किलों को भी अंतहीन सीमा तक बरदास्त करते है। लोगों की समझ में यह बात नहीं आती कि उत्तराखंड के जोशीमठ में उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ रहा है तो इसका कारण भ्रष्टाचार है। पनबिजली की परियोजनाओं से लेकर रिसॉर्ट बनाने तक का काम कहीं वन विभाग को, कहीं पर्यावरण विभाग को, कहीं नगर निगम या नगरपालिका को तो कहीं जिला प्रशासन को रिश्वत देकर ही तो कराया गया था। पारिस्थितिकी का जो संकट देश झेल रहा है उसकी जड़ में करप्शन है। अगर कोई व्यक्ति रिश्वत देने में सक्षम है तो जंगल की संरक्षित जमीन पर, ऊंचे पहाड़, नदियों व समुद्र के किनारे संरक्षित जोन में यानी कहीं भी फैक्टरी लगा सकता है।रिसॉर्ट बना सकता है।   

देश में सबसे ज्यादा अनाज उपजाने वाले पंजाब में कृषि का संकट है और ऐसा वहां के किसानों की वजह से है। आज पंजाब में भूमिगत जल स्तर देश के किसी दूसरे मैदानी हिस्से से नीचे चला गया है। अब दो हजार फीट नीचे बोरिंग कराने पर पानी मिल रहा है। लेकिन किसी को सुध नहीं है। अधिकारी और कर्मचारी थोड़े से पैसे के लालच में किसानों को जमीन का पानी सोखने दे रहे हैं। राजधानी दिल्ली में पाबंदी के बावजूद खुलेआम रिश्वत के दम पर गली मोहल्लों में बोरिंग हो रही है। जमीन के नीचे से पानी खींचा जा रहा है। गर्मियां आते ही पूरे देश में पानी के लिए हाहाकार शुरू हो जाती है। ये तमाम हम भारतीय अपने हाथों, अपने रिश्वत तंत्र से बनाए है। जिस तरह नगरपालिका, निगम, जल-बिजली बोर्ड और पुलिस महकमे के आदमी रिश्वत लेने को अपना अधिकार मानते है वैसे ही दक्षिण एसिया के लोग रिश्वत देकर नाजायज काम करना अपना अधिकार मानते है। वे खुद ही अपनी बनाई व्यवस्था के गुलाम है। न मानव कायदे और न कानून के राज की परवाह है। 

दक्षिण एसिया में कानून के अनुपालन को अपमान माना जाता है। पिछले दिनों इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति दिल्ली आए तो उन्होंने कहा कि वे दिल्ली में असहज महसूस करते हैं क्योंकि दिल्ली एक ऐसा शहर है, जहां ट्रैफिक को लेकर लोग सबसे ज्यादा अनुशासनहीन हैं। यह सभी तरहफ स्थिति है। दिल्ली और उत्तर भारत में ज्यादा। लोग मजे में ट्रैफिक के नियम तोड़ते हैं और रिश्वत देकर आगे बढ़ते हैं। असल में कानून और नियम का पालन वहीं करता है, जो इससे डरता है या जिसके पास पैसे नहीं हैं। जो इससे नहीं डरता है उसके लिए किसी भी कानून का कोई मतलब नहीं है। वह अपने हर गलत काम को पैसे के दम पर सही करा लेगा। 

Tags :

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *