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क्यों अचानक थमती है धड़कन (कार्डियक मृत्यु)

कार्डियक अरेस्ट के ज्यादातर मामलों की शुरूआत होती है दिल धड़कने की रिद्म खराब होने से। मेडिकल साइंस में इसे कहते हैं एरिद्मिया। दिल धड़कने की रिद्म क्यों बिगड़ती है इस पर बात करते हुऐ डॉ. धीरेन्द्र ने बताया कि ऐसा होता है धड़कन कंट्रोल करने वाली इलेक्ट्रिकल इम्पल्सेस का पैटर्न बदलने से। इस बदलाव का सीधा असर होता है हार्ट चैम्बर्स पर। हमारे दिल में चार चैम्बर होते हैं, दो नीचे और दो ऊपर।

आजकल आक्समिक मौत की खबरें बहुत सुनने को मिल रही हैं। अधिकांश में  वजह होती है कार्डियक अरेस्ट यानी अचानक दिल की धड़कना का बंद होना। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार किसी भी हार्ट बीमारी की तुलना में कार्डियक अरेस्ट से सबसे ज्यादा मौतें होती हैं। अपने देश में हर साल इसके 10 लाख से ज्यादा मामले सामने आते हैं जिनमें से 60% की मृत्यु और 20% पैरालाइज हो जाते हैं।

दिल की इस जानलेवा बीमारी और इससे बचने के उपायों के बारे में जानने के लिये मैंने बात की इंटरवेंस्नल कार्डियोलॉजी स्पेस्लिस्ट डॉ. धीरेन्द्र सिंह से तो उन्होंने बताया कि कार्डियक अरेस्ट के ज्यादातर मामलों की शुरूआत होती है दिल धड़कने की रिद्म खराब होने से। मेडिकल साइंस में इसे कहते हैं एरिद्मिया।

दिल धड़कने की रिद्म क्यों बिगड़ती है इस पर बात करते हुऐ डॉ. धीरेन्द्र ने बताया कि ऐसा होता है धड़कन कंट्रोल करने वाली इलेक्ट्रिकल इम्पल्सेस का पैटर्न बदलने से। इस बदलाव का सीधा असर होता है हार्ट चैम्बर्स पर। हमारे दिल में चार चैम्बर होते हैं, दो नीचे और दो ऊपर। नीचे वाले कहलाते हैं वेन्ट्रिकल्स और ऊपर वाले आर्टियल। शरीर में ब्लड सप्लाई का सारा दारोमदार इन्हीं पर होता है।  इलेक्ट्रिकल इम्पल्सेस का पैटर्न बदलने से इनका कंपन अनियन्त्रित हो जाता है यानी वेंट्रिकुलर और आर्टियल फाइब्रिलेशन। इन कंडीशन्स में हार्ट जरूरी मात्रा में ब्लड पम्प नहीं कर पाता और रिजल्ट सामने आता है कार्डियक अरेस्ट के रूप में।

किन्हें कार्डियक अरेस्ट का रिस्क ज्यादा होता है? इस सम्बन्ध में डॉ. सिंह ने बताया कि वैसे तो दिल की सभी बीमारियां इसका रिस्क बढ़ाती हैं लेकिन कोरोनरी हार्ट डिसीस के मरीज सबसे जल्दी इसकी चपेट में आते हैं। कारण कोरोनरी आर्टरी, हार्ट मसल्स को ब्लड सप्लाई करती है और इसमें ब्लॉकेज होने से हार्ट तक जरूरी मात्रा में ब्लड नहीं पहुंचता जिससे कार्डियक डेथ के चांस बढ़ जाते हैं।

इसी तरह से जिनके हार्ट का साइज बड़ा होता है उन्हें भी इसका रिस्क रहता है। हार्ट का साइज बढ़ने से धड़कन अनियमित और हार्ट मसल्स धीरे-धीरे कमजोर हो जाती हैं। बहुत से मामलों में कॉग्नीटिव हार्ट डिसीस, वॉल्व में लीकेज और हार्ट के इलेक्ट्रिकल सिस्टम में खराबी कार्डियक अरेस्ट का कारण होती है। इन कंडीशन्स में हार्ट से सर्कुलेट होने वाला ब्लड या तो चैम्बर्स को ओवरलोड करता है या उन्हें पूरी तरह भर नहीं पाता। लगातार ऐसा होने से हार्ट चैम्बर इन्लार्ज होकर कमजोर हो जाते हैं जिससे अचानक धड़कन बंद का रिस्क बढ़ जाता है।

इन रिस्क फैक्टरों के अलावा स्मोकिंग, सुस्त लाइफस्टाइल, मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर, फैमिली हिस्ट्री और शरीर में पोटेशियम तथा मैग्नीशियम की कमी से भी इसकी सम्भावना बढ़ती है।

अब सवाल ये कि क्या हमारा शरीर कार्डियक अरेस्ट से पहले कोई चेतावनी संकेत देता है? इस सवाल का जबाब देते हुए डॉ. सिंह ने बताया कि कार्डियक अरेस्ट से पहले सांस लेने में कठिनाई, चक्कर आना, ज्यादा कमजोरी, तेज हार्ट-बीट, सीने में दर्द और उल्टी जैसे कुछ चेतावनी संकेत मिलते हैं। अगर इन्हें पहचानकर मरीज को तुरन्त इलाज मिल जाये जाये तो उसकी जान बच सकती है।

इन संकेतों के साथ मरीज के फेंट होने का मतलब है मेडिकल इमरजेन्सी। ऐसे में जितनी जल्दी हो उसे पास के अस्पताल ले जायें। ECG से कार्डियक अरेस्ट कन्फर्म हो जाता है। ऐसी कंडीशन में ट्रीटमेंट का पहला उद्देश्य होता है शरीर में ब्लड सप्लाई रिस्टोर करना। इसके लिये CPR और इलेक्ट्रिक शॉक की जरूरत पड़ती है। जब धड़कन रिवाइव हो जाती है तो डाक्टर आगे का ट्रीटमेंट प्लान बनाते हैं जो डिपेंड होता है कि कारण पर। कारण की गम्भीरता के हिसाब से ही इलाज का विकल्प चुना जाता है यह दवाओं, स्टेन्टिंग, एंजियोप्लास्टी, वॉल्व रिप्लेसमेंट और सर्जरी में से कुछ भी हो सकता  है।

कार्डियक अरेस्ट का रिस्क घटाने या इससे कैसे बचा जाये पर बात करते हुऐ डॉ. धीरेन्द्र सिंह ने बताया कि यह लाइफस्टाइल डिसीज है जो ज्यादातर मामलों में होती है सुस्त जीवनशैली से। इससे बचने का सबसे आसान उपाय है डेली एक्सरसाइज और हेल्दी डाइट।

डाइट में फाइबर, प्रोटीन, मैग्नीशियम और पोटेशियम रिच फूड आइटम्स की मात्रा बढ़ायें। खाने में ज्यादा फाइबर कोलेस्ट्रॉल कम करता है, इसलिये गेहूं, चना, जौ, बाजरा और रागी के आटे की रोटी खाने की आदत डालें। ओटमील, स्प्राउट्स, चने, राजमा, लोबिया, बीन्स फाइबर रिच फूड आइटम्स हैं, डाइट में इनकी मात्रा बढ़ायें। अगर राइस ईटर हैं तो नार्मल राइस की जगह ब्राउन राइस को प्रफरेन्स दें।

प्रोटीन के लिये एग-व्हाइट पर जोर दें क्योंकि एग-व्हाइट में सबसे उम्दा क्वालिटी का प्रोटीन होता है। दही का नियमित सेवन करें। फैट मिनिमम करने के लिये फुल क्रीम की जगह लो-फैट मिल्क को प्रफरेन्स दें और कुकिंग मीडियम के तौर पर सरसों का तेल या देसी घी ही इस्तेमाल करें।

नॉन वेजीटेरियन्स को सलाह है कि वे रेड मीट की जगह फिश और चिकन को अपनी डाइट में शामिल करें। अगर बीपी और कोलोस्ट्राल आउट ऑफ रेंज है तो कुछ समय के लिये नॉनवेज छोड़कर शाकाहारी बन जायें। इससे शरीर में जमा सोडियम और अनहेल्दी सैचुरेटेड-ट्रान्स फैट में कमी आयेगी और कोलोस्ट्राल कम होगा।

कार्डियोवैस्कुलर फिटनेस इम्प्रूव करने के लिये हेल्दी डाइट के साथ एक्सरसाइज भी जरूरी है। रोजाना 45 मिनट की एक्सरसाइज, कार्डियक अरेस्ट का रिस्क 50% तक कम कर देती है। इसके साथ अगर लो फैट, लो साल्ट डाइट अपनाकर और खाने में मीठा कम कर दिया जाये तो यह रिस्क 80% तक घट जाता है। लेकिन ये सब बेकार हो जायेगा अगर आप स्मोकिंग करते हैं। कारण तम्बाकू के कैमिकल्स, नसें सख्त और सकरी करते हैं जिससे हार्ट को ब्लड पम्प करने के लिये ज्यादा जोर लगाना पड़ता है इसलिये जितनी जल्दी हो स्मोकिंग छोड़ें।

अगर एक बार कार्डियक अरेस्ट हो चुका है और यह दोबारा न हो, तो अपना खानपान बदलें, स्मोकिंग और एल्कोहल हमेशा के लिये छोड़ दें। समय पर दवायें लें और हां कभी भी डाक्टर की सलाह के बिना डायोरेटिक, एंटीबॉयोटिक, एंटीसायोटिक, एंटीडिप्रसेन्ट और सोडियम ब्लॉकिंग जैसी दवायें न लें। किसी भी तरह का बुखार होने की स्थिति में तुरन्त डॉक्टर को बतायें। कार्डियक अरेस्ट, व्यक्ति की सेक्स लाइफ प्रभावित करता है इसलिये रिकवर होने के बाद इस सम्बन्ध में डाक्टर से खुलकर बात करें और उसकी सलाह पर चलें। तनावमुक्त जीवन जीने का प्रयास करें। ज्यादा भारी व्यायाम न करें लेकिन मॉर्निग वॉक, लाइट एक्सरसाइज, योगा और मेडीटेशन को अपने डेली रूटीन में शामिल करें।

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