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अब बच्चे वही पढ़ेगे, जो राजनेता चाहेंगे…?

भोपाल। अभी तक देश के विद्यालयों व महाविद्यालयों में वही पढ़ाया जाता रहा, जो शिक्षा पाठ्यक्रमों का अंग रहा, किंतु अब देश की नई पीढ़ी का भविष्य तय करने वाली शिक्षा को भी राजनीति का अंग बनाया जा रहा है और अब देश की भावी पीढ़ी वहीं पढ़-जान पाएगी, जो आज के राजनेता चाहेंगे, नई पीढ़ी को आजादी के बाद से अब तक के उन घटनाक्रमों के आवश्यक घटनाक्रमों से वंचित रखने की तैयारी कर ली गई है, जो देश के काले राजनीतिक इतिहास को समेटे हुए हैं और जिन से वह राजनीति जुड़ी है, जो आज देश की कर्णधार बनी हुई है, जी…,अब नई पीढ़ी ना तो गांधी हत्याकांड के संदर्भ को जान पाएगी और ना ही गुजरात के 20 साल पुराने दंगों की दुखद दास्तान। अब तो बच्चे वही जान पाएंगे जो आज की राजनीति और उनके कर्णधारों को पसंद होगा, फिर वह चाहे देश के हित में हो या ना हो? इसी तरह उत्तर प्रदेश की मौजूदा सरकार ने प्रदेश के बच्चों को मुगलों के इतिहास की जानकारी से वंचित रखने का फैसला लिया है।

यह बदलाव खासकर 11वीं तथा 12वीं कक्षा के मौजूदा राजनीति शास्त्र विषय की पुस्तकों में करने का निश्चय किया गया है। यही नहीं उत्तर प्रदेश में तो दसवीं के पाठ्यक्रम में भी कई बदलाव किए गए हैं। वहां गांधीजी की हिंदू-मुस्लिम एकता को भी पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया है।
मुझे याद है जब हम पढ़ते थे तो आठवीं से लेकर 12वीं कक्षा तक के इतिहास व राजनीति शास्त्र के पाठ्यक्रम में पिछले 500 से भी अधिक के शासकों का इतिहास शामिल था। प्लासी, पानीपत, 1857 का स्वतंत्रता संग्राम तथा महाराणा प्रताप शिवाजी तो ठीक, राजा विक्रमादित्य पाठ्यक्रम के अंग थे, किंतु अब आज की सत्ता से जुड़े विगत प्रसंगों को बच्चों के पाठ्यक्रमों से हटाने का फैसला लिया गया है, अब बच्चे ना तो गांधीजी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के संघ के संबंधों की जानकारी हासिल कर पाएंगे और ना अयोध्या की विवादित बाबरी मस्जिद और पुरातन राम मंदिर के बारे में कुछ जान पाएंगे। अर्थात मौजूदा सरकार भारतीय राजनीतिक इतिहास के उन प्रसंगों को पाठ्यक्रम से हटाने जा रही है, जो देश की नई युवा पीढ़ी की जानकारी के लिए जरूरी थे?

इन पाठ्यक्रमों को तय करने वाली राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने हाल ही में अब तक 12वीं की कक्षा के राजनीतिक इतिहास में पाढ़ाया जाने वाला गांधी जी की हत्या के घटनाक्रम से जुड़ा अंश हटा दिया और अब देश की नई पीढ़ी गांधी हत्या के घटनाक्रमों को ना ही जान पाएगी साथ ही पाठ्यक्रम निर्धारण करने वाली इस इकाई ने गुजरात दंगों, मुगल दरबार, आपातकाल, शीतयुद्ध, नक्सल आंदोलन आदि के भी कुछ अंशों को पाठ्यक्रमों से हटाया है। और इसके लिए सफाई दी जा रही है कि “कोविड-19” महामारी के मद्देनजर यह महसूस किया गया कि छात्रों पर पाठ्यक्रमों का बोझ अधिक है, उसे कम किया जाना था, इसलिए यह सब पाठ्यक्रमों से हटाया गया।

मौजूदा सत्तारूढ़ राजनेताओं द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश कराई गई इस राजनीति से देश के राजनीतिक क्षेत्र में खलबली सी मच गई है तथा विपक्षी दलों ने इस प्रयास को तीखी आलोचना करते हुए इसे क्रूर राजनीतिक फैसला बताते हुए देश की नई पीढ़ी को आवश्यक जानकारी से वंचित रखने की कोशिश बताया है।

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