एक मिथ है कि गर्भावस्था में महिला को दो लोगों का खाना खाना चाहिये। परन्तु असलियत यह है कि पहले चार-पांच महीने में तो एक्सट्रा कैलोरी की जरूरत ही नहीं होती। इसके बाद 300 से 500 एक्सट्रा कैलोरी की जरूरत होती है जो पूरी हो जायेगी 50 ग्राम बादाम, 1 ग्लास दूध, दो अंडे और दो टोस्ट से। घर की बुजुर्ग महिलाएं हमेशा इस बात पर जोर देती हैं कि मेवे के लड्डू खाओ, घी खाओ, गुड़ खाओ और वजन बढ़ाओ इससे बच्चा स्वस्थ होगा।।।लेकिन सब एक सीमा में।
हमारे समाज में गर्भावस्था के दौरान खाने, व्यायाम और सेक्स को लेकर अजीबोगरीब धारणाएँ हैं। कुछ ठीक हैं तो कुछ समझ से परे। गर्भ धारणॉ होते ही घरवाले कहना शुरू कर देते हैं कि दूध में केसर डालकर पिया करो, बच्चा दूध जैसा गोरा पैदा होगा या अब तुम गर्भावस्थामें हो तो तुम्हें दो लोगों का खाना खाना चाहिये बगैरा-बगैरा। इन बातों में कितनी सच्चाई है और गर्भावस्था के दौरान क्या खाना चाहिये-क्या नहीं, इस सम्बन्ध में मैंने दिल्ली की जानी-मानी गॉयनिकोलोजिस्ट डॉ। इन्दु कपूर से बात की तो उन्होंने बताया कि दूध एक सम्पूर्ण आहार है, इसलिये गर्भावस्था में दूध पीना अच्छा है लेकिन जिन महिलाओं को दूध से एसीडिटी होती हो उन्हें अपने साथ जबरजस्ती नहीं करनी चाहिये। रही बात बच्चे के गौरे होने की तो दूध कोई सफेद पेंट तो है नहीं कि अंदर जाकर बच्चे को सफेद कर देगा। अगर केसर की बात करें तो इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर से हानिकारक तत्वों को निकालते रहते हैं, इसलिये केसर दूध में डालकर पीने को कहा जाता है, लेकिन बच्चे के कॉम्प्लेक्शन से इसका कोई लेना-देना नहीं है।
दूध और केसर की तरह कुछ लोग गोरे बच्चे के लिये नारियल पानी पीने पर जोर देते हैं, लेकिन यह भी पूरी तरह गलत है। याद रखें नारियल पानी पीने से एसीडिटी शांत होती है और गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में ये समस्या आम है इसलिये नारियल पानी पीने को कहा जाता है। अगर आप गौरे बच्चे की चाह में नारियल पानी पी रही हैं तो ऐसा बिलकुल न करें।
इसी तरह गर्भावस्था में बहुत ज्यादा खाने की जरूरत भी नहीं होती। हां, कुछ लोगों को किन्हीं विशेष चीजों की क्रेविंग हो सकती है लेकिन ऐसा तब होता है जब शरीर में किसी पोषक-तत्व की कमी हो। इसी कमी को पूरा करने के लिये डॉक्टर मल्टीविटामिन सप्लीमेंट्स लेने को कहते हैं। जिन महिलाओं में न्यूट्रियेंट्स का बैलेंस ठीक होता है उन्हें बहुत कम क्रेविंग होती है। हां कुछ महिलाओं को हारमोन्स की वजह से क्रेविंग हो सकती है जैसे खट्टा खाने, चाट खाने या फिर आइसक्रीम की।
मिर्च मसाले खाने में भी अमूमन कोई दिक्कत नहीं होती, अगर शुरू से इनकी आदत है तो गर्भावस्था के दौरान बदलाव की कोई जरूरत नहीं। कुछ लोग सिरके से परहेज को कहते हैं, लेकिन इससे भी कोई दिक्कत नहीं। लेकिन किसी भी चीज का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल हमेशा नुकसान करता है। अगर खाने में किसी का परहेज करना है तो कच्चे पपीते और मेथी से करें वह भी गर्भावस्था के शुरूआती तीन-चार महीनों में। इनसे यूट्रेस में कॉन्ट्रेक्शन उठता है जिससे गर्भपात हो सकता है।
गर्भावस्था में अंडे-मांस-मछली के सेवन को लेकर भी लोग अलग-अलग बातें करते हैं। अगर अंडे की बात करें तो इसमें बहुत ही उम्दा-क्वालिटी का प्रोटीन और कई जरूरी पोषक तत्व होते हैं। लेकिन अंडा खाने से पहले आपको इस बात का ध्यान रखना है कि यह पूरी तरह पका हो। कच्चे अंडे, कच्चे मांस और मछली में सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले बैक्टीरिया होते हैं परन्तु ठीक से पकाने पर ये मर जाते हैं। इसी तरह कुछ मछलियों में पारे की मात्रा बहुत ज्यादा होती है जिसका बच्चे के विकास पर बुरा असर पड़ता है इसलिये गर्भावस्था में मछली न खायें तो बेहतर है। अगर मछली खाने का बहुत मन है तो डॉक्टर से पूछ लीजिये कि कौन सी ठीक रहेगी और कौन सी नहीं।
एक मिथ यह भी है कि गर्भावस्था में महिला को दो लोगों का खाना खाना चाहिये। परन्तु असलियत ये है कि पहले चार-पांच महीने में तो एक्सट्रा कैलोरी की जरूरत ही नहीं होती। इसके बाद 300 से 500 एक्सट्रा कैलोरी की जरूरत होती है जो पूरी हो जायेगी 50 ग्राम बादाम, 1 ग्लास दूध, दो अंडे और दो टोस्ट से।
घर की बुजुर्ग महिलायें हमेशा इस बात पर जोर देती हैं कि मेवे के लड्डू खाओ, घी खाओ, गुड़ खाओ और वजन बढ़ाओ इससे बच्चा हेल्दी होगा। गर्भावस्था में वजन बढ़ना जरूरी है लेकिन एक लिमिट में। कितना वजन बढ़ना चाहिये ये डिपेंड करता है आपके बॉडी मास इंडेक्स (BMI) पर। बहुत ज्यादा वजन बढ़ने से, समय से पहले लेबर पेन का रिस्क बढ़ता है जिससे बच्चे की जान पर बन सकती है। इसलिये दो लोगों का खाना तो बिलकुल नहीं खाना चाहिये।
याद रखें हर गर्भावस्था अलग होती है और 5 से 18 किलो की रेंज में वजन बढ़ना नार्मल माना जाता है। लेकिन बहुत ज्यादा वजन बढ़ने से मां और बच्चे दोनों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इसलिये वजन का सही रेंज में रहना जरूरी है ताकि गर्भावस्था के दौरान ब्लडप्रेशर नार्मल रहे और जेस्टेशनल डॉयबिटीज न हो।
बच्चा हेल्दी हो, डिलीवरी आसान रहे और गर्भावस्था का समय बिना बाधा-विध्न के बीत जाये इसके लिये शरीर को जरूरत होती है खूब सारे फलों, खूब सारी सब्जियों, थोड़े-बहुत घी-मक्खन और हल्की-फुल्की एक्सरसाइज की। एक्सरसाइज को लेकर डॉ। इन्दु ने बताया कि हफ्ते में कुल ढाई घंटे की एक्सरसाइज पर्याप्त है यानी रोज लगभग आधा घंटा। लेकिन इस बात का ख्याल रखें कि एक्सरसाइज के दौरान सांस न फूले। वर्कआउट इतना लाइट होना चाहिये कि आप एक्सरसाइज करते हुये बात कर सकें। कभी भी लेटे-लेटे एक्सरसाइज न करें और न ही कोई ऐसा व्यायाम करें जिससे सीधे पेट पर दबाब पड़ता हो।
अगर गर्भावस्था से पहले स्वीमिंग या वर्कआउट की आदत है तो उसे गर्भावस्था में भी कॉन्टीन्यू कर सकते हैं। लेकिन उतना ही जितने में कम्फर्टेबल हों। कुछ नया ट्राइ न करें। अगर कुछ नहीं करना तो वॉक जरूर करें। अपने डॉक्टर से पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज के बारे में पूछें। पेल्विक फ्लोर शरीर का वो हिस्सा है जिसमें ब्लेडर, यूट्रेस, वजाइना और रेक्टम होते हैं। ये मजबूत होगा तो डिलीवरी में भी आसानी होगी।
गर्भावस्था में सेक्स को लेकर भी अनेक भ्रान्तियां है, लोगों में गलतफहमी है कि इस दौरान सेक्स मुमकिन नहीं, इससे बच्चे को चोट लग सकती है। लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है क्योंकि पेनीट्रेशन वजाइना में होती है और बच्चा होता है यूट्रेस में। इन दोनों के बीच में सर्विक्स की लेयर होती है। इसलिये बच्चे को चोट पहुंचने का सवाल ही नहीं उठता। हां अगर गर्भावस्था में कोई कॉम्प्लीकेशन्स हैं और डॉक्टर ने ऐसा करने से मना किया है तो डॉक्टर की बात मानें।