राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

‘अजय जामवाल’ को दर्द मर्ज की दवा की दरकार

भोपाल। क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल को चुनाव में विजय के लिए जरूरी.. सबसे मजबूत कड़ी कार्यकर्ता की चिंता कुछ ज्यादा ही सता रही है .. यदि यह कार्यकर्ता रूठ गया तो मिशन 2023 की विजय का सपना चूर-चूर हो सकता है.. 2018 विधानसभा चुनाव की गलतियों से सीख लेकर आगे बढ़ रही बीजेपी क्या नगरीय निकाय चुनाव में कम हुए वोट प्रतिशत को गंभीरता से लेगी.. क्या इसकी वजह पार्टी का निष्ठावान कार्यकर्ता जो बूथ मैनेजमेंट और मतदाता को घर से बूथ तक पहुंचाने की सबसे अहम कड़ी साबित होता रहा.. पार्टी फोरम पर अपनी बेबाकी और खुले दिल से बात करने के लिए कम समय में कार्यकर्ताओं के शुभचिंतक उनके हितेषी की पहचान बना चुके अजय कार्यकर्ता की यह कहकर पीठ थपथपा रहे कि वह बहुत अच्छा और बड़ी संख्या में पार्टी से जुड़ा .. और भी बहुत कुछ उन्होंने कहा लेकिन केंद्र बिंदु में कार्य करता है ..

यदि उनकी बात में दम है तो ज्यादातर कार्यकर्ता के अंदर गुबार भरा हुआ है.. शायद उनका इशारा उपेक्षा से आहत कार्यकर्ता के उस गुस्सा की ओर जो भरा हुआ और यदि फट पड़ा तो चुनाव में पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है.. जामवाल को शिकायत इस बात की कि कोई भी अपनी बात नहीं कह पा रहे कार्यकर्ता का दर्द मर्ज ना सुन रहा और ना समझने को तैयार है.. कुछ माह पहले ही पार्टी व्यवस्था के तहत छत्तीसगढ़ के साथ मध्य प्रदेश की जमीनी हकीकत जानने के लिए तैनात किए गए अजय जामवाल अभी पूरे प्रदेश का भ्रमण नहीं कर पाए.. लेकिन जहां गए उसका फीडबैक उनके पास अच्छा नहीं और चुनौतियां उन्हें साफ दिखाई दे रही .. दौरे के दौरान कार्यकर्ताओं को अपनी बात कहने की पूरी छूट दी और उनका गुबार भी निकालने की कोशिश उन्होंने की.. कार्यकर्ता को संतुष्ट करने के लिए अपना मोबाइल नंबर भी यह कहकर दिया क्या आप कभी भी फोन पर उनसे बात कर सकते हैं.. लेकिन उनके द्वारा सभी का फोन नहीं उठाना भी चर्चा का विषय बना हुआ है..

भाजपा कार्यालय में यूं तो शीर्ष नेतृत्व की बैठक हुई लेकिन उससे पहले पहले जिला अध्यक्ष और दूसरे चुनिंदा कार्यकर्ताओं के बीच अजय जामवाल ने कार्यकर्ताओं के हक उनके सम्मान की चिंता जताकर खूब तालियां बटोरी.. इससे पहले भी प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में अजय जामवाल ने खरी खरी सुनाकर जमीनी हकीकत से नेतृत्व और नीति निर्धारकों को रूबरू कराया था.. अजय जामवाल की तरह पार्टी का वरिष्ठ नेतृत्व समय-समय पर कभी चिंता तो कभी चुनौती का जिक्र कर समन्वय की आवश्यकता जताकर समझाइश देता रहा है.. इसमें कोई दो राय नहीं की अपेक्षा मंत्री विधायकों से ज्यादा बढ़ गई है.. कार्यकर्ताओं की नाराजगी का केंद्र बिंदु विधायक और मंत्री ही बने हुए हैं.. जिन्हें समय-समय पर प्रदेश अध्यक्ष मुख्यमंत्री प्रदेश प्रभारी और भी जिम्मेदार नेताओं ने सलाह मशवरा से आगे चेतावनी भी दी.. समय-समय पर पार्टी द्वारा कराए गए सर्वे और सत्ता तक पहुंचे फीडबैक ने शायद नेतृत्व की चिंता में इजाफा किया है.. जिसकी वजह और भी है सिर्फ कार्यकर्ता नहीं.. लेकिन माहौल कार्यकर्ता की उपेक्षा के कारण बिगड़ रहा है.. भाजपा के लिए कांग्रेस भले ही चुनौती नहीं हो लेकिन यदि कार्यकर्ताओं का जोश ठंडा पड़ गया और जनता की नाराजगी भाजपा उसकी सरकार मंत्री विधायक के प्रति बढ़ती गई तो फिर डबल इंजन की सरकार के बावजूद मुसीबतें बढ़ सकती..

भाजपा नेतृत्व की चिंता यही है कि एंटी इनकंबेंसी के चलते चुनाव जनता वर्सेस भाजपा ना हो जाए.. तो यहीं पर सवाल खड़ा होता है क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल सीधे इन विधायकों और मंत्रियों को सख्त चेतावनी क्यों नहीं देते.. मंच पर बैठे नीति निर्धारक और सामने बैठे कार्यकर्ताओं के सामने दर्द मर्ज का सवाल खड़ा कर आखिर अजय क्या और किसे संदेश देना चाहते हैं.. उनके पास जिम्मेदारी छत्तीसगढ़ की भी है.. जहां भाजपा विपक्ष में है और सत्ता हासिल करना चुनौती है.. तो मध्यप्रदेश में सत्ता में रहते अब फिर सरकार बनाने की उससे बड़ी चुनौती है.. भाजपा की व्यवस्था में मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के मार्गदर्शन के लिए राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश के साथ क्षेत्रीय संगठन महामंत्री का दायित्व अजय जामवाल निभा रहे हैं.. पिछले 2 साल में कई बैठकों के बावजूद फैसले समय पर निकल कर सामने नहीं आए ..तो अजय जामवाल खुद प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव और सह प्रभारी पंकजा मुंडे के साथ मंच साझा करते रहे हैं.. चाहे फिर वह कोर कमेटी की बैठक हो या फिर प्रदेश कार्यसमिति और प्रदेश महा मंत्रियों के साथ चिंतन मंथन.. क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल को कार्यकर्ता पसंद कर रहे कि चलो कोई उनकी सुनने वाला उनकी आवाज बुलंद करने वाला पार्टी में खुलकर तो बोल रहा.. फिर भी अजय जामवाल यदि व्यक्तिगत तौर पर नीति निर्धारकों से समस्या की जड़ को जानना चाहते तो जान सकते हैं.. कार्यकर्ता से प्रवास के दौरान मैदान में जाकर मेल मुलाकात और उनका गुस्सा गुबार निकलवा लेने के बाद यदि पार्टी फोरम पर फिर कार्यकर्ताओं से उनकी अपेक्षा बढ़ती है

..तो इससे क्या समस्या का समाधान समय रहते संभव है.. यदि उनकी अपेक्षाएं शिवराज सरकार के मंत्री विधायकों और विष्णु दत्त के पदाधिकारियों से तो फिर अपनी मनमर्जी के मुताबिक उनसे व्यवस्था को परिणाम मूलक क्यों नहीं बना पा रहे.. क्या अजय जामवाल अपने वरिष्ठ जो उनसे पहले से मध्यप्रदेश में आए दिन प्रवास के दौरान मैराथन बैठक चिंतन मंथन करते रहे ..क्या उनकी कार्यशैली पर सवाल खड़ा कर रहे हैं.. आखिर भोपाल दौरे के दौरान किस पुरानी समस्या का समाधान अभी तक क्यों नहीं निकाला गया.. आखिर वह क्या फार्मूला है जिससे कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर हो सकती है.. क्या प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव इस समस्या के लिए अपनी जिम्मेदारी से बच पाएंगे..

जो तेलंगाना अपना गृह प्रदेश जहां चुनाव होना है उसे छोड़कर पार्टी नेतृत्व द्वारा सौंपी गई जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए यदा-कदा राजधानी भोपाल ही नहीं आते जाते ..दूसरे शहर में भी बैठक लेने के लिए जाते रहे.. जो फीडबैक अजय जामवाल तक पहुंचा और जो चिंता क्षेत्रीय संगठन महामंत्री जता रहे हैं.. आखिर प्रदेश प्रभारी मुरलीधर इससे अनजान है तो फिर क्यों.. या फिर अजय जामवाल की चिंता जायज नहीं है.. यदि मुरलीधर भी इस समस्या से वाकिफ तो उन्होंने इसे दूर करने में दिलचस्पी नहीं ली या फिर चाह कर भी वह समस्या का समाधान नहीं निकाल पाए.. या फिर उनकी भी कोई सुन नहीं रहा.. राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष भी मंत्री और पदाधिकारियों विधायकों से रूबरू हो चुके हैं लेकिन कुछ ऐसी ही अपेक्षाएं शिव प्रकाश से भी बढ़ जाती है.. आखिर जामवाल यदि पार्टी फोरम पर चिंता चुनौती का जिक्र कर चुनाव की आहट सुन और समझ रहे हैं ..तो फिर दूसरे नीति निर्धारक इससे अनजान क्यों है.. भाजपा की पहचान मजबूत कैडर के साथ कार्यकर्ता को संगठन की मजबूत कड़ी ही माना जाता है.. इन दिनों बूथ विस्तार पार्ट 2 का आगाज जोर शोर से हो चुका है..

मोदी शाह के प्रदेश गुजरात की तर्ज पर पन्ना प्रमुख की व्यवस्था से आगे संगठन को ताकत कार्यकर्ता की उपयोगिता के दम पर दी जा रही है.. दिलचस्प बात यह है इसी समय क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल पार्टी फोरम पर कार्यकर्ता की बात जोर शोर से उठाकर कार्यकर्ताओं को भले ही साध रहे हो लेकिन अपनी ही पार्टी की व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रहे हैं.. जो इशारों इशारों में सत्ता और संगठन में और बेहतर समन्वय की आवश्यकता जताता है.. यही नहीं सरकार के मंत्री और विधायको से अपनी नाराजगी को भी वह छुपा नहीं रहे.. लेकिन सीधे-सीधे इन विधायक और मंत्रियों को पटरी पर भी नहीं ला पा रहे.. क्योंकि विधायक ही शिवराज के मंत्री प्रभारी मंत्री की भूमिका में उस कार्यकर्ता को संतुष्ट करने के लिए जवाबदेय है.. जो बूथ पर तैनात होकर मतदाता का भरोसा जीत कर पार्टी जिसे टिकट देती उसकी चुनाव में जीत सुनिश्चित कराता है.. फिर भी लाख टके का सवाल अजय जामवाल को मिशन 2023 विधानसभा चुनाव की विजय के लिए जिस दर्द और मर्ज की दवा की दरकार आखिर वह क्या है.. क्या सिर्फ चिंता जताने और नसीहत और चेतावनी देने से समस्या का समाधान समय रहते निकल जाएगा..

विकास यात्रा के फीडबैक ने बढ़ाई भाजपा की चिंता
शिवराज सरकार की विकास यात्रा का फीडबैक भी संगठन और सरकार तक पहुंच चुका है.. विधानसभा के बजट सत्र का आगाज भी हो चुका है.. दिल्ली से लेकर नागपुर के संघ कार्यालय की मध्य प्रदेश पर नजर है.. ऐसे में कई मंत्री विधायकों के खिलाफ जनता में आक्रोश की खबरें चर्चा का विषय बन चुकी है.. शायद सत्ता और संगठन को भी अपने विधायकों की जनता में पकड़ और सियासी मिजाज के आकलन का इंतजार था.. उधर शिवराज मंत्रिमंडल पुनर्गठन की कवायद के चलते उम्र दराज अनुभवी मंत्रियों पर तलवार पहले ही लटक चुकी है.. परिवारवाद विरासत की राजनीति से आगे ना जाने उम्र और चुनाव लड़ने का कौन सा क्राइटेरिया सामने ला दिया जाए.. खबर है संगठन भी जिला प्रभारी मंत्रियों से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है.. क्षत्रपों की सिफारिश पर नए सिरे से अब संगठन गौर फरमा रहा है.. कई प्रभारी मंत्रियों के जिले का प्रभार बदला जा सकता है..

हितग्राहियों को वोट बैंक में तब्दील करने की योजना के तहत मुख्यमंत्री की गाइडलाइन और संगठन की व्यवस्था पर कई मंत्री खरे नहीं उतरे हैं.. ऐसे मंत्री और विधायकों की हठधर्मिता के कारण ही कार्यकर्ता की नाराजगी और गुस्से का गुबार इस व्यवस्था में अपनी उपेक्षा के कारण ही पनपा है.. क्योंकि मंत्री और विधायक कि अपनी रूचि वाले काम नहीं रुक रहे.. उनकी दुकान जम चुकी और रुतबा लगातार बढ़ता जा रहा है.. ऐसे विधायकों के कब्जे से संगठन को बाहर निकालने की जद्दोजहद जारी है.. क्योंकि उनके समर्थकों और परिवार से जुड़े सभी काम अधिकारियों द्वारा कर दिए जाते हैं .. ऐसे भी कई मंत्री और विधायक हैं जो अपने मुख्यमंत्री और सरकार की छवि पर यह कहकर सवाल खड़ा कर देते हैं कि अधिकारी उनकी सुनते नहीं है.. एक कड़वा सच यह भी है … जबकि कार्यकर्ताओं का आरोप है कि कुछ विधायक और मंत्री मनमानी ही नहीं कर रहे बल्कि पार्टी की रीढ़ माने जाने वाले कार्यकर्ता की अनदेखी करते हैं.. यही वह शिकायत है जिस पर अजय जामवाल बार-बार पार्टी फोरम पर ध्यान आकर्षित कर रहे हैं..

टिकट के क्राइटेरिया पर सस्पेंस तो कार्यकर्ताओं के एडजस्टमेंट पर फैसला लंबित
चुनावी साल में भी कार्यकर्ताओं को पद प्रतिष्ठा और और जिम्मेदारी का यदि इंतजार है तो उसकी वजह है लंबित सैकड़ों नियुक्तियां.. मैराथन बैठक चिंतन मंथन के बावजूद पंचायत से लेकर प्रदेश तक कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करने वाली दीनदयाल अंत्योदय समितियों का कोई अता पता नहीं है.. नगरी निकाय में एल्डरमैन, जिला स्तर पर सहकारी और दूसरी समितियों में कार्यकर्ताओं को नवाजा जा सकता है.. विकास प्राधिकरण में नियुक्तियों का सिलसिला जरूर शुरू हुआ है लेकिन अभी नेताओं कार्यकर्ताओं के लिए बहुत गुंजाइश है.. ऐसा नहीं कि नेतृत्व इससे अनजान है सहमति बनाने के लिए मुख्यमंत्री प्रदेश अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री प्रदेश प्रभारी संगठन महामंत्री लगातार बैठकर करते रहे क्षेत्रीय संगठन महामंत्री की एंट्री देर से हुई है..

सहमति के अभाव का कारण वर्तमान मंत्री विधायक क्षेत्र के सांसद जिला अध्यक्ष और क्षेत्र विशेष के क्षत्रप दिग्गज नेताओं के बीच सहमति का अभाव ही माना जा रहा है.. सिंधिया समर्थकों के दबदबे वाले क्षेत्र में समस्या कुछ ज्यादा ही है.. 28 चुनाव के परिणामों तक जहां व्यवस्था सुचारू रूप से चली अब चुनावी साल में प्रतिस्पर्धा और महत्वाकांक्षा नेता और उनके समर्थकों की बढ़ती जा रही है.. संगठन में लगातार बदलाव जिला अध्यक्षों को बदले जाने के साथ हर 15 दिन में सामने आ रहा है.. कुछ नए नवेले अनुभवहीन जिलाध्यक्ष पार्टी फोरम पर अपने कार्यकर्ताओं की सुनने की बजाय सरकारी कार्यक्रमों में अपनी राजनीति चमकाने में जुट गए.. सवाल खड़ा होना लाजमी है जब चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है तब कार्यकर्ताओं की सुध कौन कैसे कब लेगा.. आखिर सस्पेंस खत्म कब होगा और कार्यकर्ताओं की बढ़ती नाराजगी के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है.. क्योंकि हर चुनाव की तरह 2023 विधानसभा का चुनाव कुछ अलग चुनौतियों के साथ होगा.. कांग्रेस और भाजपा पीढ़ी परिवर्तन के दौर से गुजर रही जो युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना चाहेंगे तो कांग्रेस की अपेक्षा परिवारवाद की राजनीति भाजपा की समस्या में इजाफा कर सकती है तो सपा बसपा गोंडवाना और देश के बाद अब आम आदमी पार्टी की भी एंट्री हो चुकी है.. भाजपा में कई विधायकों के लिए यह अंतिम चुनाव होगा तो ऐसे नेता भी है जिनके लिए यह टिकट का अंतिम अवसर होगा.. इसलिए क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल की चिंता जायज लेकिन उनके वरिष्ठ जिम्मेदार नीति निर्धारक इस चुनौती के समय रहते निराकरण नहीं खोज पाने के लिए अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते..

Tags :

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *