मध्प्र प्रदेश में चुनाव की आहट पाते ही राजनीतिक दलों के नेता चैतन्य हो गए हैं। सत्ता में आने के लिए बढ़-चढ़कर दावे और वादे किए जाने लगे हैं। लोकलुभावन घोषणाएं करने में पैसा तो लगता नहीं है इसलिए कोई भी राजनीतिक दल इसमें पीछे नहीं रहना चाहता। ऐसा लग रहा है कि प्रदेश के नेता इस बार जनता की सभी मांगे पूरी कर देंगे।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बजट में लाडली बहनों के लिए 1000 रुपए देने का प्रावधान किया तो बिना देरी किए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने महिलाओं को 1500 रुपए देने की घोषणा कर दी। गैस सिलेंडर, पेट्रोल डीजल के भाव कम करने हों या फ्री में बिजली, पानी, इलाज और राशन मुहैया कराने का मामला हो। भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी समेत सभी राजनीतिक दल हर घोषणाएं पूरी करने के वादे कर रहा है। एक से बढ़कर एक घोषणाएं। भिंडी मार्केट में जैसे सब्जी के लिए बोली लगाई जाती है वैसा ही नजारा प्रदेश में दिखाई दे रहा है। लोकलुभावन घोषणाएं करने की होड़ लगी हुई है। ऐसा लग रहा है जैसे चुनाव के बाद ये नेता धरती पर स्वर्ग उतार ही लाएंगे।
सबसे पहले बात करते हैं कांग्रेस की : कांग्रेस के सीनियर लीडर राहुल गांधी की यात्रा के बाद मिले थोड़े से मोमेंटम को कैसे लूज किया जाए, इसके प्रयास में प्रदेश कांग्रेस के नेता कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा का मसला हो या सरकार के खिलाफ प्रदर्शन का मुद्दा। कांग्रेस नेताओं के सुर एक जैसे नहीं है। सब अपनी डफली अपना राग की तर्ज पर कोरस गाने के प्रयास में है। गुटबाजी की बात यदि थोड़ी देर के लिए छोड़ भी दी जाए तो जनता से लोक लुभावने वादे और घोषणाएं करने के मामले में भी पार्टी नेताओं के बीच एकजुटता का अभाव साफ दिख रहा है। कमलनाथ जी कह रहे हैं कि कांग्रेस के सत्ता में आते ही जनता की सभी मांगों को पूरा किया जाएगा तो नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह ने घोषणा कर दी कि सरकार आई तो गैस सिलेंडर 350 रुपए में देंगे।
वहीं जीतू पटवारी पार्टी में अपनी अलग ही लकीर खींचने की कोशिश में लगे हैं। वे कह रहे हैं कि युवाओं को बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा। मसला यह नहीं है कि यह नेता अपने स्तर पर घोषणाएं नहीं कर सकते, बिल्कुल कर सकते हैं, लेकिन यह सारी घोषणाएं कमलनाथ जी की तरफ से होती तो इससे बेहतर मैसेज जाता। आखिरकार कमलनाथ जी प्रदेश कांग्रेस के मुखिया हैं, उन्हीं के नेतृत्व में 2023 की लड़ाई लड़ी जा रही है, लेकिन घोषणाएं सब अपने-अपने स्तर पर कर रहे हैं। इससे यह भ्रम की स्थिति भी बनती है कि आखिर कांग्रेस का असली नेता है कौन? क्योंकि मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर अभी भी कांग्रेस में असमंजस की स्थिति है। बार-बार यह बात दोहराई जा रही है कि प्रदेश में सरकार आई तो मुख्यमंत्री कमलनाथ ही होंगे, जबकि इस मुद्दे पर अजय सिंह और अरुण यादव जैसे नेता साफ कर चुके हैं कि कांग्रेस में विधायक दल ही तय करता है कि मुख्यमंत्री कौन होगा।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद कांग्रेस के नेता यह कहते नहीं थक रहे थे कि अब कांग्रेस में गुटबाजी समाप्त हो गई है, लेकिन जिस तरीके की हलचल पार्टी स्तर पर हो रही है उससे तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस में अब नई लीडरशिप और सीनियर लीडरशिप के बीच आपसी द्वंद की स्थिति बन गई है। कांग्रेस के नई पीढ़ी के नेता वरिष्ठ नेताओं को सीधे तौर पर चुनौती देने में लग गए हैं। विधानसभा के ताजा बजट सत्र में जीतू पटवारी ने जिस आक्रामक अंदाज में सरकार पर हमला बोला और उसके बाद जो अप्रिय स्थिति विधानसभा में निर्मित हुई वह शर्मसार कर देने वाली है। माननीय सदस्यों द्वारा नियम पुस्तिकाएं फाड़ी गईं। किताबें फेंकी गईं और एक दूसरे पर खुल्लम-खुल्ला बाहें चढ़ाकर ऐसे शब्द बोले गए कि अध्यक्ष को विलोपित करने पड़े। विपक्ष ने अध्यक्ष पर भेदभाव करने का आरोप लगाया और अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ले आए।
अब अविश्वास प्रस्ताव का गिरना या वापस लेना तो तय है ही, क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव पर केवल 48 विधायकों ने ही हस्ताक्षर किए हैं। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि खुद कमलनाथ जी ने इस अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में दस्तखत नहीं किए। इसलिए संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा कह रहे हैं कि अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के मामले में कांग्रेस नेता ही एकजुट नहीं है। लेकिन सवाल सिर्फ यह है कि सदन में ऐसी जल्दबाजी, हड़बड़ी और घबराहट क्यों। पार्टी नेता एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में क्यों लगे हुए हैं ? क्या जीतू पटवारी की आक्रामकता और सक्रियता से कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में बेचैनी है? क्या विधानसभा में हंगामे का लाभ जीतू पटवारी को मिलता देख जानबूझकर अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है? ताकि यह बताया जा सके कि जीतू पटवारी ने जो मुद्दे उठाए हैं वह पटवारी के नहीं बल्कि कांग्रेस के मुद्दे हैं। और इन मुद्दों पर कांग्रेस एकजुट है। बहरहाल कांग्रेस भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के आपसी सामंजस्य व तालमेल के बाद अविश्वास प्रस्ताव वापस लेने की रणनीति पर काम किया जा रहा है।
रथ पर सवार होकर सड़क पर प्रदर्शन: विधानसभा सत्र के दौरान ही कांग्रेस ने हाल ही में भोपाल में सरकार के खिलाफ बड़ा प्रदर्शन किया। जिसमें प्रदेशभर से कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता शामिल हुए। शिवराज की भाजपा सरकार के खिलाफ यह प्रदर्शन कुछ हद तक सफल भी माना जा रहा है, लेकिन यह सवाल भी उठ रहे हैं सड़क पर प्रदर्शन करना है तो रथ पर सवार होने की क्या आवश्यकता थी। प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल समेत कमलनाथ, गोविंद सिंह, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव, जीतू पटवारी और आरिफ मसूद जैसे नेता रथ पर सवार थे।
ऐसा लग रहा था जैसे यह कोई संघर्ष का प्रदर्शन नहीं बल्कि अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का रोड शो है। इस दौरान बड़े नेताओं के साथ फोटो खिंचवाने के चक्कर में कई कार्यकर्ता भी रथ पर लटकने की जद्दोजहद में लगे रहे। बेहतर होता कांग्रेस के सभी नेता सड़क पर उतर कर पैदल-पैदल प्रदर्शन करते। इससे एक अच्छा मैसेज जाता। लेकिन फिर भी कुछ न होने से कुछ तो हुआ इतना भी काफी है। अब राजनीतिक हलकों में यह बात भी बड़े चटखारे लेकर की जा रही है कि कमलनाथ जी कम से कम हेलीकॉप्टर से उतरकर रथ पर तो आए। हो सकता है बहुत जल्द सड़क पर भी नजर आएं।
शिवराज का एकला चलो अभियान: कांग्रेस में संघर्ष और शक्ति प्रदर्शन के बीच भाजपा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का एकला चलो अभियान जारी है। वह अकेले ही पूरे पार्टी का बोझ अपने कंधे पर ढोने में लगे हुए हैं। और इस जिम्मेदारी को वे बखूबी निभा भी रहे हैं। भाजपा में शिवराज के मुख्यमंत्री के चेहरे पर चुनाव लड़ने को लेकर कोई असमंजस की स्थिति नहीं है। पार्टी में शिवराज मुख्यमंत्री के लिए सर्वमान्य कैंडिडेट हैं। सत्ता में वापसी के लिए शिवराज ने बीते कुछ दिनों में दो बड़ी योजनाएं लांच की। नंबर एक गरीबों को मकान के लिए भूखंड देने की और दूसरी लाडली बहनों के लिए 1000 रुपए महीना देने की घोषणा। यह दोनों ही घोषणाएं सत्ता वापसी के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती हैं।
खास बात यह कि शिवराज हर छोटे कार्यक्रम को एक मेगा इवेंट में तब्दील कर देते हैं। और प्रदेशभर से भाजपा के नेता और कार्यकर्ताओं को भोपाल में बुलाकर यह जताने की कोशिश करते हैं कि वही उनके एकमात्र नेता हैं। उनके इस मेगा इवेंट के दौरान प्रदेश का दूसरा कोई बड़ा नेता उनके आसपास भी नजर नहीं आता है। वे सिंगल मैन आर्मी की तरह लगे हुए हैं। बहुत कुछ हद तक कार्यकर्ता और नेता भी उनके इस अंदाज से सहमत होते नजर आते हैं। लेकिन इसका मतलब यह कतई न समझा जाए कि भाजपा में गुटबाजी नहीं है। फिलहाल तो यह राख के नीचे दबे अंगारे की तरह ही है।
और मध्प्रय देश में “आप” के आने का मतलब: प्रदेश की ताजा राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच आम आदमी पार्टी ने भी प्रदेश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। हाल ही में आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में पार्टी ने भोपाल में प्रदर्शन किया। हालांकि इस प्रदर्शन का कोई असर नहीं दिखा। लेकिन मुफ्त की बिजली, पानी और इलाज की रेवड़ी बांटकर जनता को लुभाने की कोशिश मध्यप्रदेश में भी की जा रही है। सिंगरौली में महापौर की सीट जीतकर आप पार्टी की बांछें खिली हुई हैं। उसे विधानसभा चुनाव में खोने के लिए कुछ भी नहीं है। केजरीवाल कह रहे हैं कि जनता ने 60 साल कांग्रेस को मौका दिया और 20 साल भाजपा को। इस बार आम आदमी पार्टी को मौका देकर देखो, आपकी हर उम्मीदों को पूरा करेंगे। मुफ्त के वादे करने के मामले में केजरीवाल देश में अव्वल हैं। लेकिन बीते कुछ समय में आम आदमी पार्टी के मंत्री रहे सत्येंद्र जैन और केजरीवाल के राइट हैंड कहे जाने वाले तथाकथित शिक्षा क्रांति के जनक मनीष सिसोदिया के जेल जाने से आम आदमी पार्टी की साख को धब्बा लगा है। खुद केजरीवाल भी कब अंदर हो जाएं इसकी कोई गारंटी नहीं है। इसलिए प्रेशर पॉलिटिक्स के मद्देनजर वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अनर्गल बयानबाजी करते रहते हैं।
भोपाल में भी उन्होंने प्रधानमंत्री का जिक्र करते हुए कहा कि अफसरों के कहने पर वे नोटबंदी और जीएसटी जैसी फाइलों पर दस्तखत कर देते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री का पढ़ा लिखा होना बहुत जरूरी है, लेकिन केजरीवाल यह नहीं बता पाते कि वे खुद पढ़े-लिखे अफसर और दिल्ली के मुख्यमंत्री होने के बावजूद भी अपने पार्टी नेताओं के भ्रष्टाचार पर लगाम क्यों नहीं लगा पाए। उनके नेता और मंत्री भ्रष्टाचार के नित नए कीर्तिमान स्थापित करने में क्यों लगे हुए हैं। यदि दिल्ली में भ्रष्टाचार की यमुना ऐसी ही बहती रही तो केजरीवाल भी सीखचों के अंदर दिखें इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। देशभर में वोट कटवा पार्टी के रूप में अपनी पहचान बना चुकी आम आदमी पार्टी मध्यप्रदेश में भी इसी भूमिका में ही दिखाई देगी इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। फिलहाल मध्यप्रदेश में तो आम आदमी पार्टी की उपस्थिति जनता के मनोरंजन करने मात्र तक ही सीमित दिखाई दे रही है। “आप” के आने से लोगों का मन जरूर बहलने लगा है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)