कमल नाथ की सियासी शैली को भी मैं ने चार दशक में निजी तौर पर नज़दीक से देखा है। इतने सुव्यवस्थित तरीके से राजनीति के सकल आयामों का प्रबंधन करने वाला कांग्रेस में उन सरीखा अब शायद ही कोई है।… चुनाव अभियान में प्रियंका की सक्रिय भागीदारी मध्यप्रदेश के लिए बहुत बड़ी सौगात साबित होने वाली है। उन की क्रियाशील मौजूदगी कांग्रेस की रही-सही भीतरी दरारों को एकबारगी ही पाट देने की ताक़त रखती है।
दो दिन बाद, सोमवार को, प्रियंका गांधी मध्यप्रदेश की विधानसभा के नवंबर-दिसंबर में होने वाले चुनाव के लिए जब जबलपुर से कांग्रेस के प्रचार अभियान की शुरुआत करेंगी तो अगले छह महीने तक भारतीय जनता पार्टी की ताताथैया देखना इस बार बेहद रोचक होगा। सवा तीन बरस पहले अपनी आस्तीन के विषधरों से गच्चा खा कर सरकार गंवाने के बाद कमल नाथ ने एक-एक दिन मध्यप्रदेश में कांग्रेसी ज़मीन के चप्पे-चप्पे की गुड़ाई करने में गुज़ारा है। अपनी सरकार में भाजपा की सेंधमारी के बाद से वे ठान कर बैठ गए हैं कि भोपाल के वल्लभ भवन में कांग्रेस की वापसी होने तक वे रोज़ पांच घंटे से ज़्यादा नहीं सोएंगे।
जो लोग सोचते थे कि कमल नाथ चूंकि जीवन भर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय हलकों में सात-समंदरी सियासत करते रहे हैं, इसलिए भोपाल के ताल में वे ज़्यादा दिनों नौका-विहार नहीं कर पाएंगे और ऊब कर लौट जाएंगे, वे सही साबित नहीं हुए। जो कमल नाथ को मध्यप्रदेश के लिए प्रक्षेपित सियासी किरदार समझते थे, वे अब चंबल से ले कर बेतवा और माही से ले कर नर्मदा तक में घुल गया उन का अक़्स देख कर अपना माथा खुजला रहे हैं। वे महाकौशल-विंध्य से ले कर मालवा-निमाड़ तक और बघेलखंड-बुंदेलखंड से ले कर मध्यभारत तक के राजनीतिक मानचित्र पर कमल नाथ के चेहरे की मौजूदा साख का जलवा देख कर विस्मय से भरे हुए हैं।
कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर कमल नाथ का कद चार दशक से गुलीवराना ही रहा है, लेकिन बावजूद इस के मध्यप्रदेश में कुछ बरस पहले तक वे सिर्फ़ छिंदवाड़ा के नेता माने जाते रहे। पांच साल पहले वे मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बन कर भोपाल गए और फिर वहीं के हो कर रह गए। आरंभिक असहजता के बाद अंततः उन्हें सब का साथ मिलता गया और वे भी सब में रच-बस गए। सो, 2018 के दिसंबर में कांग्रेस ने भाजपा को उखाड़ फेंका और कमल नाथ मुख्यमंत्री बन गए। मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की कलाबाज़ियों का आकलन करने में हुई चूक की वज़ह से जब सरकार चली गई तो राहुल गांधी के इस्तीफ़े से उपजे शून्य को भरने के लिए कमल नाथ को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की पेशकश हुई। मगर कमल नाथ ने कह दिया कि कांग्रेस को प्रदेश में लौटाए बिना वे कहीं नहीं जाने वाले।
सो, अपने मुख्यमंत्री-काल में, और ख़ासकर इन सवा तीन साल में, कमल नाथ ने कांग्रेस की हर परत को ठोस बनाने के लिए जिस तरह अनवरत अपना शारीरिक और अकादमिक पसीना बहाया है, उस ने उन्हें अब मध्यप्रदेश का सब से कद्दावर और आदरणीय ज़मीनी नेता होने का संजीदा हक़ दे दिया है। बिल्कुल उसी तरह, जैसे एक ज़माने में द्वारका प्रसाद मिश्र, प्रकाशचंद्र सेठी और अर्जुन सिंह हुआ करते थे। इस साल सर्दियों में जब मध्यप्रदेश के चुनाव हो रहे होंगे तो कमल नाथ 77 की उम्र पूरी कर लेंगे। इस लिहाज़ से उन की दैनंदिनी भागमभाग और कुशाग्र प्रबंधन कइयों को सचमुच ताज्जुब में डालता है।
कमल नाथ मध्यप्रदेश के मत-कुरुक्षेत्र में ताल ठोक कर कूदने के लिए पूरी तरह शस्त्र-सज्जित हैं। उन्होंने सभी 230 विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ कर जीत सकने लायक संभावित नामों के समूह तैयार कर लिए हैं। पूरे प्रदेश में उम्मीदवार बन सकने योग्य लोगों को चुनने के लिए कमल नाथ के आकलन-दल पिछले दो साल से नियमित काम में लगे थे और अगले तीन महीने में कांग्रेस की तरफ़ से भाजपा को टक्कर देने वाले 230 चेहरे पूरी तरह तय हो जाएंगे। प्रदेश भर के 70 हज़ार मतदान-बूथों पर कांग्रेस की कमान संभालने वाले दल इन तीन बरस में तैयार किए जा चुके हैं। चुनाव अभियान के मुद्दों और नारों ने कागज़ों पर आकार ले लिया है। प्रियंका के शंखनाद के साथ ही हर मीडिया मंच पर प्रचार अभियान का उद्घोष करने के लिए अश्वारोही अपनी कमर कस चुके हैं।
इस बीच दिग्विजय सिंह उन 66 विधानसभा क्षेत्रों के अपने दौरे पूरे कर चुके हैं, जहां बहुत बार से कांग्रेस नहीं जीती है। कमल नाथ ने सबसे अच्छा काम यही किया कि इन निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेसियों के बीच समन्वय बनाने का ज़िम्मा दिग्विजय को दिया। कोई कुछ भी कहे, समूचे प्रदेश में गांव-गांव तक कांग्रेसजन से जैसा व्यक्तिगत जीवंत संपर्क दिग्विजय का है, फ़िलहाल किसी का नहीं है। बहुत-से लोग हैं, जो कांग्रेस की आंतरिक राजनीति में दिग्विजय की नेकनीयती पर अपने संदेह की घटाएं बिखेरते रहते हैं। लेकिन चार दशक में जितना मैं ने दिग्विजय को निजी तौर पर जाना है, मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि वे कुछ भी करें, कांग्रेस के बुनियादी मक़सद को खरोंच पहुंचाने का काम कभी नहीं कर सकते हैं।
कमल नाथ की सियासी शैली को भी मैं ने चार दशक में निजी तौर पर नज़दीक से देखा है। इतने सुव्यवस्थित तरीके से राजनीति के सकल आयामों का प्रबंधन करने वाला कांग्रेस में उन सरीखा अब शायद ही कोई है। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आंतरिक चुनावी आकलन ख़ुद भी ऐसे ही नहीं कह रहे हैं कि शिवराज सिंह चौहान का छकड़ा इस बार 60 के आंकड़े तक जा कर थम जाएगा। इसके पीछे कमल नाथ का परत-प्रबंधन है। इसी के चलते ग्वालियर-चंबल और विंध्य प्रदेश में भाजपा को इतना नुकसान होने वाला है कि कैसे-कैसे ऐसे-वैसे हो जाएंगे।
मैं कमल नाथ को स्वभाव से जितना उदारमना और समायोजन-भाव वाला पाता हूं, उतना ही अपने हरादों पर दृढ़ रुख अपनाने वाला भी। सो, अपनी उदार चूकों का भी उन्हें कई बार नुकसान उठाना पड़ता है और अपनी कनकच्ची सूचनाओं पर आधारित ज़िद का भी। मगर वे वैचारिक परिपक्वता के उस चरम मुक़ाम पर हैं कि अपनी हठ को पिघला कर एकदम तिरोहित कर देने का ग़ज़ब माद्दा भी रखते हैं। सो, मुझे लगता है कि राहुल सिंह, सुरेश पचौरी, अरुण यादव, विवेक तनखा, ऐसे ही दूसरे हमजोलियों और लाखों अर्थवान कर्मशीलों का सक्रिय साथ ले कर कमल नाथ मध्यप्रदेश के चुनाव में कांग्रेस को 150 सीटों का आंकड़ा पार करा देंगे।
चुनाव अभियान में प्रियंका की सक्रिय भागीदारी मध्यप्रदेश के लिए बहुत बड़ी सौगात साबित होने वाली है। उन की क्रियाशील मौजूदगी कांग्रेस की रही-सही भीतरी दरारों को एकबारगी ही पाट देने की ताक़त रखती है। वरिष्ठ मतदाता प्रियंका में इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं। देश भर की तरह मध्यप्रदेश के गांव-गांव में और ख़ासकर आदिवासी इलाक़ों में इदिरा जी के लिए आज भी एक गहन आदर-भाव मौजूद है। युवा मतदाता तो प्रियंका को ले कर बावलेपन की हद तक उत्साहित हैं ही। प्रियंका को छू कर गुज़रने वाली पछुआ बयार अकेले अपने बूते मध्यप्रदेश में कांग्रेस को मिलने वाले मतों में पांच-छह प्रतिशत तक का इज़ाफ़ा कर सकती है। इसलिए इस बार कांग्रेस को 45 प्रतिशत से ज़्यादा मत मिलने के पूरे आसार हैं।
मध्यप्रदेश का यह चुनाव उस प्रवृत्ति को बेहद ठोस चुनौती देने वाला साबित होगा, जो निर्वाचित सरकारों पर अन्यान्य तरीके अपना कर डकैती डालने को उद्धत रहती है। लगता किसी को कुछ भी हो, मगर कमल नाथ की सरकार को गिराने के लिए भाजपा द्वारा अपनाए गए हथकंडों को मध्यप्रदेशवासियों ने पसंद नहीं किया। भाजपा-समर्थकों ने भी नहीं। इसलिए आप देखेंगे कि कांग्रेस छोड़ कर सिंधिया के साथ गए जिन-जिन लोगों को भाजपा इस बार उम्मीदवार बनाएगी, वे सब हमेशा के लिए घर भेज दिए जाएंगे। इसी में जनतंत्र की जीत है।
(लेखक न्यूज़-व्यूज़ इंडिया और ग्लोबल इंडिया इनवेस्टिगेटर के संपादक हैं।)