राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

रक्षा बजट नाकाफी, जबकि चीन की चुनौती

Defense

पिछले महीने वित्त मंत्री के बजट भाषण के दौरान भारतीय सैन्य और रक्षा उद्योग उम्मीद कर रहा था कि उसके वार्षिक बजट आवंटन में अच्छा-खासा इजाफा किया जाएगा। तीनों रक्षा सेवाओं ने रक्षा मंत्रालय के सामने अपने प्रेजेंटेशंस में और ज्यादा फंड्स की मांग की थी। ये तीनों फंडिंग बढ़ाने के लिए वित्त मंत्रालय के साथ बातचीत कर रहे थे। सेना को यह भी यकीन था कि रक्षा क्षेत्र के आधुनिकीकरण के लिए एक नॉन-लैप्सेबल फंड का ऐलान किया जाएगा। लेकिन, वित्त मंत्री ने संसद में अपने भाषण में रक्षा मंत्रालय के बजटीय आवंटन का जिक्र नहीं किया और बजट दस्तावेजों के आंकड़ों से पता चला कि रक्षा क्षेत्र के आवंटन में मामूली बढ़ोतरी ही हुई है। रक्षा के लिए कुल आवंटन 5.94 लाख करोड़ रुपए हैं, जो वित्तीय वर्ष 2022-23 के 5.25 लाख करोड़ रुपये से 13% अधिक है। इस वित्तीय वर्ष के लिए कुल पूंजी परिव्यय 1.62 लाख करोड़ रुपए है, जिसमें पिछले वित्तीय वर्ष के 1.52 लाख करोड़ रुपए की तुलना में 16% की मामूली बढ़त है।

रक्षा बजट से टूटा सैन्य योजनाकारों का दिल

सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिए जो बजट दिया गया है, उसमें भारतीय वायुसेना को तीनों सेवाओं में सबसे बड़ा हिस्सा 0.57 लाख करोड़ रुपए मिला है। यह वित्तीय वर्ष 2022-23 के मुकाबले 3.6% की बढ़ोतरी है। भारतीय सेना को 0.37 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए गए। पिछले साल से 15.6% की बढ़ोतरी- और भारतीय नौसेना का पूंजीगत बजट 0.52 लाख करोड़ रुपए आंका गया, जो पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले 10.6% अधिक है। राजस्व परिव्यय के गैर-वेतन हिस्से में सबसे बड़ा बदलाव किया गया है। इसके लिए 2022-23 का बजट अनुमान 64,869 करोड़ रुपये था और इस वित्तीय वर्ष में यह 90,000 करोड़ रुपये से कुछ से अधिक है, यानी 44% की बढ़ोतरी।

यह कथित तौर पर सैन्य भंडार की स्थिति में सुधार करने के लिए है ताकि सेना को छोटे और प्रचंड संघर्ष से निपटने के लिए तैयार किया जा सके। लेकिन, फिर भी रक्षा पर्यवेक्षकों के लिए यह निराश करने वाली बात है। बहुतों को लगता है कि सेना को वरीयता नहीं दी गई है। हालांकि यह भी लग रहा था कि रक्षा क्षेत्र के लिए मामूली आवंटन ही किया जाएगा।

सेना के आधुनिकीकरण में फंड्स की कमी लगातार एक समस्या रही है। महामारी और यूक्रेन युद्ध के बाद, हालांकि, भारत को वित्तीय रुकावटों और अनिश्चित वैश्विक आर्थिक माहौल का सामना करना पड़ रहा है। सेना की अपेक्षाएं चाहे जो भी हों, वित्त मंत्री ऐसे समय में रक्षा आवंटन में उदार नहीं हो सकती थीं, जब अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों की जरूरतें ज्यादा हैं। बदकिस्मती से, यह वह दौर है जब देश न सिर्फ उत्तरी और पूर्वी सीमाओं पर, बल्कि भारत-प्रशांत क्षेत्र में भी चीन की बढ़ती चुनौतियों का सामना कर रहा है।

सेना के पूंजीगत बजट में मामूली बढ़ोतरी से सैन्य योजनाकारों के दिल टूट गए हैं जिन्हें एहसास है कि युद्धाभ्यास के लिए उनके पास कम गुंजाइश बची है। नौसेना पर इसका खास तौर से असर होगा, क्योंकि उसके कई प्रॉजेक्ट्स पाइपलाइन में हैं। एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत के लिए राफेल-एम जेट की खरीद और पनडुब्बियों की खरीद के लिए प्रोजेक्ट-75आई में इस साल यकीनन रुकावट आएगी। वायुसेना को भी और लड़ाकू विमान खरीदने और मौजूदा सुखोई जेट को अपग्रेड करने की योजनाओं को कुछ आराम देना होगा।

जाहिर सी बात है, पेंशन बजट का अधिक होना, रक्षा के घटते आवंटन का मुख्य कारण है। वित्तीय वर्ष 2022-2023 में 1.19 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले इस वर्ष पेंशन परिव्यय को बढ़ाकर 1.38 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है क्योंकि इससे पहले “वन-रैंक-वन-पेंशन” को लागू करने की घोषणा की गई थी। ऐसा लगता है कि सरकार ने पेंशन के असर का अनुमान लगाया और इसीलिए अग्निवीर योजना शुरू की ताकि सशस्त्र बलों के वेतन और पेंशन बिल में कटौती की जा सके। फिर भी सेना की प्रतिबद्ध देनदारियां बहुत अधिक हैं और शायद इसीलिए नई खरीद करना मुश्किल हो रहा है।

यूं एक तरफ रक्षा बजट में मामूली वृद्धि हुई है तो दूसरी तरफ चीन के साथ एक और सीमावर्ती संघर्ष की उम्मीद है। इन दोनों के बीच तालमेल बैठाना मुश्किल, या कहें तो, डरावना महसूस होता है। लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश की घटनाओं के मद्देनजर सेना का पूंजी आवंटन नाकाफी लगता है। जबकि राजस्व बजट में वृद्धि हुई है, सशस्त्र बलों को अभी भी आधुनिक, अधिक परिष्कृत हथियारों की आवश्यकता है जिसके लिए बड़े पूंजी आवंटन की जरूरत है।

हालांकि, सेना को इस असहज सच्चाई का सामना करने की जरूरत है कि वह आधुनिकीकरण बजट के आवंटित हिस्से को खर्च नहीं कर पा रही। वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट दस्तावेजों के संशोधित अनुमानों से पता चलता है कि सशस्त्र बल पिछले साल के 1.52 लाख करोड़ रुपये के पूंजी परिव्यय में से 2,369 करोड़ रुपये खर्च करने में असफल रहे। देश अपनी उत्तरी सीमा पर जिन समस्याओं का सामना कर रहा है, उनके मद्देनजर आवंटित धन का इस्तेमाल न कर पाना बिल्कुल जायज नहीं है।

अनुसंधान और विकास के लिए फंडिंग: चिंता की बात

अनुसंधान और विकास के लिए फंडिंग भी कम है, और यह भी चिंता की बात है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के लिए इस बार का बजटीय आवंटन 23,264 करोड़ रुपये है, जो पिछले वर्ष के बजट से 9% अधिक है। वित्तीय वर्ष 2022-2023 में सरकार ने घरेलू निजी उद्योग के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास बजट का 25% निर्धारित किया था। रक्षा मंत्रालय ने एक प्रौद्योगिकी विकास निधि (टीडीएफ) योजना भी शुरू की थी। घटकों, उत्पादों, सिस्टम्स और टेक्नोलॉजी का स्वदेशी विकास करने वाले छोटे और मध्यम दर्जे के उपक्रमों और स्टार्टअप्स को इस योजना के तहत हर प्रॉजेक्ट के लिए 50 करोड़ रुपए दिए गए। एक साल बाद इस योजना की स्थिति क्या है, यह स्पष्ट नहीं है। जो साफ है, वह यह कि रक्षा मंत्रालय के इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (आईडेक्स) और डिफेंस टेस्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर स्कीम (डीटीआईएस) के लिए इस बजट में क्रमशः 116 करोड़ रुपये और 45 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। आईडेक्स ने 100 से अधिक कॉन्ट्रैक्ट किए हैं, और वह भरोसेमंद लग रहा है, लेकिन सेना को जैसे नतीजों की आस है, उनके लिए शायद ज्यादा फंडिंग की जरूरत होगी।

इस बीच सरकार स्वदेशीकरण पर जोर देती रही है। यह अपने आप में एक उद्योग है, लेकिन इसके कारण सेना एक विरोधाभास से जूझ रही है। भारत के सशस्त्र बलों को वह तरीका ढूंढना होगा, जिनके जरिए वे उन एसेट्स और उपकरणों के साथ अपना कामकाज जारी रख सकें जो बेहतरीन नहीं, और मौजूदा मकसद के हिसाब से वाजिब भी नहीं। यानी सेना को उपलब्ध संसाधनों से ही काम चलाना होगा, और उसे बखूबी इस्तेमाल करने के तरीके खोजने होंगे। वैसे रक्षा बजट, सेना के लिए संकट और बढ़ाता है। (साभार-दिक्विंट)

By NI Desk

Under the visionary leadership of Harishankar Vyas, Shruti Vyas, and Ajit Dwivedi, the Nayaindia desk brings together a dynamic team dedicated to reporting on social and political issues worldwide.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *