कर्नाटक की जीत का उपयोग तुरंत करना चाहिए। कर्नाटक फतह के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को अपनी नई टीम की घोषणा जल्दी कर देना चाहिए। और एक बार में। कांग्रेस को कर्नाटक एक लाचिंग पेड की तरह मिला है। यहां से उसे उड़ान भरना है। 2024 लोकसभा चुनाव में अब केवल दस महीने बचे हैं। कांग्रेस टाइम टेबल बना ले। समय बिल्कुल नहीं बचा है। केवल 300 दिन!चार महीने बाद होने चार राज्यों के विधानसभाचुनाव और दस महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को तुरंत जुटना चाहिए।
जीत से आत्मविश्वास पैदा होता है। और उसका उपयोग तुरंत करना चाहिए। कर्नाटक फतह के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को अपनी नई टीम की घोषणा जल्दी कर देना चाहिए। और एक बार में। इससे संदेश जाएगा कि पार्टी इसी एक काम में नहीं लगी रहेगी बल्कि आगे वास्तविक जो काम हैंसंगठन को मजबूत करना और चार महीने बाद होने चार राज्यों के विधानसभाचुनाव और दस महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में कर्नाटक की तरह जीत हासिल करना उस पर ध्यान देगी।
2014 के बाद से कांग्रेस में एक डिप्रेशन की हालत रही। बीच-बीच में चुनाव जीती मगर उत्साहित नहीं दिखी। जीत से जो एक उर्जा मिलती है कि चले एक कदमतो दिखे चार कदम वह वाला उल्लास नहीं बन पाया। 2018 में तीन राज्य मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान एक साथ जीती मगर 2019 लोकसभा उसी बुरी तरह जैसे 2014 में हारी थी हार गई। राहुल गांधी ने गम और गुस्से में अध्यक्षपद से इस्तीफा देकर पार्टी का अवसाद और बढ़ा दिया।
लेकिन पिछले साल 2022 में उनके द्वारा देश भर में पैदल यात्रा के साहसिकनिर्णय के बाद कांग्रेस में जिन्दा रहने और लड़ने की नई स्फूर्ति पैदाहोने लगी। और इस साल जनवरी में यात्रा खत्म होते होते तक कांग्रेस वापसअवसाद मुक्त नजर आने लगी।
उसमें कर्नाटक की ताजा जीत सोने में सुहागा है। कर्नाटक की जीत के बहुत सेकारण हैं। उनमें एक कर्नाटक में राहुल की यात्रा भी है। राहुल करीब 500किलोमीटर कर्नाटक में चले थे। तीन हफ्ते से ज्यादा। इस दौरान जिन 51विधानसभा सीटों से होकर वे गुजरे उनमें से 75 प्रतिशत कांग्रेस ने जीतलीं (37 सीटें)। ये स्ट्राइक रेट बड़ा जबर्दस्त है। तो यात्रा का कर्नाटकजीत में बड़ा योगदान है।
मगर निर्णायक तो भाजपा का साम्प्रदायिक अजेंडा फेल होना रहा। यह सबसेबड़ी बात है। याद रखिए कर्नाटक में ही भाजपा ने सबसे ज्यादा सामाजिकविभाजन की आग लगाई थी। यहां तक कहा कि देश से अलग करने की कांग्रेस कीसाजिश है। यह बहुत भयानक बात है। लेकिन केवल यह एक अकेली बात नहीं ऐसेजाने कितने प्रयोग भाजपा ने इस दक्षिणी राज्य में किए। दरअसल वह उत्तर सेइस नफरत और विभाजन की आग को दक्षिण ले जाना चाहती थी।
याद कीजिए टीपू सुल्तान को किस तरह पेश करने की कोशिश की गई। अंग्रेजोंके दांत खट्टे करने वाले टीपू सुल्तान को खलनायक बनाने की साजिश की गई।हलाल जो देश में कहीं इश्यू नहीं है, उस पर पाबंदी लगाने की बात की गई। फिरहिजाब को मुद्दा बनाया गया। यह सारे प्रयोग बुरी तरह असफल साबित हुए।हिजाब पर प्रतिबंध लगाने वाले भाजपा के मंत्री चुनाव हार गए। मतलब जनताने पूरी तरह भाजपा के हिन्दु मुसलमान अजेंडे को ठुकरा दिया।
यह इस चुनाव का सबसे बड़ा मैसेज है। जिसने एक तरफ दक्षिण से भाजपा कोपूरी तरह विदा कर दिया। उसके और दक्षिणी राज्यों में जाने की संभावनाओंको रोक दिया। दूसरी तरफ उत्तर भारत में भी स्पष्ट कर दिया कि अब हिन्दुमुसलमान की राजनीति नहीं चलेगी। कांग्रेस ने लोगों की जिन्दगी से जुड़ेसवालों को जिस तरह कर्नाटक में वापस मुख्यधारा में लाया था वह ट्रेंड अबआगे भी चलेगा। कर्नाटक में कांग्रेस ने चालीस परसेंट कमीशन की सरकार, राहुल की पांचगारंटी, बेरोजगारी, मंहगाई, और स्थानीय मिल्क ब्रांड नंदिनी को बचाने कोमुद्दा बनाकर जिस तरह पूरा चुनावी अभियान चलाया वही लोगों को पसंद आया।
इसके अलावा एक और खास बात। 2014 के बाद कांग्रेस ने यह पहला चुनाव पूरीताकत से लड़ा। जनता पर इसका असर होता है। वह सब समझती है। आधे-अधूरे मनसे चुनाव लड़ने के परिणाम कभी भी अनुकूल नहीं आते हैं। इससे पहलेकांग्रेस ने गुजरात चुनाव लड़ने से पहले ही हथियार डाल दिए थे। 2018 केविधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने वहां अपने सहयोगियों के साथ मिलकर 80सीटें जीती थी। जिनमें से 77 उसकी खुद की थीं। और भाजपा की उसने सौ पूरीनहीं होने दी थी। 99 पर उसे रोक दिया था।
मगर 2022 का चुनाव उसने इतने अन्यमनस्क भाव से क्यों लड़ा यह किसी की समझमें नहीं आया। भाजपा के नेता तक हैरान थे कि 2022 में हमारी स्थिति 2017से भी खराब थी। चुनाव से ठीक पहली मोरबी पुल के हादसे ने जिसमें लगभगडेढ़ सौ लोग मारे गए थे ने हौसला और तोड़ दिया था। मगर वहां राहुल नेकेवल एक दौरा किया। प्रियंका गईं नहीं।
कारण केवल कांग्रेस ही जानती होगी। मगर नतीजे सबको याद हैं। केवल 17सीटें मिलीं। आज तक के इतिहास में सबसे कम। कांग्रेस यहीं विश्लेषण करकेदेख सकती है कि साथ में ही हुए हिमाचल चुनाव में प्रियंका वहीं डटी रहींतो कांग्रेस की सरकार बन गई। और गुजरात को नजरअंदाज कर दिया तो हार कारिकार्ड बन गया। इसमें डरने की कोई बात नहीं है। कांग्रेस अगर गुजारत कीहार के कारणों पर विचार करे तो उसे वहां से भविष्य में जीत के बहुत सूत्रमिलेंगे।
इसी तरह गुजरात से पहले कांग्रेस पंजाब और उत्तराखंड हारी। दोनों जगहइसके जीतने की संभावनाएं थीं। यह दोनों राज्य भी कांग्रेस ने खुद गंवाएहैं। कांग्रेस इस तरह राजनीति में नहीं रह सकती। आज की राजनीति आपसेउम्मीद करती है कि आप अपनी ताकत से दोगुनी ज्यादा ताकत बताएं। मोदी जी कीतरह 56 इंच की छाती। पहलवानों की छाती की तो हम बात करते नहीं हैं।बेचारों को आजकल पूछ कौन रहा है। एक महीने से जंतर मंतर पर बैठे हैं।इसलिए लिखने पढ़ने वालों की ही बात करते हैं। और छाती की बात हुई तो यादआया कि हिन्दी के पिछले एक शताब्दी के सबसे बड़े कवि जिन्हें महकवि,महाप्राण कहा जाता है उन निराला की छाती बहुत चौड़ी थी। हर मामले मेंउसमें एक दिल भी रहता है उसे भी देश के सबसे सह्रदय दिलों में से एक मानाजाता था। खैर लेकिन वास्तविक रूप से निराला की छाती 39 इंच की थी। बतादें कि उन्हें कसरत पहलवानी का भी शौक था तो लोगों को चैलेंज भी करतेरहते थे। और उनके सीने का नाप भी पूछते रहते थे। पुरुषों में 39 इंच कीछाती बहुत चौड़ी और मजबूत मानी जाती है। सामान्यत: 31, 32, 34, 35 हीहोती है। सेना में जहां सीने की मजबूती ही सब कुछ होती है वहां 31 इंच (77 सेमी) की छाती मांगते हैं। तो आज निराला होते तो वे 56 इंच सुनकरक्या कहते बताना मुश्किल है। भाजपा में कभी पढ़ने लिखने वाले लोग थे
जिनसे निराला की बात की जा सकती थी। हालांकि वे बहुत कम ही थे। याद करनेपर फिलहाल केवल दो तीन नाम ही विष्णुकांत शास्त्री, वाजपेयी जी, शांताकुमार ही याद आ रहे हैं। जिनसे आप निराला की बात कर सकते थे। बाकी तोआजकल वहां कोई मनोज मुन्तशिर जैसे कवि का बोलबाला है। मगर खैर वह मुद्दानहीं है। बात कही थी आज की राजनीति की। कि यहां अपनी ताकत बढ़ा चढ़ाकरबताने का मौसम है। और ऐसे में कांग्रेस अपनी वास्तविक ताकत भी बताने सेबचती है।
इस तरह वह भाजपा को नहीं उखाड़ सकती। 15 लाख खाते में, अच्छे दिन, न्यूइंडिया, विश्व गुरु, दो करोड़ नौकरी जैसे झूठ न बोलो मगर यह तो बताओ किहरित क्रान्ति के बाद श्वेत क्रान्ति भी इन्दिरा गांधी ने शुरू की थी।अभी जिस नंदिनी मिल्क ब्रांड की बात राहुल कर्नाटक में कर रहे थे वैसे हीहर राज्य के मिल्क ब्रांड 1970 की श्वेत क्रांति के बाद बने हैं।
कांग्रेस को कर्नाटक एक लाचिंग पेड की तरह मिला है। यहां से उसे उड़ानभरना है। 2024 लोकसभा चुनाव में अब केवल दस महीने बचे हैं। कांग्रेस टाइमटेबल बना ले। समय बिल्कुल नहीं बचा है। केवल 300 दिन!