लाल सिंह को भारत-जोड़ो यात्रा में शामिल होना था। मगर अंतिम मौके पर कांग्रेस के ‘शुभचिंतक’ व राहुल गांधी के दोस्त उमर अबदुल्ला के दबाव में लाल सिंह को भारत-जोड़ो यात्रा में शामिल नही होने दिया गया। अपने को कांग्रेस का ‘शुभचिंतक’ मानने वाले कुछ अन्य बुद्धिजीवियों-पत्रकारों ने भी लाल सिंह को लेकर अपना विरोध जताया।…मगर लखनपुर में भारत-जोड़ो यात्रा के स्वागत के लिए भारी संख्या में आ चुके लाल सिंह समर्थकों से कांग्रेस अपने को अलग नही कर सकी। लखनपुर उस दिन राहुल गांधी और लाल सिंह के नारों से ही गूंज रहा था। लाल सिंह के समर्थन में नारेबाजी इतनी बुलंद थी कि राहुल गांधी को अपने भाषण को रोक कर बोलना पड़ा कि ‘हां मैने सुन लिया है’।
कांग्रेस के साथ अब सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उसके हितैषी ही उसके लिए सबसे बड़ी समस्या बनते जा रहे है। आज के हालात में कांग्रेस पर यह कहावत पूरी तरह से ठीक बैठती कि ‘गरीब की लुगाई सबकी भौजाई’। बुद्धिजीवियों-पत्रकारों से लेकर राजनीतिक नेताओं तक हर कोई कांग्रेस को सलाह देने के चक्कर में चाहता है कि कांग्रेस उसी के हिसाब से चले। बदले में कांग्रेस भी सबको खुश करने के व्यस्त है, सबकी बात मानती चली जा रही है। हालत यह हो गई है कि कांग्रेस में किसे शामिल होना चाहिए और किसे नही इसकी ‘इजाज़त’ भी ‘शुभचिंतकों’ से लेनी पड़ रही है।
ताज़ा मामला जम्मू-कश्मीर के दिग्गज नेता लाल सिंह का है। लाल सिंह को भारत-जोड़ो यात्रा में शामिल होना था। मगर अंतिम मौके पर कांग्रेस के ‘शुभचिंतक’ व राहुल गांधी के दोस्त उमर अबदुल्ला के दबाव में लाल सिंह को भारत-जोड़ो यात्रा में शामिल नही होने दिया गया। अपने को कांग्रेस का ‘शुभचिंतक’ मानने वाले कुछ अन्य बुद्धिजीवियों-पत्रकारों ने भी लाल सिंह को लेकर अपना विरोध जताया। और जैसी की संभावना थी कांग्रेस ने परिस्थितियों और ज़मीनी वास्तविकतायों को समझे बिना लाल सिंह को भारत-जोड़ो यात्रा से दूर रहने का संकेत दे दिया। अक्सर कांग्रेस में होता भी ऐसे ही है।
लेकिन लाल सिंह को लेकर कांग्रेस ने जो फैसला लिया उसे लेकर कांग्रेस ने यहां अपनी कमजोरी जाहिर की है, वहीं जम्मू की बहुसंख्यक हिन्दू आबादी में गलत संदेश दे दिया है। इसका कांग्रेस को आने वाले दिनों में नुक्सान भी उठाना पड़ सकता है।
क्या था पूरा कार्यक्रम?
कार्यक्रम के अनुसार लाल सिंह को भारत-जोड़ो यात्रा के जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने पर लखनपुर में वीरवार 19 जनवरी को यात्रा में शामिल होना था। बकायदा इसकी तैयारी भी हो चुकी थी। लाल सिंह की तरफ से भी ऐलान कर दिया गया था कि वे भारत-जोड़ो यात्रा में शामिल हो रहे हैं। लेकिन कुछ टीवी चैनलों से लेकर कुछ बुद्धिजीवियों ने इसे लेकर कांग्रेस की खूब नुक्ताचीनी शुरू कर दी।
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला ने भी बिना देरी किए कांग्रेस को सलाह दे डाली कि भारत-जोड़ो यात्रा ‘किसी के पाप धोने का माध्यम नही बननी चाहिए’। हालांकि उनके पिता डॉ फारूक अब्दुल्ला ने अगले दिन उमर के बयान से असहमति जताई और कहा कि वे लाल सिंह के आने का स्वागत करते हैं और इससे भारत-जोड़ो यात्रा को मजबूती ही मिलेगी। उन्होंने यहां तक कह डाला कि उमर क्या कहते हैं, इससे उन्हें कुछ लेना-देना नही है।
लेकिन तब तक काफी देरी हो चुकी थी और कांग्रेस की ओर से लाल सिंह को भारत-जोड़ो यात्रा में शामिल होने से बकायदा मना भी कर दिया गया था। यहां तक कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की तरफ से लाल सिंह को फोन पर ‘सॉरी’ भी बोली जा चुकी थी।
लेकिन कांग्रेस की तरफ से एक बार भी उमर अबदुल्ला से यह नही पूछा गया कि आखिर उमर किस आधार पर लाल सिंह का विरोध कर रहे हैं? क्या उमर अब्दुल्ला भूल गए कि गत 10 सितंबर 2022 को जम्मू में गुपकार गठबंधन द्वारा बुलाई गई बैठक में लाल सिंह को बकायदा आमंत्रित किया गया था। यह बैठक जम्मू-कश्मीर में प्रदेश से बाहर के लोगों को मताधिकार दिए जाने के सरकार के प्रयासों के विरोध में बुलाई गई थी और लाल सिंह को महबूबा मुफ़्ती और फारूक अब्दुल्ला की बगल में बैठाया गया था।
भले ही भारत-जोड़ो यात्रा के जम्मू-कश्मीर पहुंचने पर कांग्रेस ने उमर अबदुल्ला को खुश करने के लिए लाल सिंह को नज़रअदाज किया मगर लखनपुर में भारत-जोड़ो यात्रा के स्वागत के लिए भारी संख्या में आ चुके लाल सिंह समर्थकों से कांग्रेस अपने को अलग नही कर सकी। लखनपुर उस दिन राहुल गांधी और लाल सिंह के नारों से ही गूंज रहा था। लाल सिंह के समर्थन में नारेबाजी इतनी बुलंद थी कि राहुल गांधी को अपने भाषण को रोक कर बोलना पड़ा कि ‘हां मैने सुन लिया है’।
क्यों हुआ लाल सिंह का विरोध?
लाल सिंह द्वारा भारत-जाड़ो यात्रा से जुड़ने का विरोध क्यों हुआ ? इसको समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। दरअसल 2018 में हुए बहुचर्चित कठुआ दुष्कर्म मामले के समय लाल सिंह भारतीय जनता पार्टी में थे और पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। उस समय महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री थीं।
कठुआ दुष्कर्म को लेकर उन दिनों एक आंदोलन चला था जिसमें मांग की जा रही थी कि सारे मामले की जांच सीबीआई को सौंपी जाए। इस मांग को जम्मू के लगभग सभी सामाजिक संगठनों का समर्थन था। आंदोलन के लंबा खिंचे जाने से सरकार में शामिल भारतीय जनता पार्टी की काफी किरकिरी हो रही थी।
इसी को देखते हुए महबूबा सरकार में शामिल अपने दो मंत्रियों – लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा आंदोलनकारियों से बात करने के लिए गए। आंदोलनकारियों से बात करने के बाद लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा ने भी सारे मामले की सीबीआई से जांच करवाने की मांग कर डाली जिस वजह से पीडीपी और भाजपा के रिश्तों में खटास पैदा हुई। बाद में दोनों को मंत्री परिषद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि यह साफ था कि दोनों पार्टी की मर्ज़ी से ही आंदोलनकारियों से बात करने गए थे।
‘नैरेटिव’ का भ्रमजाल
लेकिन लाल सिंह बाद में राजनीति और दुष्प्रचार के खेल में ऐसा फंस गए कि उन्हें कठुआ दुष्कर्म का तथाकथित रूप से ‘खलनायक’ बना दिया गया। टीवी चैनलों और बुद्धिजीवियों ने ऐसा ‘नैरेटिव’ गढा कि थोड़े ही समय बाद लाल सिंह को भारतीय जनता पार्टी भी छोड़नी पड़ी। भारतीय जनता पार्टी की अंदरूनी राजनीति का भी लाल सिंह शिकार हुए। यहां उन्हें पार्टी को छोड़ना पड़ा वहीं उनके साथ आंदोलनकारियों से बात करने जाने वाले चंद्र प्रकाश गंगा आज भी भारतीय जनता पार्टी में ही हैं।
यह बेहद अजीब स्थिति है कि जिस गोदी मीडिया को दिन रात कोसा जाता है उसी के द्वारा बनाए गए ‘नैरेटिव’ के भ्रमजाल में हमारे अधिकतर बुद्धिजीवी-पत्रकार फंस जाते है और बात को सच मान कर अपनी राय बना लेते हैं। कठुआ दुष्कर्म मामले में भी ऐसा ही हुआ और लाल सिंह सहित सब वे लोग ‘खलनायक’ बना दिए गए जिसने भी सीबीआई जांच की मांग की। लाल सिंह की तरह ही उन दिनों एक चर्चित अंग्रेजी टीवी चैनल द्वारा जम्मू की प्रमुख संस्था जम्मू बार एसोसिएशन को भी निशाना बनाने की कोशिश की गई थी। बार एसोसिएशन भी कठुआ मामले की जांच सीबीआई से करवाने की मांग कर रही थी।
लगभग हर मुद्दे पर महबूबा मुफ़्ती और फारूक अब्दुल्ला-उमर अब्दुल्ला को कोसने वाले टीवी चैनल उन दिनों कठुआ मामले को लेकर अचानक उनके समर्थक हो गए थे जबकि लाल सिंह व जम्मू बार एसोसिएशन के खिलाफ बकायदा एक मुहिम छेड़ दी गई थी। शायद यही ‘नैरेटिव’ का भ्रमजाल है जिसमें हर कोई फंसता चला जाता है।
कांग्रेस ने की बड़ी गलती
लाल सिंह अगर भारत-जोड़ो यात्रा में शामिल होते और राहुल गांधी के साथ मंच साझा करते तो जम्मू-कश्मीर की राजनीति में इसका गहरा असर पड़ता। विशेषकर भारतीय जनता पार्टी को परेशानी हो सकती थी। लाल सिंह के शामिल होने का एक बड़ा मतलब था। ऐसी भी संभावनाएं थी कि लाल सिंह जल्द ही कांग्रेस में बकायदा वापसी भी कर सकते थे। मगर ऐसा हो नही सका। ऐसा नही होने के गहरे मतलब हैं और कांग्रेस को आने वाले दिनों में इसका खमियाजा भी भरना पड़ सकता है।
अगर लाल सिंह को लेकर कांग्रेस के ऊपर कोई दबाव था तो कांग्रेस को लाल सिंह को भारत-जोड़ो यात्रा में शामिल होने को लेकर अपनी मंजूरी देनी ही नही चाहिए थी। लाल सिंह को पहले भारत-जोड़ो यात्रा में शामिल करवाने की सहमति दे दिए जाने के बाद उन्हें भारत-जोड़ो यात्रा और राहुल गांधी से दूर रख कर कांग्रेस ने दो बड़ी गलतियां कर दी हैं। जिनकी भरपाई फिलहाल आसान नही हैं।
जाने-अनजाने में आम लोगों के यह संदेश दे दिया गया है कि लाल सिंह का विरोध सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि वे हिन्दू हैं। कांग्रेस को अपनी इसी छवि की वजह से पहले भी नुक्सान हुआ है और जम्मू का हिन्दू कांग्रेस से दूर हुआ है। लाल सिंह को राहुल गांधी के साथ मंच पर जगह न दिए जाने से जम्मू संभाग के लोगों का यह विश्वास भी कहीं न कहीं पक्का हुआ है कि कांग्रेस के लिए आज भी कश्मीर ही प्राथमिकता में है और उसने अपनी पुरानी गलतियों से कुछ नही सिखा है।
कौन हैं लाल सिंह?
छात्र राजनीति से अपना राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले लाल सिंह उस समय चर्चा में आए जब जम्मू-कश्मीर और पंजाब की सीमा पर बनने वाले रणजीत सागर बांध के विस्थापितों को मिलने वाले मुआवजे को लेकर एक आंदोलन शुरू हुआ। इस आंदोलन में लाल सिंह ने एक अहम भूमिका निभाई जिसके बाद 1996 में उन्होंने कांग्रेस (तिवारी) की टिकट पर पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और विधायक बने। बाद में कांग्रेस (तिवारी) का कांग्रेस में विलय हो जाने से लाल सिंह भी कांग्रेस में आ गए। लाल सिंह ने 2002 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस की टिकट पर लड़ा और जीता। कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर 2004 और 2009 में लोकसभा के लिए भी चुने गए।
मगर 2014 में कांग्रेस द्वारा उनकी जगह गुलाम नबी आज़ाद को लोकसभा की टिकट दे दिए जाने से लाल सिंह नाराज़ हो गए और भारतीय जनता पार्टी में चले गए। लेकिन 2018 में कठुआ दुष्कर्म मामले में दिए गए बयान के बाद उन्हें भारतीय जनता पार्टी छोड़नी पड़ी।
बाद में लाल सिंह ने डोगरा स्वाभिमान संगठन के नाम से अपनी एक अलग पार्टी का गठन कर लिया। गत अगस्त में जब गुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस छोड़ दी तो लाल सिंह के वापस कांग्रेस में आने की संभावनाएं भी बढ़ गई। लाल सिंह की तरफ से कांग्रेस में वापसी के संकेत दिए जाते रहे।
लाल सिंह को एक मज़बूत ज़मीनी नेता माना जाता है। इसके पीछे बड़ी संख्या जम्मू संभाग के उस मुस्लिम समुदाय की भी है जो उनका शुरू से प्रशंसक व समर्थक रहा है। विशेषकर गुज्जर समुदाय के बीच उनकी लोकप्रियता के आगे जम्मू संभाग में कोई दूसरा बड़ा हिन्दू नेता ठहर नहीं सकता है।
लाल सिंह के काम करने के अंदाज से असहमतियां हो सकती हैं मगर समाज के सभी वर्गों में उनकी लोकप्रियता का कोई मुकाबला नही है। जम्मू-कश्मीर के स्वास्थ्य मंत्री के रूप में उनके द्वारा किए गए कार्यों को आज भी याद किया जाता है ।
सवाल यही है कि भारत जोड़ो यात्रा निकालना का आखिर मकसद क्या है। क्या एक बड़ा मकसद कांग्रेस को फिर से मजबूत करना नही है? क्या राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को मिल रहे लाभ को त्याग सकते हैं ? अगर नही तो लाल सिंह के कांग्रेस के करीब आने का विरोध क्यों?अगर लाल सिंह जैसे ताकतवर ज़मीनी नेता के आने से जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस को ताकत मिलती है तो कांग्रेस के तथाकथित हितैषियों को परेशानी क्यों है?
व्यवहारिक रूप से अगर बात की जाए तो यह एक बड़ी सच्चाई है कि कश्मीर में कांग्रेस का कोई भविष्य शेष बचा नही है। कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी जैसे दो बड़े राजनीतिक दलों और पीपुल्स कांफ्रेंस व अपनी पार्टी जैसे छोटे दलों के बीच कांग्रेस के लिए राजनीतिक ज़मीन पहले से ही सिकुड़ चुकी है।
जबकि जम्मू संभाग में कांग्रेस आज भी मज़बूत मानी जाती और लगभग हर विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी को टक्कर देने की हैसियत में है। अपनी इस ताकत को जानते हुए भी कांग्रेस ने हमेशा कश्मीर को प्राथमिकता दी है। क्या लाल सिंह का मामला कांग्रेस की उसी सोच का हिस्सा नही है?