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गिरेबां में झांके ओलंपिक के दावेदार

ख्याल अच्छा है लेकिन दावेदारी से पहले हमें अपनी गिरेबान में भी झाँक लेना चाहिए और जान लेना होगा कि दुनिया के सबसे बड़े खेल मेले को आयोजित करने के लिए हम किस हद तक तैयार हैं। सबसे ज्यादा जरुरी यह  है कि इतने बड़े आयोजन से देश को क्या मिलने वाला है?  मसलन नाम सम्मान के साथ साथ भारतीय खिलाडी किन किन खेलों में पदक जीत सकते हैं और हम पदक तालिका में कौनसे नंबर पर रहेंगे।

सौ साल से भी अधिक पुराने ओलंपिक खेलों में मात्र दो व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले भारत महान के कुछ अति उत्साहित नेता और खेल आका 2036 के ओलंपिक खेलों की मेजबानी का दावा ठोकने  का मन बना रहे हैं।  उनका मानना है कि भारत चूँकि हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है इसलिए खेलों में भी बढ़ चढ़ कर भागीदारी का वक्त आ गया है।बेशक,  ख्याल अच्छा है लेकिन दावेदारी से पहले हमें अपनी गिरेबान में भी झाँक लेना चाहिए और जान लेना होगा कि दुनिया के सबसे बड़े खेल मेले को आयोजित करने के लिए हम किस हद तक तैयार हैं।

तैयारियों के लिए जरूरी यह है कि  हमें पहले आयोजन स्थलों का चयन करना है। दूसरे, खेलों के लिए बुनियादी इंतजाम करने हैं , जिसके लिए पर्याप्त धन और व्यवस्था की जरुरत पड़ेगी। लेकिन सबसे ज्यादा जरुरी यह  है कि इतने बड़े आयोजन से देश को क्या मिलने वाला है?  मसलन नाम सम्मान के साथ साथ भारतीय खिलाडी किन किन खेलों में पदक जीत सकते हैं और हम पदक तालिका में कौनसे नंबर पर रहेंगे।

इसमें दो राय नहीं कि भारत ने 1951 और 1982 के एशियाई खेलों और 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों का सफल आयोजन कर अपनी योग्यता और सामर्थ्य का परिचय दिया था। लेकिन ओलंपिक खेल कुछ हटकर होते हैं, जिनमें पूरे विश्व की भागीदारी होती है और इंतजाम युद्ध स्तर पर करने पड़ते हैं। इस चुनौती से निपटने में शायद भारत की सरकार और आयोजक सफल रहें परन्तु असली चुनौती मैदानी है। अर्थात भारत ओलंपिक  में कितने पदक जीत सकता है और पदक तालिका में कौन से स्थान पर रहेगा।

भारतीय खिलाड़ियों के अब तक के कुल प्रदर्शन पर नज़र डालें तो हॉकी में आठ स्वर्ण पदकों के  अलावा  अभिनव बिंद्रा और नीरज चोपड़ा ही मात्र दो स्वर्ण पदक जीत पाए हैं और टोक्यो ओलंपिक में जीते कुल आठ पदक हमारा श्रेष्ठ प्रदर्शन रहा है, जिनके दम पर हम पदक तालिका में 48 वे स्थान पर रहे थे। यदि नीरज का गोल्ड अलग कर दें तो यह प्रदर्शन बहुत पीछे जा सकता है और महां फ़िसड्डियों वाला नज़र आएगा। यह न भूलें कि भारतीय खिलाडी अभी तक एशियाई खेलों में बड़ी ताकत नहीं बन पाए है।कुछ एक खेलों को छोड़ बाकी में हमारा प्रदर्शन बेहद दयनीय रहा है।जकार्ता एशियाड 2018 में भारत आठवें स्थान पर था। ज़ाहिर है यह प्रदर्शन ओलंपिक दावे के लिए न्यायसंगत कदापि नहीं है।

इसमें दो राय नहीं कि ओलंपिक आयोजन से भारत का अंतर्राष्ट्रीय सम्मान बढ़ेगा लेकिन देश के खेलों और खिलाडियों को क्या फायदा होगा यह आकलन भी जरूरी है। यह न भूलें कि कॉमनवेल्थ खेलों के लिए बनाए और सजाए गए स्टेडियम बदहाली के शिकार हैं और उनमें खेल गतिविधियां यदा कदा ही होती हैं। करोड़ों और अरबों की कीमत पर बनाए गए स्टेडियम यदि ओलंपिक के बाद सफ़ेद हाथी बने रहे तो क्या ओलंपिक आयोजन को बेमतलब करार नहीं दिया जाएगा?

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