भोपाल। आज के दौर के सबसे चर्चित युवा संत बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्रकृष्ण शास्त्री ने हिंदुस्तान को हिंदू राष्ट्र बनाने की बात क्या कही, देश के 20% लोगों की तो ठठरी ही बंध गई। इनमें विधर्मी ही नहीं तथाकथित कुछ हिंदू बुद्धिजीवी भी शामिल हैं। अचानक इन बुद्धिजीवियों को संविधान याद आ गया। संविधान की दुहाई देने वालों में कांग्रेस समेत समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, जनता दल, तृणमूल कांग्रेस, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी समेत अन्य राजनीतिक दलों के नेता शामिल हैं। 2023 चुनाव के मद्देनजर मध्यप्रदेश में यह झंडा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ जी ने थाम रखा है। हिंदू राष्ट्र घोषित करने के सवाल पर उन्होंने भी कह दिया कि देश संविधान से चलना चाहिए। ठीक बात है, देश संविधान से ही चलना चाहिए, पर देश में कई ऐसे ऐतिहासिक घटनाक्रम हुए जिसमें संविधान और कानून की धज्जियां उड़ाई गईं।
याद कीजिए 90 के दशक का दौर, जब देश के सबसे खूबसूरत भू-भाग कश्मीर से 4 लाख पंडितों को मार-ठोक और जुल्म-ज्यादती कर भगा दिया गया। क्या पंडितों को कश्मीर में रहने का संवैधानिक अधिकार नहीं था? वे चीखते रहे, चिल्लाते रहे, उनकी बहन, बेटियां लाज बचाने के लिए दर-दर की ठोकरें खाती रही, लेकिन किसी ने उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा नहीं की। तब कौन से संविधान का पालन किया गया? यह भी बड़ी विडंबना है कि एक देश में दो विधान हिंदुस्तान में ही हुए। समूचे देश के लिए अलग कानून और कश्मीर के लिए अलग। संसद द्वारा पारित कानून पूरे देश में लागू होते थे,लेकिन कश्मीर में नहीं। वह कौन सा संविधान था, जब एक विशेष वर्ग को खुश करने के लिए शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का फैसला संसद में कानून बनाकर पलट दिया गया। एक अन्य घटनाक्रम 1984 में सिखों को गले में टायर डालकर जिंदा जला दिया गया। तब किसी ने संविधान की परवाह नहीं की। कालांतर के यह ऐसे आग उगलते सवाल हैं जो आज भी अनुत्तरित हैं।
कमाल की बात यह है कि इसके लिए जिम्मेदार राजनीतिक दल अपनी सुविधा के अनुसार संविधान की व्याख्या करते हैं। बहुसंख्यक वर्ग पर अत्याचार की घटनाओं पर इन राजनीतिक दलों के नेताओं के मुंह में दही जम जाता है। और जो ‘वर्ग विशेष’ इनको लगभग दुत्कार चुका है, उसकी चापलूसी के लिए संविधान की दुहाई देने लगते हैं। यह दुर्भाग्य ही है कि 20 परसेंट लोगों को खुश करने के चक्कर में इन राजनीतिक दलों ने 80 परसेंट लोगों की उपेक्षा करने से भी परहेज नहीं किया। आज जब पंडित धीरेंद्र शास्त्री समेत अनेक देश भक्तों के शंखनाद से जब देश हिंदू राष्ट्र घोषित होने की तरफ बढ़ रहा है तो संविधान की दुहाई दी जा रही है। तथाकथित राजनीतिक दल यह भ्रम फैला रहे हैं कि हिंदू राष्ट्र घोषित हो गया तो अल्पसंख्यकों पर मुसीबत आ जाएगी। वे असुरक्षित हो जाएंगे। जबकि हकीकत इसके एकदम उलट है। आज देश के हर कोने में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग अधिकारपूर्वक, बेखौफ और सुरक्षित रह रहे हैं।
क्या अभी तक उन पर कोई मुसीबत आई? यही नहीं इस धरती पर अल्पसंख्यक यदि सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं तो वह हिंदुस्तान की ही पवित्र और पुण्य भूमि है, जो सर्वधर्म समभाव का संदेश दुनिया को देती है। इतिहास में ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता जब विदेशी आक्रांताओं के हमलों को छोड़कर बहुसंख्यक हिंदुओं ने किसी पर अत्याचार या आक्रमण किए हों, लेकिन इस बात के प्रमाण जरूर भरे पड़े हैं कि जहां भी विधर्मियों की संख्या थोड़ी बहुत भी बढ़ी तो उन्होंने दूसरी जातियों पर जुल्म, ज्यादती और अत्याचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जहां-जहां भी विधर्मी संख्या बल के मान से थोड़े से पावर में आए तो फिर उस गली, मोहल्ले, गांव, कस्बे और जिला में संविधान नहीं चलता बल्कि शर्ते चलती हैं।
लेकिन अब बागेश्वरधाम सरकार के नाम से मशहूर धीरेंद्र शास्त्री जैसे प्रखर राष्ट्रवादी संतों ने इसी दुखती रग पर हाथ रखा है। इसलिए कुछ लोगों की ठठरी बंधी हुई है। यही नहीं उनके हिंदूराष्ट्र के शंखनाद की गूंज पूरे भारत समेत लंदन में भी सुनाई दे रही है। उनके इसी जयघोष के चलते मध्यप्रदेश में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को भी 2023 के चुनाव के मद्देनजर अपनी रणनीति बदलने को मजबूर होना पड़ा।
सूत्रों के अनुसार पार्टी नेताओं से कहा गया है कि बागेश्वर धाम जैसे संतो को लेकर कोई भी नेता अनर्गल टीका -टिप्पणी करने से बचें। यही वजह है कि प्रदेश कांग्रेस के 2 बड़े नेता जो अब तक बागेश्वर धाम को लेकर लगातार बयानबाजी कर रहे थे, उन्होंने अचानक चुप्पी साध ली है। इनमें से एक नेता तो बागेश्वर धाम में दंडवत कर आए हैं। इतना ही नहीं प्रदेश कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ खुद पंडित धीरेंद्र शास्त्री के दरबार में हाजिरी लगाकर आशीर्वाद ले आए हैं। यह दीगर बात है कि बागेश्वर सरकार से मिलने के बाद जब हिंदू राष्ट्र घोषित करने के मसले पर उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि देश संविधान से चलना चाहिए। कमलनाथ के अलावा पार्टी के कई अन्य नेता इन दिनों बागेश्वर धाम की परिक्रमा करते नजर आने लगे हैं। कई नेताओं ने पंडित धीरेंद्र शास्त्री से मिलने का समय मांगा है, तो कई को अपनी बारी का इंतजार है।
आखिर इस ‘ठठरी’ का मतलब क्या है
बागेश्वर धाम की प्रसिद्धि के साथ एक शब्द ठठरी इन दिनों बहुत प्रचलित में है। पंडित धीरेंद्र शास्त्री खुद अपने प्रवचनों में बार-बार इस शब्द का प्रयोग करते हैं। वे कहते हैं- राम को जो न माने ओकी ठठरी बरे। दरअसल ठठरी शब्द का प्रचलित अर्थ है बांस के डंडों से बनी नसैनी के आकार की मृत्यु शैया, जिस पर शव को लिटाकर अर्थी निकाली जाती है, लेकिन बुंदेलखंड समेत कई अन्य प्रांतों में ठठरी शब्द का प्रयोग आम बातचीत के दौरान हल्के-फुल्के अंदाज और हास-परिहास के रूप में भी किया जाता है। जैसे –
– दो साल से फेल हो रओ हे, जा दफे तो पास हो जा ठठरी के।
– जो ठठरी, ऊ ठठरी को पक्को चम्मच है।
– संतोष की बऊए कछु पतो न धतो, सास बनत फिरत है ठठरी की।
ऐसे कई प्रयोग इस शब्द के होते रहते हैं।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)