भोपाल। अब इसे हमारे संविधान निर्माताओं की भूल कहा जाए या हमारी कानूनी गलती, कि पवित्र संविधान की कसम खाकर पद प्राप्त करने वाले हमारे आधुनिक भाग्यविधाता (नेता) संवैधानिक पद पर रहते जेल जा रहे हैं, क्या कोई ऐसी कानूनी प्रक्रिया या बंधन नहीं है कि इनकी गिरफ्तारी या जेल भेजे जाने से पूर्व इनसे संवैधानिक पदों से इस्तीफे ले लिए जाएं? क्या संविधान की शपथ लेकर जेल जाने वालों को अपराधी घोषित होते ही स्वत: अपने संवैधानिक पद से इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए। आज तो स्थिति यह है कि सत्येंद्र जैन जैसे ऐसे नेता है जो गिरफ्तारी के महीनों बाद आज भी मंत्री पद पर विराजमान हैं और जेल में रहकर मंत्री पद की सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं, यह प्रजातंत्रीय देश के लिए कितने अपमान की बात है और इससे यह स्पष्ट होता है कि हम हमारे संविधान का कितना सम्मान करते हैं?
भारतीय राजनीति में यह गैर संवैधानिक सिलसिला आजकल का नहीं बल्कि बहुत पुराना है। दिल्ली के मंत्री मनीष सिसोदिया से पहले भी कई नेता संवैधानिक पद पर रहते जेल जा चुके हैं, महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नवाब मलिक को जेल जाना पड़ा था उनकी जमानत अभी तक नहीं हुई है, दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन जेल में है और बाकायदा जेल से मंत्री पद का निर्वहन कर रहे हैं। ऐसे भी उदाहरण हैं जब जेल जाने के पूर्व नेताओं को मंत्री पद से इस्तीफा देने पड़े, इन में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र और लालू प्रसाद यादव, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, हरियाणा के मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला शामिल है। जिन नेताओं ने जेल भेजे जाने के पूर्व अपने संवैधानिक पदों से इस्तीफे दे दिए वे तो साधुवाद के पात्र हैं, किंतु सत्येंद्र जैन जैसे नेताओं का क्या, जो जेल में रहकर मंत्री पद की सभी सुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं, अब दिल्ली की ‘आप’ सरकार के बाद इसी सरकार के एक और मंत्री मनीष सिसोदिया भी अपने मंत्री साथी सत्येंद्र जैन की राह पर चल रहे हैं और जेल भेजे जाने के बावजूद उन्होंने अपने मंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया है।
आज का इसीलिए सबसे बड़ा संवैधानिक सवाल यही है कि आज के पद लोलुप राजनेता अपराधी घोषित होते ही संवैधानिक पद से इस्तीफा क्यों नहीं देते? क्या इस स्थिति के लिए कोई कानूनी प्रावधान या संवैधानिक बंधन नहीं है? यदि ऐसा कोई नियम-कानून नहीं है तो फिर अब तक इस गैर प्रजातांत्रिक प्रक्रिया को रोकने के लिए कानून बनाया क्यों नहीं गया? जबकि हमारे संविधान को लागू 70 से अधिक वर्ष की अवधि गुजर चुकी है, किंतु इसके पीछे सबसे बड़ा सवाल यह है कि ऐसा कानून बनाये कौन? क्योंकि आज प्रजातंत्र के 3 में से 2 प्रमुख अंगों के सर्वे सर्वा तो यह नेतागण ही है? हां, यह अवश्य है कि प्रजातंत्र का तीसरा अंग जो अभी भी देशवासियों के लिए सम्मानजनक है न्यायपालिका उसको इस दिशा में पहल कर कानून बनाएं जाने की पहल करनी चाहिए थी और यदि ऐसा कानून पहले से विद्यमान है तो उसे सख्ती से लागू करने की दिशा में पहल की जानी चाहिए थी?
एक और हमें हमारे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र पर गर्व है और दूसरी ओर ऐसी कानूनी मनमानी हमारे देश में चल रही है? क्या यह हमारे लिए शर्म की बात नहीं है ?