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फ़िल्में भी लड़ेंगी चुनाव!

देश में अगले कई महीने अब लगातार चुनावों का सीज़न रहने वाला है। राजनीति और माहौल में गर्मी और बढ़ने वाली है। कई फिल्में तो शायद सोच-समझ कर इसी अवधि के लिए बनाई जा रही हैं ताकि थिएटर के भीतर की भावनाएं बाहर के माहौल से होड़ ले सके। रणदीप हुड्डा ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ लेकर आने वाले हैं और उसके टीज़र से ही विवाद शुरू हो गए हैं। रणदीप इसमें खुद सावरकर बने हैं। उन्होंने खुद ही निर्देशन भी दिया है और आनंद पंडित व संदीप सिंह के साथ इसके सह निर्माता भी हैं।

परदे से उलझती ज़िंदगी

बहुत कुछ माहौल पर निर्भर करता है। और बचा-खुचा फिल्म बनाने वाले की मंशा पर। मराठी के बेहद प्रतिष्ठित गायक और संगीतकार सुधीर फड़के लगभग पांच दशक तक फ़िल्मों में सक्रिय रहे। कुछ गीत उन्होंने हिंदी फिल्मों में भी गाए। अपने करियर के अंत में उन्होंने हिंदी में एक फिल्म बनाई जिसका नाम था, ‘वीर सावरकर’। सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान की यह फ़िल्म 2001 में रिलीज़ हुई और इसके मुश्किल से आठ महीने बाद सुधीर फड़के का 83 साल की उम्र में निधन हो गया। कहा जाता है कि इस फिल्म को सार्वजनिक चंदे से बनाया गया था। इसके लेखक और निर्देशक वेद राही थे और इसमें शैलेंद्र गौर ने सावरकर की भूमिका की थी। उनके साथ फिल्म में पंकज बेरी, टॉम ऑल्टर, हेमंत बिरजे व सुरेंद्र राजन भी थे। सुरेंद्र राजन इसमें महात्मा गांधी बने थे। देश के करीब दर्जन भर शहरों में यह फिल्म रिलीज की गई थी, लेकिन उस समय न कहीं कोई बयानबाज़ी हुई थी और न कोई विवाद उठा था। सिर्फ़ इसलिए कि तब माहौल अलग था और माहौल से लाभ उठाने की तत्परता भी नहीं थी। दस साल बाद इसके गुजराती संस्करण को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मादी के हाथों रिलीज़ करवाया गया था। मगर हिंदी के ज्यादातर दर्शकों को यह फिल्म याद नहीं है।

लेकिन अब स्थितियां बदल गई हैं। अपने रणदीप हुड्डा ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ लेकर आने वाले हैं और उसके टीज़र से ही विवाद शुरू हो गए हैं। रणदीप इसमें खुद सावरकर बने हैं। उन्होंने खुद ही निर्देशन भी दिया है और आनंद पंडित व संदीप सिंह के साथ इसके सह निर्माता भी हैं। फिल्म में अंकिता लोखंडे और अमित सियाल भी नज़र आएंगे। शुरू में महेश मांजरेकर इसे निर्देशित करने वाले थे, मगर किन्हीं कारणों से वे पीछे हट गए। तब रणदीप हुड्डा ने यह जिम्मेदारी संभाली। निर्माता आनंद पंडित कहते हैं कि यह दुर्भाग्य है कि देश में सावरकर की कहानी कभी बताई नहीं गई। उनकी इस बात से लगता है कि उन्हें भी सुधीर फड़के की फिल्म के बारे में कुछ नहीं पता।

रणदीप हुड्डा ने इस फिल्म का टीज़र विनायक दामोदर सावरकर 140वीं जयंती पर लॉन्च किया। टीज़र में सावरकर देश की आजादी में देरी के लिए गांधी के अहिंसावादी विचारों को दोषी ठहराते दिखते हैं। टीज़र यह भी कहता है कि सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, खुदीराम बोस और मदनलाल धींगरा जैसी क्रांतिकारी हस्तियों ने सावरकर से ही प्रेरणा पाई थी। इसका कई लोगों ने विरोध किया है। सुभाष चंद्र बोस के करीबी रिश्तेदारों में से एक चंद्र कुमार बोस के मुताबिक नेता जी और सावरकर की विचारधारा एक-दूसरे से बिलकुल उलट थी और यह फिल्म इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने का प्रयास कर रही है। वे हैरानी से पूछते हैं कि इस फिल्म को सेंसर बोर्ड पास कैसे कर सकता है? उनके इस सवाल से साफ है कि जब भी यह फिल्म थिएटरों में आएगी तो काफी झिक-झिक होने वाली है।

‘आरआरआर’ वाले तेलुगु फिल्मों के सुपरस्टार रामचरण अपने निजी बैनर वी मेगा पिक्चर्स की पहली फिल्म ‘द इंडिया हाउस’ बनाने जा रहे हैं। यह बैनर उन्होंने विक्रम रेड्डी के साथ मिल कर शुरू किया है। कई भाषाओं में बनने वाली इस फिल्म में निखिल सिद्धार्थ और अनुपम खेर की मुख्य भूमिकाएं होंगी। रामचरण ने इसकी विषय वस्तु के बारे में कोई जानकारी नहीं दी, लेकिन इस फिल्म का ऐलान उन्होंने सावरकर की जयंती के अवसर पर ही किया। आज़ादी से पहले की कहानी पर बन रही इस फिल्म में अभिषेक अग्रवाल आर्ट्स का भी योगदान रहेगा। ज़ी स्टूडियोज़ के साथ मिल कर इसी कंपनी ने ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ का निर्माण किया था। असल में ‘कश्मीर फाइल्स’ की तरह ही ‘द केरला स्टोरी’ ने भी रिकॉर्ड तोड़ कमाई की है। अपनी लागत से कई गुना ज्यादा। इन दोनों फिल्मों का किस्सा कुछ ऐसा है कि जितना ज्यादा विरोध उतनी ही ज्यादा कमाई।

इसीलिए फिल्मकार विनोद तिवारी शिकायत करते हैं कि ‘द केरला स्टोरी’ जैसी ही उनकी फिल्म ‘द कन्वर्जन’ को तो रिलीज़ ही नहीं होने दिया गया। पहले तो सेंसर कहता रहा कि यह हिंदुत्व को बढ़ावा देती है। बाद में किसी तरह पास भी हुई तो अचानक मल्टीप्लेक्स वाले मुकर गए। मुंबई में तो प्रशासन ने साफ़ कह दिया कि इससे सांप्रदायिक हिंसा भड़क सकती है। ‘तबादला’ और ‘ज़िला गोरखपुर’ जैसी फिल्में बना चुके विनोद तिवारी दावा करते हैं कि उन्हें इस फिल्म के कारण आठ करोड़ का नुकसान हुआ। हो सकता है कि अब वे नए सिरे से इसकी रिलीज़ की कोशिश करें।

सावरकर जयंती के दो दिन बाद निर्देशक एमके शिवाक्ष की ‘गोधरा’ का भी टीज़र जारी कर दिया गया। वही गोधरा जहां सन 2002 में अयोध्या से आई साबरमती एक्सप्रेस में आग लगने से 59 लोग मारे गए थे और फिर गुजरात में कई स्थानों पर दंगे भड़क उठे थे। फिल्म में एक लड़का जिसके मां-बाप इस कांड में मारे गए, वह अपनी यूनिवर्सिटी से मिले असाइनमेंट के तहत यह पता लगाने की कोशिश करता है कि यह कांड एक हादसा था या फिर कोई साज़िश। टीज़र में दावा किया गया है कि यह फिल्म इस सच्चाई को सामने लाएगी। क्या इसके रिलीज़ होने पर कोई विवाद नहीं होगा?

‘द केरला स्टोरी’ पर से बैन हटने के बाद भी पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में शिएटर इसे दिखाने में संकोच कर रहे हैं या डर रहे हैं। लेकिन बाकी देश में इसे बॉक्स ऑफिस पर मिली कामयाबी के कारण कई फिल्मकार इसी तरह की और इसी दिशा की कथित सच्ची कहानियों की तलाश में जुट गए हैं। ‘भुज द प्राइड ऑफ इंडिया’ के निर्देशक अभिषेक दुधैया राजस्थान के अजमेर में तीस साल पहले घटी एक घटना पर फिल्म बनाना चाहते हैं। यह एक प्रभावशाली परिवार और उसके नजदीकी लोगों के हाथों लगभग तीन सौ लड़कियों के ब्लैकमेल होने और वेश्यावृत्ति में धकेले जाने की कहानी है। कुमार तौरानी इसके निर्माता होंगे और फिल्म का नाम होगा ‘अजमेर फाइल्स’।

देश में अगले कई महीने अब लगातार चुनावों का सीज़न रहने वाला है। राजनीति और माहौल में गर्मी और बढ़ने वाली है। कई फिल्में तो शायद सोच-समझ कर इसी अवधि के लिए बनाई जा रही हैं ताकि थिएटर के भीतर की भावनाएं बाहर के माहौल से होड़ ले सके। ‘कश्मीर फ़ाइल्स’ और ‘द केरला स्टोरी’ की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि कई फिल्मकारों को लगने लगा है कि विधारधारा गत विवादों से पहचान भी मिलेगी और पैसा भी। मानो यह प्रसिद्धि और कमाई का कोई शॉर्टकट है। अगर है भी तो यह माहौल ने तय किया है।

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By सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

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